श्री राधारानी जन्मोत्सव शोभायात्रा के साथ चला समापन की ओर
सासनी-23 सितंबर। महिला हरी संकीर्तन मंडल के बैनरतले श्री राधा कृष्ण मंदिर परिसर श्री राधारानी के 29वाँ जन्मोत्सव कार्रक्रम श्री राधारानी शोभायात्रा के बाद रविवार को भंडारा प्रसाद के साथ समापन किया जाएगा। कार्रक्रम के दौरान भागवतार्चा गौरव जी महाराज ने राजा परीक्षित की कथा का रोचक वर्णन किया।
शनिवार को श्री राधारानी शोभायात्रा की आरती पूर्व चेयरमैन श्रीमती चित्रा वाष्र्णेय ने उतारी और पूजा अर्चना के बाद शोभायात्रा अग्रवाल मोहल्ला स्थित श्री राधारानी मंदिर से चलकर मोहल्ला विष्णुपुरी, आगरा अलीगढ राजमार्ग, बच्चा पार्क, सेंट्रल बैंक, शहीद पार्क, बस स्टैण्ड, पुरानी सब्जी मंडी, होते हुए कमला बाजार, जीन, गांधी चैक अयोध्या चैक, ठंडी सडक होते हुए पुनः श्री राधा रानी मंदिर पहुंची जहां शोभायात्रा का समापन किया गया। वहीं शोभायात्रा के बाद आचार्य ने कथा में सुनाया कि राजा परीक्षित को भागवत कथा सुनाते हुए शुकदेव को छह दिन बीत गए और उनकी मृत्यु में बस एक दिन शेष रह गया। लेकिन राजा का शोक और मृत्यु का भय कम नहीं हुआ। तब शुकदेवजी ने राजा को एक कथा सुनाई जिसमें कि एक झोपड़ी दिखी जिसमें एक बीमार बहेलिया रहता था। उसने झोपड़ी में ही एक ओर मल-मूत्र त्यागने का स्थान बना रखा था और अपने खाने का सामान झोपड़ी की छत पर टांग रखा था। उसे देखकर राजा पहले तो ठिठका, पर कोई और आश्रय न देख उसने बहेलिए से झोपड़ी में रातभर ठहरा लेने की प्रार्थना की। बहेलिया बोला ‘मैं राहगीरों को अकसर ठहराता रहा हूं। लेकिन दूसरे दिन जाते समय वे झोपड़ी छोड़ना ही नहीं चाहते। इसलिए आपको नहीं ठहरा सकता।’ राजा ने उसे वचन दिया कि वह ऐसा नहीं करेगा। सुबह उठते-उठते उस झोपड़ी की गंध में राजा ऐसा रच-बस गया कि वहीं रहने की बात सोचने लगा। इस पर उसकी बहेलिए से कलह भी हुई। वह झोपड़ी छोड़ने में भारी कष्ट और शोक का अनुभव करने लगा।’ कथा सुनाकर शुकदेव ने परीक्षित से पूछा- ‘क्या उस राजा के लिए यह झंझट उचित था। परीक्षित ने कहा- वह तो बड़ा मूर्ख था, जो अपना राज-काज भूलकर दिए हुए वचन को तोड़ना चाहता था। वह राजा कौन था। तब शुकदेव ने कहा ‘परीक्षित, वह तुम स्वयं हो। इस मल-मूत्र की कोठरी देह में तुम्हारी आत्मा की अवधि पूरी हो गई। अब इसे दूसरे लोक जाना है। पर तुम झंझट फैला रहे हो क्या यह उचित है।’ यह सुनकर परीक्षित ने मृत्यु के भय को भुलाते हुए मानसिक रूप से निर्वाण की तैयारी कर ली और अंतिम दिन का कथा-श्रवण पूरे मन से किया। शुकदेव जी से श्रीमद् भागवत कथा सुनी थी। सातवें दिन तक्षक सांप के डंसने पर परीक्षित की मृत्यु हुई। इस दौरान नीलू पाठक, मंजू, साधना, विमला, सविता, संगीता अग्रवाल, दुर्गेश, ममता, कमलेश वाष्र्णेय, गुड्डो, नीरू गुप्ता, ममता, पूनम, बिंटू, स्नेह, मधू, रितू, रजनी, शुभांगी, रिंकी, रेखा, कल्पना अग्रवाल, रेनू, सरोज, राखी, ममता, ब्रजवाला, कुमकुम, सुधा, सीनू, यश, राखी नमिता, सोनिया, अनीता वाष्र्णेय, अमिता, बीना, पूजा, मौनी, राधा, स्मिता, विमला बुआ, आदि मौजूद थीं।
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