ईडब्ल्यूएस कोटा : मूल संरचना के उल्लंघन को लेकर कोई तय ‘फॉर्मूला’ या ‘थ्योरम’ नहीं है : न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी
आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग के लिए सरकारी शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण को बरकरार रखते हुए उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने कहा कि संविधान में किये जाने वाले किसी संशोधन से उसकी मूल संरचना का उल्लंघन होता है या नहीं यह तय करने के लिए कोई ‘फॉर्मूला’ या ‘थ्योरम’ नहीं हो सकता है।
नयी दिल्ली, 8 नवंबर 2022, (आरएनआई)। आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग के लिए सरकारी शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण को बरकरार रखते हुए उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी ने कहा कि संविधान में किये जाने वाले किसी संशोधन से उसकी मूल संरचना का उल्लंघन होता है या नहीं यह तय करने के लिए कोई ‘फॉर्मूला’ या ‘थ्योरम’ नहीं हो सकता है।
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय (न्यायमूर्ति माहेश्वरी, न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिपाठी और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला, न्यायमूर्ति एस. रविन्द्र भट और भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित) संविधान पीठ ने सोमवार को 3:2 के बहुमत वाले अपने फैसले में आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों के लिए शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में किए गए 10 प्रतिशत आरक्षण को बरकरार रखा। इस आरक्षण में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की कोई हिस्सेदारी नहीं होगी।
पीठ ने 103वें संविधान संशोधन को बरकरार रखते हुए अपने 155 पन्ने के फैसले में कहा, ‘‘यह संदेह से परे है कि जिस संशोधन पर विचार किया जा रहा है उसके खिलाफ मूल संरचना को तलवार बनाकर इस्तेमाल करना और (संविधान की) प्रस्तावना तथा राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में निहित आर्थिक न्याय करने के राष्ट्र के प्रयास को खारिज करना और अनुच्छेद 38, 39 तथ 46 के प्रावधानों को नकारना संभव नहीं है।’’
न्यायमूर्ति ने कहा, ‘‘असमानता को समाप्त करने की यह प्रक्रिया, प्राकृतिक रूप से तर्कपूर्ण श्रेणीबद्धता की बात करती है ताकि सबसे साथ समान व्यवहार हो और जो असमान हैं, उनकी जरुरत के मुताबिक उनके साथ अलग व्यवहार किया जाए।’’
शीर्ष अदालत ने 40 याचिकाओं पर सुनवाई की और उनमें से ज्यादातर में... जनहित आंदोलन द्वारा 2019 में दायर याचिका सहित’... 2019 में किए गए 103वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती दी गई थी।
ईडब्ल्यूएस पर एक फैसले में जहां न्यायमूर्ति माहेश्वरी, न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिपाठी और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला ने आरक्षण को बनाए रखने का फैसला लिया, वहीं न्यायमूर्ति एस. रविन्द्र भट और भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित ने ऐसा नहीं किया।
वहीं, न्यायमूर्ति पारदीवाला ने फैसले के अपने हिस्से में कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए यह आरक्षण ‘ साध्य नहीं, बल्कि अपने लक्ष्य को पाने का साधन है’’ और इसे निजी हित नहीं बनने दिया जाना चाहिए।
डॉक्टर भीम राव आंबेडकर की बात दोहराते हुए न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा कि ‘‘बाबा साहेब आंबेडकर का विचार महज 10 साल के लिए आरक्षण लागू करके सामाजिक सौहार्द लाने का था। लेकिन यह पिछले सात दशकों से जारी है।’’
अपने 117 पन्नों के फैसले में न्यायमूर्ति ने कहा कि आरक्षण अनंतकाल तक जारी नहीं रहना चाहिए और अगर ऐसा होता है तो वह ‘निजी स्वार्थ’ है।
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा कि विकास और शिक्षा के प्रसार से विभिन्न तबकों के बीच की दूरियां काफी हद तक कम हो गई हैं।
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