'वसुधैव कुटुम्बकम् का देश परिवारों में एकता के लिए कर रहा संघर्ष'; शीर्ष कोर्ट की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने संयुक्त परिवारों के खत्म होने पर चिंता जताते हुए कहा कि वसुधैव कुटुम्बकम् वाला भारत आज अपने ही परिवारों में एकता बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है। परिवार की अवधारणा ही खत्म होती जा रही है और हम एक व्यक्ति-एक परिवार के कगार पर खड़े हैं।

नई दिल्ली (आरएनआई) परिवार की संस्था के ‘क्षरण’ पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में लोग ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के सिद्धांत में विश्वास करते हैं, लेकिन करीबी रिश्तेदारों के साथ भी एकजुट रहने में विफल रहते हैं। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश की 68 वर्षीय समतोला देवी की याचिका का निपटारा करते हुए की। समतोला ने अपने सबसे बड़े बेटे कृष्ण कुमार को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में अपने पारिवारिक घर से बेदखल करने की मांग की थी।
जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस एसवी एन भट्टी की पीठ ने कहा, भारत में हम वसुधैव कुटुंबकम में विश्वास करते हैं, यानी पूरी धरती एक परिवार है। हालांकि, हम अपने परिवार में भी एकता कायम रखने में सक्षम नहीं हैं, दुनिया के लिए एक परिवार बनाने की बात तो दूर की बात है। 'परिवार' की अवधारणा ही खत्म होती जा रही है और हम एक व्यक्ति एक परिवार की कगार पर खड़े हैं। पीठ के समक्ष रिकॉर्ड में लाया गया कि कल्लू मल नामक व्यक्ति (जिनकी बाद में मृत्यु हो गई) और उनकी पत्नी समतोला देवी के पांच बच्चे- तीन बेटे और दो बेटियां थीं। समतोला देवी का सुल्तानपुर में तीन दुकानों वाला एक घर था। समय के साथ, माता-पिता और उनके बेटों, खासकर कृष्ण कुमार, जिन्होंने पारिवारिक व्यवसाय संभाला, के बीच विवाद होने लगे। 2014 में कल्लू मल ने कृष्ण कुमार पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाया और एसडीएम से कानून के अनुसार उनके खिलाफ उचित कार्रवाई करने का अनुरोध किया। 2017 में दंपती ने भरण-पोषण की मांग की। पारिवारिक अदालत ने दंपती को 8000 रुपये प्रति माह मंजूर किया, जिसे दो बेटों, कृष्ण कुमार और जनार्दन को बराबर चुकाना था।
2019 में कल्लू मल और उनकी पत्नी ने कृष्ण कुमार को बेदखल करने के लिए याचिका दायर की। न्यायाधिकरण ने उन्हें अपने माता-पिता की अनुमति के बिना घर के किसी भी हिस्से पर अतिक्रमण न करने का आदेश दिया लेकिन बेदखली का आदेश नहीं दिया। इस निर्णय से असंतुष्ट माता-पिता ने अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष अपील की, जिसने कुमार को बेदखल करने का आदेश दिया लेकिन बाद में हाईकोर्ट ने इसे उलट दिया। इस बीच हाईकोर्ट में मामले के लंबित रहने के दौरान कल्लू मल का निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने कानूनी कार्यवाही जारी रखी और अपने बेटे को बेदखल करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। उन्होंने तर्क दिया कि घर उनके पति की स्व-अर्जित संपत्ति थी और कृष्ण कुमार का वहां रहने का कोई वैध दावा नहीं है। हालांकि शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के प्रावधानों में कहीं भी किसी ऐसे वरिष्ठ नागरिक के स्वामित्व वाले या उससे संबंधित किसी भी परिसर से व्यक्तियों को बेदखल करने की कार्यवाही करने का विशेष प्रावधान नहीं है। यदि यह दावा स्वीकार कर लिया जाता है कि घर कल्लू मल की स्वयं अर्जित संपत्ति थी और केवल उन्हीं का था तो जब उन्होंने इसे अपनी बेटियों और दामाद को हस्तांतरित कर दिया तो वे अब इसके मालिक नहीं रहे। उस स्थिति में, न तो कल्लू मल और न ही उनकी पत्नी को घर में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को बेदखल करने का कोई अधिकार है।
पीठ ने कहा, रिकॉर्ड में ऐसी कोई शिकायत या सबूत नहीं है जिससे पता चले कि कृष्ण कुमार ने अपने माता-पिता को अपमानित किया या किसी भी तरह से उनके रहने में हस्तक्षेप किया। अदालत ने कहा कि कृष्ण कुमार को बेदखल करने का आदेश देना विवेकपूर्ण नहीं लगता क्योंकि बेटा होने के नाते उनके पास घर में रहने का निहित लाइसेंस भी है।
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