श्री राम कथा महोत्सव में उमड़ रही भक्तों की भीड
वन गमन, केवट संवाद और भरतलाल जी का ननिहाल से लौटने की कथा मार्मिक वर्णन सुन भावविभोर हुए भक्त।
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हाथरस (आरएनआई) इधर, राम जी वन को गमन कर गये और सुमंत जी रोते-विलखते असहाय सी अवस्था में देखते रह गये। अयोध्या लौटे तो अंधेरे का इंतजार किया। मौका पाकर चुपके से महल में गये। इधर, राम के विरह में वे शुद महाराज दशरथ को विकल हो गये।
यह उद्गार वृंदावन धाम से पधारे श्री गौरदास जी महाराज ने श्री राम कथा महोत्सव में तीसरे दिन के पावन 'भरत चरित' की कथा में मार्मिक प्रसंग में वर्णित किये। उन्होंने कहा कि जैसे महाराज ने सुमंत को देखा तो उनको अपनी वांहों में जकड़ लिया। सुमंत जी ने महाराज को संभाला। महाराज का एक ही प्रश्न था! कहां हैं 'राम' ! कहां हैं 'राम' ! सुमंत जी बात को संभालते हुए बोले हां महाराज बताता हूं पहले सुनिए तो सही। जब प्रभु अयोध्या से चले तो सभी अयोध्या वासी उनके साथ हो लिए। राम पहले गुरु आश्रम गये वहां नंदनी गौ माता की चरण वंदना की। फिर क्या हुआ? महाराज फिर प्रभु गुरु आज्ञा के बाद वन के लिए चल दिये। तमुसा नदी पर पहुंचे। वहीं विश्राम किया और लखनलाल ने 14 वर्ष तक ना सोने प्रण बताया। अर्धरात्रि को ही प्रभु सभी पुरवासियों को सोता हुआ छोड़कर चल दिए और श्रृगंबेरपुर पहुंचे। जहां राजा गुहू ने काफी स्वागत किया और वही पर 14 वर्ष तक ठहरने का अनुनय किया, लेकिन प्रण के मुताबिक प्रभु सरयु नदी के तट पर पहुंचे और केवट आवाज दी। प्रभु के चरण पखार कर अपनी नाव चढ़या।
यह सुनते ही महाराज विरह में डूब गए और श्रवण कुमार की कथा बताने बाद "राम राम कहि राम कहि राम राम कहि राम।", "तनु परिहरि रघुबर बिरहँ राउ गयउ सुरधाम॥" महाराज ने जीवन और मृत्यु का लाभ उठाते प्रभु के धाम प्रस्थान किया। दूसरी ओर, ननिहाल पहुंचे दूतों ने गुरुवार का संदेशा पाया और अयोध्या लौट कर कारण पता चला तो माता केकई को कोषा और माता कौशल्या के पास पहुंच विरह-वेदना व्यक्त कह सारा दोष स्वत: पर ले लिया।
इस अवसर पर पं. भोलाशंकर, रघुनन्दन शरण अरोड़ा, आशीष जैन, पूर्व विधायक राजवीर सिंह पहलवान, विकास अग्रवाल, रोचक जैन, सुग्रीव सिंह राणा, रामवल्लभ शर्मा, प्रिया जी गारमेंट्स, उमेश शर्मा, अमित गोयल, सुनिल गुप्ता, लक्ष्मीनारायण उपाध्याय एडवोकेट आदि सैकड़ों की संख्या में भक्त सनातनी उपस्थित थे।
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