लोक सभा चुनाव 2024 : न कोई मुद्दा न कोई शोर, मतदाता हैं खामोश
डॉ. समरेन्द्र पाठक, वरिष्ठ पत्रकार
नयी दिल्ली (आरएनआई) देश में आम चुनाव का पहला चरण 102 सीटों पर आगामी 19 अप्रैल को मतदान के साथ पूरा हो जायेगा।यानी इस चरण के लिए प्रचार का समय मात्र सप्ताह भर रह गया है,लेकिन अभी तक न कोई मुद्दा बन पाया है न ही चुनावी शोर है।अधिकांश शहर से गांव तक सूना पड़े हैं और मतदाता खामोश हैं।
यह आलम है,उन क्षेत्रों का जहां प्रथम चरण में वोट डाले जाएंगे। हैरत तो यह है, कि चुनावी बिगुल बजते ही सघन प्रचार,शोर शराबे एवं भीषण गहमागहमी के लिए प्रसिद्ध बिहार, उत्तर प्रदेश,पश्चिम बंगाल एवं ओडिसा में भी इस चरण का प्रचार अभियान बेदम है।इन क्षेत्रों में कहीं कहीं भाजपा के होल्डिंग एवं प्रचार गाड़ियां तो मिल जायेगी मगर बिरले ही अन्य दलों के प्रचारक मिलेंगे।
इन क्षेत्रों की मतदाताओं की स्थिति तो प्रायः ऐसी है, कि जैसे उन्हें चुनाव अमुक तारीख को होने की जानकारी ही नहीं हो।हालाँकि स्थानीय प्रशासन अपनी ओर से उन्हें वोट डालने के लिए प्रेरित कर रहा है।प्रधान मंत्री ने गत दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ,गाजियाबाद एवं बिहार के कुछ स्थानों पर रैलियां एवं सभाएं कर सरगर्मी लाने की कोशिश की मगर , मतदाता खामोश ही हैं।
वयोबृद्ध प्रो.बी.एन. मिश्र कहते हैं,कि यह प्रायः पहला आम चुनाव है,कि अभी तक चुनाव का प्रमुख मुद्दा नहीं बन पाया है।उन्होंने यह भी कहा कि इसका मतलव है,कि मतदाताओं ने इस बार चुप रहकर कोई बड़ा फैसला देने का निर्णय लिया है।यह चुप्पी बताता है, कि सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन 400 पार करेगा या 40 पर अटक जायेगा।
दिल्ली विश्वविद्यालय में भौतिक शास्त्र के प्रोफेसर रहे योगेश कुमार कहते हैं,जिन इलाकों में चुनाव पहले चरण में होना है,वहां के शहर एवं गांव चुनावी माहौल से एकदम दूर है।जैसा कुछ हो ही नहीं रहा है।उन्होंने कहा कि अपने पांच सौ किलोमीटर की यात्रा के दौरान उन्होंने खामोशी का आलम देखा।
प्रो. कुमार ने अपने बचपन के दिनों में होने वाले चुनाव की चर्चा करते हुए कहा कि प्रचार पर्व त्यौहार की तरह होता था।हम बच्चों को कांग्रेस का चुनाव चिन्ह जोड़ा बैल एवं जनसंघ का दीया मिल जाता था और हमलोग उसे अपनी शर्ट के दोनों तरफ लगाकर गलियों में प्रचार करते थे।
अस्सी वर्षीय प्रो.आर.एन. सिंह कहते हैं कि यह आलम ठीक नहीं है।उन्होंने कहा कि हमने अपनी जिंदगी में खामोशी भरा चुनाव नहीं देखा था। शायद यह पहला चुनाव है।लोग खुलकर हिस्सा नहीं ले पा रहे हैं। लोग भयभीत हैं।उनमें निराशा का भाव है।यह बड़े बदलाव का सीधा सा संकेत है।
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