विप्र पूजन के साथ ऋषि पंचमी महोत्सव संपन्न
श्री राम कथा के मर्म पर श्रद्धा, समर्पण और भावना बोध कराया
हाथरस। (आरएनआई) बीता उदय और संध्याकाल नगर के सद्गृहस्त संत के नाम रहे। इस अवसर पर आलौकिक विप्र पूजन और उससे पूर्व विप्रार्चन की वेदिक धुन ने पूरे वातावरण को सप्त ऋषियों की आभा में समाहित सा कर दिया था।
जी हाँ। हम बात नगर के सद्गृहस्त संतों में गिने जाने वाले गोलोकवासी बृजनाथशरण अरोड़ जी के अवतार पर सप्त ऋषि पूजन की कर रहे हैं। ब्रज के द्वार कहे जाने वाले हाथरस नगर के चक्की बाजार स्थित गोपाल धाम में सूर्योदय से ही भक्ति-भाव, वेदिक माहौल और मंत्रोच्चारण की धुन के साथ पूजा और अर्चना का क्रम ही यह बता रहा था कि ऋषि पंचमी पर विप्रो का पंजन है। वेदिक रीतियों और पूजन के बाद मध्याह्न में ब्राह्मण आरती-पूजन के बाद विप्रों को जिमाना (भोजन प्रसादी) आरंभ किया। पूडी प्रसादी, सब्जी प्रसादी, रसमलाई प्रसादी, दही बड़ा प्रसादी, इमरती प्रसादी आदि के साथ विप्रों ऋषि परंपरानुसार भोज उपरांत हाथ धुला यथायोग्य दक्षिणा प्रदान कर ससम्मान विदा किया।
संध्या को श्री राम कथा महोत्सव के तहत श्री भक्तमाल कथा मर्मज्ञ श्रद्धेय मदनमोहन दास जी महाराज के श्री मुख से श्री राम कथा का वाचन हुआ। उन्होंने बताया कि संत अर्थात जिसकी सभी बासनायें शांत हो जाये। सद्गृहस्त संत अर्थात गृहस्थ आश्रम में भी रह कर बासनाओं रहित जीवन जीये। साधु अर्थात जिसकी जीभा स्वाद रहित रहते हुए एक सात्विक प्रवृत्ति का परिपालन करे। उसे ही सद्गृहस्त संत कह सकते हैं। हालांकि संत की तुलना करना इतना आसान नहीं। फिर भी संत की तुलना किसी बेषभूषा से नहीं बल्कि उसके आचरण से हो सकती है। 16 से 20 सितंबर तक महाराज जी राम कथा के अति मर्मज्ञ पहलुओं पर बहुत ही सरल मर्म पूर्ण चर्चा की। श्री राम कथा के समापन पर श्री रामायण जी व राम जी की आरती के साथ पांच दिवसी ऋषि पंचमी महोत्सव का समापन हुआ।
इस अवसर पर भक्ति शिरोमणि पं. भोलाशंकर शर्मा, रघुनंदन अरोड़ा, आशीष जैन, गोविंद शरण गुप्ता आदि सैकड़ों भक्ति परिकरजनों की उपस्थित ने सनातन की गरिमामई व्यवस्था को दर्शाया।
पीसी शर्मा हाथरस
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