सजा में छूट के आदेश का पालन न कर सकी यूपी सरकार, IAS अधिकारी को हटाया, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार
सुप्रीम कोर्ट सजा में छूट की फाइलों को यूपी सरकार के रोकने के मामले में सुनवाई कर रही थी। कोर्ट के आदेश के बाद भी यूपी सरकार ने एक दोषी की स्थायी छूट याचिका से संबंधित फाइल आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) का हवाला देकर स्वीकार नहीं की थी। जबकि शीर्ष अदालत ने 13 मई को कहा था कि आदर्श आचार संहिता छूट तय करने में आड़े नहीं आएगी।
नई दिल्ली (आरएनआई) दोषियों की सजा में छूट के आदेश का पालन कर पाने पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि सरकार ने सजा पर छूट वाली फाइलें आगे नहीं बढ़ाईं और एक वरिष्ठ अधिकारी को बलि का बकरा बनाते हुए कोर्ट की झूठी जानकारी देने और फाइलें निपटाने में देरी पर सीएम कार्यालय को जिम्मेदार ठहराने पर बाहर कर दिया। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार के अधिकारियों ने जेल अधिकारियों का ईमेल खोला ही नहीं, जिसमें अदालत का आदेश भेजा गया था। कोर्ट ने आदेश में कहा था कि दर्श आचार संहिता छूट तय करने में आड़े नहीं आएगी।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने मामले की गहराई तक जाने की बात कही। साथ ही राज्य सरकार को 13 मई को जारी किए सजा में छूट से जुड़ी फाइलों को लेकर कोर्ट के आदेश के बाद से अब तक हुई देरी का घटनाक्रमवार विवरण देने का आखिरी मौका दिया। पीठ ने कहा कि राज्य के मुख्य सचिव 24 सितंबर तक पूरे मामले में राज्य सरकार और अधिकारियों से मामले में स्पष्टीकरण लेकर व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करें।
कोर्ट ने वरिष्ठ आईएएस और सहकारिता, कारागार और ग्राम विकास विभाग के प्रमुख सचिव राजेश कुमार सिंह को भी कारण बताओ नोटिस दिया है। कोर्ट ने कहा कि जब आईएएस अधिकारी 12 अगस्त को वर्चुअली कोर्ट में पेश हुए थे तब और अब हलफनामे दिए गए बयानों में अंतर है। क्यों न उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्रवाई की जाए?
यूपी सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि आईएएस अधिकारी राजेश सिंह को हाल ही में उनके सभी कर्तव्यों से मुक्त कर दिया गया है और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई है। इस पर पीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने आईएएस अधिकारी राजेश सिंह को बलि का बकरा बना दिया है। क्योंकि रिकॉर्ड में साफ है कि एक अनुभाग अधिकारी ने जेल अधिकारियों का कोर्ट के आदेश की सूचना देने वाला ई मेल छह जून तक खोला ही नहीं था। इससे साफ है कि तब तक फाइलें एक इंच भी आगे नहीं बढ़ीं।
पीठ ने कहा कि कोर्ट के आदेश को लेकर पूरी राज्य मशीनरी सो रही थी। साफ है कि आदर्श आचार संहिता के लागू होने के दौरान सजा में छूट की फाइलों पर कार्रवाई नहीं करना हमारे आदेशों की अवहेलना है। कोर्ट ने यह भी कहा कि आईएएस अधिकारी ने भी अदालत को ठीक से जानकारी नहीं दी और कोर्ट में सरकार के वकील को दोषी ठहराने की कोशिश की। अगर राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारी का ऐसा रवैया है तो हम मामले की गहराई तक जांच करेंगे।
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि हम जानना चाहते हैं कि आचार संहिता खत्म होने के बाद भी क्या सजा में छूट से जुड़ी फाइलों पर कार्रवाई न करने के लिए कोई आदेश जारी किया गया? कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 27 सितंबर को करने का आदेश दिया।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट सजा में छूट की फाइलों को यूपी सरकार के रोकने के मामले में सुनवाई कर रही थी। कोर्ट के आदेश के बाद भी यूपी सरकार ने एक दोषी की स्थायी छूट याचिका से संबंधित फाइल आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) का हवाला देकर स्वीकार नहीं की थी। जबकि शीर्ष अदालत ने 13 मई को कहा था कि आदर्श आचार संहिता छूट तय करने में आड़े नहीं आएगी। मामले में 27 अगस्त को कोर्ट ने आईएएस अधिकारी राजेश सिंह को कोर्ट में झूठा हलफनामा दाखिल करने पर फटकार लगाई थी।
कोर्ट में राजेश सिंह ने कहा था कि मुख्यमंत्री कार्यालय ने आदर्श आचार संहिता के कारण दोषी की सजा माफ करने से संबंधित फाइल की प्रक्रिया में देरी की। हालांकि बाद में आईएएस अधिकारी ने इस पर माफी मांगी थी और कहा था कि उन्होंने सीएम कार्यालय वाली बात अनजाने में कही थी। पीठ ने उस दोषी को अस्थायी जमानत दे दी थी, जिसकी याचिका पर पूरा विवाद खड़ा हुआ था।
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