संसद के बनाए कानून को किसी और संस्था द्वारा अमान्य किया जाना प्रजातंत्र के लिए सही नहीं : जगदीप धनखड़
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को कहा कि संसद के बनाए कानून को किसी और संस्था द्वारा अमान्य किया जाना प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं है। साथ ही उन्होंने उच्चतम न्यायालय द्वारा 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को निरस्त किए जाने पर कहा कि ‘दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ है।’
जयपुर, 11 जनवरी 2023, (आरएनआई)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को कहा कि संसद के बनाए कानून को किसी और संस्था द्वारा अमान्य किया जाना प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं है। साथ ही उन्होंने उच्चतम न्यायालय द्वारा 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को निरस्त किए जाने पर कहा कि ‘दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ है।’
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए संसदीय संप्रभुता और स्वायत्तता सर्वोपरि है और कार्यपालिका या न्यायपालिका को इससे समझौता करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
धनखड़ राजस्थान विधानसभा में अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। संवैधानिक संस्थाओं के अपनी सीमाओं में रहकर संचालन करने की बात करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘संविधान में संशोधन का संसद का अधिकार क्या किसी और संस्था पर निर्भर कर सकता है। क्या भारत के संविधान में कोई नया ‘थियेटर’ (संस्था) है जो कहेगा कि संसद ने जो कानून बनाया उस पर हमारी मुहर लगेगी तभी कानून होगा। 1973 में एक बहुत गलत परंपरा पड़ी, 1973 में केशवानंद भारती के केस में उच्चतम न्यायालय ने मूलभूत ढांचे का विचार रखा ...कि संसद, संविधान में संशोधन कर सकती है लेकिन मूलभूत ढांचे में नहीं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यदि संसद के बनाए गए कानून को किसी भी आधार पर कोई भी संस्था अमान्य करती है तो यह प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं होगा। बल्कि यह कहना मुश्किल होगा क्या हम लोकतांत्रिक देश हैं।’’
संसद द्वारा पारित न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को उच्चतम न्यायालय द्वारा निरस्त किए जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम पारित किया गया। ऐसे कानून को उच्चतम न्यायालय ने निरस्त कर दिया ... दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ है।’’
उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘कार्यपालिका को संसद से निकलने वाले संवैधानिक नुस्खे के अनुपालन के लिए नियुक्त किया गया है। यह एनजेएसी का पालन करने के लिए बाध्य है। न्यायिक फैसले इसे निरस्त नहीं कर सकते।" उन्होंने आगे कहा, "संसदीय संप्रभुता को कार्यपालिका या न्यायपालिका द्वारा कमजोर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।"
उनका बयान न्यायपालिका में उच्च पदों पर नियुक्ति के मुद्दे पर जारी बहस के बीच आया है जिसमें सरकार वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठा रही है और सर्वोच्च न्यायालय इसका बचाव कर रहा है।
धनखड़ ने कहा कि कोई भी संस्था लोगों के जनादेश को बेअसर करने के लिए शक्ति या अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकती है। उन्होंने सम्मेलन में पीठासीन अधिकारियों से कहा कि लोगों की संप्रभुता की रक्षा करना संसद और विधायिकाओं का दायित्व है।
उपराष्ट्रपति ने संसद व विधानसभाओं में अशोभनीय घटनाओं पर क्षोभ व्यक्त करते हुए इसका समाधान खोजने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि संविधान और कानून की शपथ लेने वाले जनप्रतिनिधियों का विधायिका में नियमों और अनुशासन का उल्लंघन करना समझ से परे है।
संसद व विधानसभाओं में अशोभनीय घटनाओं की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘लोकतंत्र के इन मंदिरों की विषम दशा से हम सब भली-भांति परिचित हैं। समय आ गया है कि इस निराशाजनक स्थिति का उचित समाधान अविलंब निकाला जाये। संसद और विधानसभाओं में अशोभनीय घटनाओं और व्यवहार को लेकर जनता में व्याप्त रोष का निदान खोजा जाये।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह समझ से परे है कैसे सांसद, विधायक, एमएलसी... जो संविधान और कानून की शपथ लेते हैं, विधायिका में नियमों और अनुशासन का उल्लंघन करें! ऐसी स्थिति पर नियंत्रण करने, उस पर अंकुश लगाने में आपकी भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। मुझे विश्वास है इस विषय पर पूरा ध्यान दिया जाएगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘क्या व्यवधानों और नियमों के उल्लंघन को, एक राजनीतिक रणनीति बनने दिया जा सकता है? कदापि नहीं!’’
धनखड़ ने कहा, ‘‘संविधान सभा एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करती है। संविधान सभा में विमर्श में सौहार्द, में शिष्टता और विचारों में निष्ठा थी। वो लोग विद्वान थे, बड़े उद्देश्य के प्रति समर्पित थे। उनके सामने एक लक्ष्य था, तत्कालीन विषम स्थितियों के प्रति सजग थे और उन परिस्थितियों में अपनी जिम्मेदारी के प्रति जागरूक थे।’’
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