शाखा प्रबंधक नें 150 ग्राहको के बैंक लोन खातों के रूपये में किया गमन, न्यायालय ने 7 वर्ष के कठोर कारावास की सजा एवं 5 लाख रूपये का अर्थ दण्ड की सजा
आरोपी अनिल कलावत पुत्र मान सिंह कलावत निवासी बोहरा मस्जिद के पास गुना को प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश एम ए खान नें सुनाई सजा
गुना। न्यायालय के अपर लोक अभियोजक राहुल पांडे नें बताया कि आरोपी अनिल कलावत नें 15.09.2015 से 17.12.2016 तक अपनी पदस्थापना के दौरान शाखा बमौरी से शाखा प्रबंधक रहते हुए करीब 150 खाताधारकों के खातों से अवैध एवं अनाधिकृत तरीके से 55,24,729 /- रूपयों (पचपन लाख चौबीस हजार सात सौ उन्तीस रूपये) की राशि खातेदारों के खाते से निकालकर अपने परिचित व रिश्तेदारों के खाते में जमा कर उन लोगो से माध्यम से उनका उपयोग कर अपराध किया।
अनिल कलावत द्वारा की गई वित्तीय अनियमितताओं के संबंध में जांच कराई गई थी प्रारंभिक जांच विनय गुप्ता के द्वारा की गई थी, जिसमें 1.12.783/-रूपये (एक लाख बारह हजार सात सौ तेरासी) की गड़बड़ी पाई गई थी जांच में यह पाया गया था ग्राहकों के खाते से लोन शेंगसन कर गमन किया इसी दौरान 19.12.2016 को कार्यकारी शाखा प्रबंधक एस.बी.आई. बमौरी अंसार एहमद ने एक लेखीय आवेदन थाने पर इस आशय का पेश किया कि अनिल कलावत जो कि 15.09.2015 से 17.12.2016 तक भारतीय स्टेट बैंक शाखा प्रबंधक के पद पर पदासीन थे, के द्वारा बमौरी शाखा में पदस्थी के दौरान गंभीर वित्तीय अनियमितताएं (धोखाधडी /गवन) की गई एवं उनके क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा प्राथमिक जांच करवाये जाने पर यह विदित हुआ कि उनके द्वारा शाखा के अनेक खातेदारों के खातों को बिना अनुमति या किसी अधिकार के राशि निकालकर अनिल कलावत द्वारा अपने परिवार के सदस्यों तथा मित्रों के खातों में जमा कर अनाधिकृत रूप से अवैध निकासी कर ली।
जांच में यह राशि 1,12,783 /- है गबन की राशि विस्तृत जांच के दौरान बढ़ सकती है। प्राथमिक जांच में यह स्पष्ट है कि अनिल कलावत नें वित्तीय अनियमितता लाखों रुपयों की गई एवं इस कारण अनिल कलावत के विरूद्ध प्रथम सूचना रिपार्ट लेख की गई।
जिस पर से थाना बमोरी में अपराध क्रमांक 160 / 2016 अंतर्गत धारा 409 भा.दं.वि. का पंजीबद्ध किया गया एवं प्रकरण में विवेचना के दौरान एवं अभियोजन के साक्षी गवाही के आधार पर
अभियोजन नें बैंक की कार्यप्रणाली के बारे में यह भी बताया कि बैंक में प्रत्येक अधिकारी का पृथक आईडी होता है तथा वह अधिकारी बैंक खातों को अपनी आईडी से खोलकर देख सकता है और परिवर्तित कर सकता है। यह आईडी बायोमेटिक सिस्टम के आधार पर होती है।
इस कारण केवल वही अधिकारी खातों को खोल सकता है जिसकी अंगुलियों के निशान सिस्टम के द्वारा पहचाने जाते है।
सामान्यतः प्रत्येक अंतरण था आहरण की कार्यवाही में व्हाउचर के माध्यम से कार्यवाही की जाती है परंतु शाखा प्रबंधक को ऐसे विशेष अधिकार दिये जाते हैं जिससे वह बिना व्हाउचर के अपने बैंक के खातों को खोलकर देख सकता है और उनमें परिवर्तन कर सकता है। उक्त विशेष अधिकार का प्रयोग कर किये गये संव्यवहारों के माध्यम से राशियों का अंतरण किये जाने के आरोप सिद्ध पर न्यायालय नें विशेष टिप्पणी की है की बैंक में आम रूप से जमाकर्ता व्यक्ति अपनी धनराशि बैंक में इस विश्वास के साथ जमा करता है कि वह जब चाहे अपने पैसे को निकाल सकता है। ऐसे में बैंक में जमा राशि बैंक के कब्जे की राशि होती है। जहां बैंक ने उसके कब्जे की समस्त धनराशि बैंक के प्रमुख अधिकारी ब्रांच मैनेजर के कब्जे में होती है. विशेष अधिकारों का आक्षेप अनुसार गलत उपयोग कर यदि ऐसी धनराशि को अन्य खातों में अंतरित करता है तो फरियादी बैंक होती है वह व्यक्ति नहीं, जिसके खाते से धनराशि अंतरित होती है तथा ऐसे सद्भाविक खातेदार को धनराशि लौटाये जाने की जिम्मेदारी भी बैंक की होती है। ऐसे में कई बार ऐसे खातेधारकों को यह मालूम भी नहीं होता है कि उनके खाते से पैसे अंतरित हुए हैं।
वर्तमान प्रकरण में एन.पी.ए. के खाताधारक हैं जो स्वयं ही बैंक आने से बचते हैं।
आरोपी अनिल कलावत का आपराधिक कृत्य करीब 150 खातेधारकों के खाते से 55 लाख रूपये के करीब धनराशि का दुरूपयोग कर अपराध किया है। आम जनता का बैंकिंग संस्थाओं पर विश्वास है वह अपनी धनराशि व आभूषण बैंक में रखते हैं बैंक के ब्रांच मैनेजर उक्त धनराशि के रक्षक होते हैं। यदि रक्षक ही भक्षक हो जाए तो समाज में गलत सोच निर्मित होगी, लोगों का बैंकों के प्रति विश्वास कम होगा।
उक्त तथ्यों व परिस्थितियों के आलोक में आरोपी जिस प्रकार से बैंक के खाताधारकों की धनराशि को अपने तथा रिश्तेदारों के खातों में स्थानांतरित कर दुरूपयोग कर गंभीर अपराध कारित किया जाना सिद्ध पाकर आरोपी अनिल कलावत को धारा 409 भा.द.स. के आरोप में 07 वर्ष (सात वर्ष) के कठोर कारावास एवं 5,00,000/- रूपये (पांच लाख रूपये) के अर्थदण्ड से दण्डित करते हुए सजा सुनाई गई अर्थदण्ड की राशि अदा न करने पर व्यतिक्रम में 01 वर्ष (एक वर्ष) का कारावास भुगताया जावे।
शासन की और से पैरवी राहुल पाण्डे अपर लोक अभियोजक द्वारा की गई और शासन का पक्ष रखते हुये की जिससे आम जान का पैसा बैंको में सुरक्षित रहे और सजा करने में अहम भूमिका निभाई।
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