लोकसभा चुनावों के बाद मुसलमानों से नाराज मायावती ने अब बनाया ये प्लान, नए सिरे से बन रही बसपा की रणनीति
बहुजन समाज पार्टी ने दलितों के साथ मुसलमानों को अपनी पार्टी में जोड़ने के लिए "प्लान एम" तैयार किया है। इस प्लान के तहत बहुजन समाज पार्टी ने सोमवार से सेक्टर और मंडल की कमेटियों के माध्यम से मुसलमानों को अपनी पार्टी से जोड़ने का बड़ा अभियान शुरू कर चुकी हैं।
नई दिल्ली (आरएनआई) लोकसभा चुनाव के बाद आए परिणामों से बसपा सुप्रीमो मायावती मुसलमानों से नाराज हो गई थीं। नाराजगी इस कदर थी कि उन्होंने भविष्य के चुनाव में मुसलमान को बहुत सोच समझ कर मौका देने की बात तक कह डाली थी। लेकिन उत्तर प्रदेश के सियासी समर में जिस तरीके से समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी करनी शुरू की, तो बहुजन समाज पार्टी को अपनी रणनीति में एक बार फिर से बड़ा बदलाव करना पड़ा है।
बहुजन समाज पार्टी ने दलितों के साथ मुसलमानों को अपनी पार्टी में जोड़ने के लिए "प्लान एम" तैयार किया है। इस प्लान के तहत बहुजन समाज पार्टी ने सोमवार से सेक्टर और मंडल की कमेटियों के माध्यम से मुसलमानों को अपनी पार्टी से जोड़ने का बड़ा अभियान शुरू कर चुकी हैं। पार्टी से जुड़े रणनीतिकारों का मानना है कि दलित और मुसलमान के गठजोड़ के साथ बहुजन समाज पार्टी आने वाले उपचुनावों और विधानसभा के चुनाव में बड़ा सियासी फेर बदल कर सकती हैं।
बहुजन समाज पार्टी आने वाले विधानसभा के उपचुनावों से लेकर 2027 में होने वाले विधानसभा के चुनावों को लेकर बड़ी सियासी रणनीतियां तैयार करने में जुट गई है। पार्टी ने इसी रणनीति के तहत एक बार फिर से उत्तर प्रदेश के मुसलमानों पर भरोसा जताने के लिए दो कमेटी के माध्यम से संपर्क साधना शुरू किया है। पार्टी में अपने नए सेक्टर में जिन मंडलों को शामिल किया है, वहां पर मुस्लिम नेताओं को भी जिम्मेदारियां दी गई हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने शम्सुद्दीन राइनी और मोहम्मद अकरम जैसे पार्टी के मुस्लिम चेहरों को आगे कर इस समाज के लोगों को जोड़ने की जिम्मेदारी दी है। बहुजन समाज पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि जिस तरीके से एक मंडल में यह प्रयोग शुरू हुआ है, वह धीरे-धीरे नए मंडल और सेक्टर में भी आगे बढ़ाया जाएगा।
दरअसल बहुजन समाज पार्टी ने तमाम सियासी गुणागणित को समझते हुए बीते लोकसभा चुनाव में मुस्लिम प्रत्याशियों पर मजबूती से दांव लगाया था। इस चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती ने 35 मुस्लिम उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे। हालांकि लोकसभा के चुनाव में बसपा एक बार फिर 2014 की तरह शून्य पर ही सिमट गई। जिसमें सिर्फ मुस्लिम प्रत्याशी ही नहीं बल्कि अन्य सभी जातियों के प्रत्याशी चुनाव हार गए। लेकिन इस चुनाव में जिस तरीके से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन के साथ मुस्लिम मतदाता जुड़े, उससे मायावती को बड़ा झटका लगा था। इस सियासी समीकरण के आधार पर मायावती ने मुस्लिम समुदाय को भविष्य के चुनाव में बहुत सोच समझकर मौका देने की बात कही थी। सियासी गलियारों में चर्चाएं तभी होने लगी थीं कि अगर मायावती का यही फैसला रहा, तो विपक्ष में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मजबूती के साथ मुसलमान को अपने साथ जोड़ लेगा।
क्योंकि बहुजन समाज पार्टी ने एक तरह से मुसलमान को दरकिनार करने की बात की थी। इसको समझते हुए सपा और कांग्रेस ने और मजबूती के साथ मुसलमान को अपने साथ जोड़ना शुरू कर दिया। यही वजह रही कि बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती को अपनी सियासी रणनीति में एक बार फिर से फेरबदल करना पड़ा है। हालांकि सियासी फेरबदल में मायावती ने अभी दलितों को प्रमुखता से आगे रखते हुए मुसलमान के फैक्टर को अपनी रणनीति में शामिल किया है। बहुजन समाज पार्टी के "प्लान एम" को जमीन पर उतारने के लिए बड़े नेताओं को भी लगाया गया है। इसके अलावा जो रणनीति तैयार की गई है, उसमें ज्यादा से ज्यादा मंडल और सेक्टर की कमेटी में मुसलमानों की सहभागिता की बात की गई है। बहुजन समाज पार्टी के रणनीतिकारों का कहना है कि दलित और मुस्लिम समुदाय के साथ बहुजन समाज पार्टी आने वाले विधानसभा के उपचुनाव में मजबूती से सियासी मैदान में उतरेगी। इसके अलावा 2027 के विधानसभा चुनाव में भी बहुजन समाज पार्टी का यह सियासी कॉम्बिनेशन बड़ा असर दिखाएगा।
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