वन विभाग की भूमि पर खुल गया रेस्टोरेंट, करोड़ों की भूमि पर थाना प्रभारी की पत्नी का कब्जा
होटल संचालित कर किया जा रहा है व्यवसाय न्यायालय ने इस भूमि को वन विभाग की भूमि माना।
ग्वालियर (आरएनआई) वन विभाग के जंगल मानव जीवन के लिए कितने कीमती होते हैं, इसका पता भीषण गर्मी के दिनों में चलता है। लेकिन धीरे धीरे कर वन विभाग की जमीनों पर जहां भूमाफियाओं ने अपना कब्जा कर रखा है, वहीं कुछ लालची लोगों ने वन विभाग के जंगल के जंगल काट डाले। मजे की बात यह है कि वन विभाग के उच्चाधिकारियों के संज्ञान में पूरा मामला होने के बाद भी इस पर कार्रवाई न होना संदेह उत्पन्न करता है। आइये जानते हैं ऐसे ही एक मामले को जिसमें वन विभाग की लापरवाही के कारण करोड़ों रुपए की भूमि पर रेस्टोरेंट निर्मित कर लिया गया है।
घाटीगांव थानान्तर्गत ग्राम दोरार में वन विभाग की बेशकीमती जमीन जिसका सर्वे नंबर 1221/1 है पर मधुबन नामक रेस्टोरेंट निर्मित कर व्यवसाय संचालित किया जा रहा है। बताया जाता है कि मधुबन नाम का यह रेस्टोरेंट थाना प्रभारी विनय शर्मा ने अपनी पत्नी प्रियंका शर्मा के नाम करा रखा है। बताया जाता है कि 16 जनवरी 1969 में मध्य प्रदेश शासन द्वारा एक गजट नोटिफिकेशन जारी कर सर्वे क्रमांक 1221/1 की लगभग पांच सौ साठ हेक्टेयर की भूमि को वन भूमि घोषित किया गया था। सूत्रों के मुताबिक पूर्व में इस जमीन का कुछ हिस्सा किसान मुन्नालाल गुप्ता के नाम पर था जिसे वन विभाग द्वारा 28.3 2013 को तीन लाख 960 साठ रुपए मुआवजा देकर अपने नाम करा ली गई थी। लेकिन बताते हैं कि पूर्व थाना प्रभारी विनय शर्मा ने किसान को बरगलाकर इस जमीन का डायवर्सन, नामांतरण आदि कराकर जमीन अपनी पत्नी प्रियंका शर्मा के नाम पर करा लिया और दो माह बाद ही इस जमीन पर भव्य रेस्टोरेंट खोल लिया गया। अब यहां सवाल यह उठता है कि जब किसान उक्त जमीन का मुआवजा ले लिया तब वह उस जमीन का विक्रय अनुबंध कैस कर सकता है? जब यह मामला वन विभाग के संज्ञान में आया तब 25.5 2019 को वन विभाग ने अपराध क्रमांक 701/ 20 पर प्रियंका शर्मा के खिलाफ मामला दर्ज किया। इस पर प्रियंका शर्मा हाईकोर्ट पहुंची जहां से इस मामले को खारिज कर दिया गया। हाईकोर्ट से निराशा मिलने के बाद प्रियंका शर्मा ने जमीन से संबंधित मामले को जिला सत्र न्यायालय में उठाया लेकिन यहां भी माननीय न्यायालय ग्वालियर ने इस प्रकरण को 27.4.2024 को खारिज कर दिया और इस भूमि को वन विभाग की मानते हुए कार्रवाई करने के लिए वन विभाग को स्वतंत्र घोषित कर दिया। यहां वन विभाग को इस जमीन को मुक्त कराने की कार्रवाई की जाना चाहिए थी लेकिन आज दिनांक तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई। वन विभाग की चुप्पी से पता चलता है कि इस पूरे मामले में वन विभाग के अधिकारी भी कहीं न कहीं संलिप्त हैं। आरटीआई कार्यकर्ता संकेत साहू के द्वारा प्रियंका शर्मा को जो दावा खारिज किया गया उसके आधार पर वन विभाग के अधिकारियों से वन भूमि को मुक्त करने के लिए आवेदन दिया।
यह है सुप्रीम कोर्ट का आदेश
यहां बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय ने दिनांक 12.12.96 को गोधावर्धन भारत सरकार एवं अन्य के एक प्रकरण में यह आदेश दिया था कि वन विभाग की जमीन का उपयोग वानिकी कार्य में किया जा सकता है। अर्थात यहां गैर वानिकी के कार्य संपादित नहीं किए जा सकते हैं।
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