सद्भाव और प्रेम का त्योहार है होली: आचार्य मारुति नन्दन वागीश महाराज
(डॉ. गोपाल चतुर्वेदी)

वृन्दावन (आरएनआई) बुर्जा रोड़ स्थित भागवत पीठ में सत्य सनातन सेवार्थ संस्थान के द्वारा 20 वां रंगारंग फाग महोत्सव अत्यंत श्रद्धा व धूमधाम के साथ संपन्न हुआ।जिसमें होली के पदों ,भजनों व रसियों का संगीतमय गायन अनेक सुप्रसिद्ध मंडलियों के द्वारा किया गया।साथ ही रंग-गुलाल व फूलों की जबरदस्त होली खेली गई।जिसमें प्रख्यात संतों-धर्माचार्यों के अलावा देश के विभिन्न प्रांतों से आए भक्तों व श्रद्धालुओं ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया।
गौरी गोपाल आश्रम के संस्थापक अध्यक्ष, विश्वविख्यात भागवत प्रवक्ता डॉ. अनिरुद्धाचार्य महाराज ने कहा कि होली पारस्परिक प्रेम, सौहार्द्र व राष्ट्रीय एकता का प्रमुख पर्व है। विडम्बना है कि सामाजिक समरसता के इस महापर्व में अनेक बुराइयों का समावेश हो गया है। आज आवश्कता इस बात की है कि हम लोग इस दिन अपने जीवन की समस्त बुराइयों को त्यागने का संकल्प लें। तभी इस पर्व की अस्मिता सुरक्षित रह सकती है।
आचार्य/भागवत पीठाधीश्वर,भागवत प्रभाकर आचार्य मारुति नन्दन वागीश महाराज व युवराज श्रीधराचार्य महाराज ने कहा कि होली सद्भाव और प्रेम का त्योहार है। सभी को मिलकर अपने ईर्ष्या, द्वेष कों त्याग कर प्रेम मिलन करके हम बुराइयों कों समाप्त करें और अच्छाइयों को ग्रहण करें।
प्रख्यात साहित्यकार डॉ. गोपाल चतुर्वेदी व पंडित बिहारीलाल शास्त्री ने कहा कि धर्म संस्कृति से बढ़कर कर्म संस्कृति की प्रधानता है।इसीलिए आचार्यों ने भी ब्रज में आकर यहां की रज नमन किया है और भगवान की लीलाओं को अवलोकन कर उनके आनंद का लाभ प्राप्त किया।
प्रमुख भाजपा नेता पण्डित योगेश द्विवेदी व क्रांतिकारी संत डॉ. सत्य मित्रानंद महाराज ने कहा कि ब्रज रस प्रेम का आनंद स्वरूप है। जिसमें सभी ब्रजवासी सुख की अनुभूति प्राप्त करते हैं। साथ ही प्रेम और सौहार्द्र को बढ़ाते हैं।
भागवताचार्य विपिन बापू महाराज व आचार्य सुमंत कृष्ण महाराज ने कहा कि भगवान शिव ने भी होली खेली थी और होली में सभी रंगों का समाववेश है।इसीलिए होली को रंगोत्सव भी कहते हैं।
होली महोत्सव में श्यामसुन्दर ब्रजवासी महाराज, युवा साहित्यकार डॉ. राधाकांत शर्मा, महेन्द्र शर्मा, उमेश कौशिक (दिल्ली), श्रीमती संगीता कौशिक, भजन गायक विनोद, अमन, आचार्य भरत शास्त्री, राघव, जयप्रकाश आदि की उपस्थिति विशेष रही।संचालन पण्डित बिहारीलाल शास्त्री ने किया।महोत्सव का समापन स्वल्पाहार के साथ हुआ।
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