राधौगढ़ में दिग्विजय के पुत्र की सिर्फ 4505 से जीत! भविष्य के लिए नए संकेत!
गुना, (आरएनआई) कांग्रेस की राजनीति में चाणक्य व राष्ट्रीय राजनीति में 'राजा' यानी दिग्विजय सिंह को जिस राघौगढ़ विधानसभा क्षेत्र ने स्थापित नेता बनाया और 1977 से अब तक जहां से कांग्रेस कभी नहीं हारी वह अजेय दुर्ग 3 दिसंबर की सुबह शुरुआती दौर की मतगणना में दरकता नज़र आया। वोटों की गिनती शुरू से अंत तक रोमांच से भरी रही। जब परिणाम आया तो सिर्फ 4505 वोट से कांग्रेस जीती।
जीत के बाद भी दिग्विजय सिंह के सुपुत्र और कांग्रेस कैंडिडेट जेवी सिंह के चेहरे पर कोई खास खुशी दिखाई नहीं दी, सिवाए इस संतोष के कि "जीत गए"। जबकि नजदीकी हार के बाद भी बीजेपी कैंडिडेट हीरेंद्र सिंह "बंटी बना" और उनके समर्थकों के चेहरे पर हार की कसक के बीच भी "जीत का भाव" दिखा। यह आत्मविश्वास भी दिखा कि अब इस अभेद दुर्ग को भी ढहाया जा सकता है।
इस चुनाव के पहले तक बीजेपी ने कभी राघौगढ़ सीट को गंभीरता से लिया ही नहीं था। इलाके में एक चर्चा चला करती थी कि राघौगढ़ से बीजेपी का टिकिट भी 'राजा साहब' फाइनल करते हैं। ये बात भी यहां के बीजेपी कार्यकर्ताओं के मन में बैठी हुई थी कि राघौगढ़ को लेकर ऊपर सब मिले हुए हैं, हम जमीन पर किससे, क्यों और किसके भरोसे लड़ें!
किंतु, इस बार ये भ्रम टूट गया। अब इसका श्रेय इलाके के लोग और बीजेपी के कार्यकर्ता भी 'महाराज' को दे रहे हैं। महाराज यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमलनाथ सरकार को पर्दे के पीछे से चला रहे दिग्विजय सिंह की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान उठाया था। ऐसे में माना जा रहा है कि बीजेपी सरकार बनवाने के बाद से ही महाराज ने कांग्रेस के किले को ढहाने की व्यापक रणनीति तैयार कर रखी है।
इसी रणनीति के चलते महाराज ने हीरेंद्र सिंह का चयन किया। उन्हें जांचा, परखा, पार्टी ज्वाइन कराई और टिकिट के लिए आश्वस्त करने के बाद टिकिट भी दिलाया फिर हर स्तर पर मदद भी की। चुनाव के दौरान खुद महाराज ने राजा के क्षेत्र में सभाएं लीं और गृहमंत्री अमित शाह की सभा भी आयोजित कराई। महाराज के इन तेवरों से साफ संकेत मिलता है कि किले की राजनीति को शून्य करना उनकी राजनैतिक प्राथमिकताओं में से एक है। इसमें वो सफल होंगे या नहीं ये भविष्य के गर्भ में है।
किले को डगमगाने वाले बंटी बना को शानदार चुनाव लड़ने की बधाई न केवल ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दी बल्कि सीएम शिवराज सिंह ने भी उनकी पीठ थपथपाई है। कार्यकर्ता भी उत्साह में हैं कि अगली बार जरूर जीतेंगे। सुना है शुक्रवार को सीएम खुद राघौगढ़ आकर सभा लेने वाले हैं। इससे साफ है कि अब हीरेंद्र सिंह ही राघौगढ़ के बिग शॉट हैं। जिनमें भविष्य की संभावनाएं देखते हुए पार्टी नेता विशेषकर ज्योतिरादित्य सिंधिया सतत ऊर्जा देने वाले हैं। अब ये टीम बंटी पर निर्भर करेगा कि उसने चुनाव के दौरान जितना धैर्य, ऊर्जा, ललक और सक्रियता दिखाई है वैसा ही टेंपो आगे रख पाती है या नहीं।
वैसे, यह एक इत्तेफाक नहीं लगता कि दिग्गी राजा के लगभग सारे वजनदार मोहरे पिट गए। गोविंद सिंह लहार, केपी सिंह कक्काजू, प्रियव्रत सिंह खींची, कुणाल चौधरी, सज्जन वर्मा, गोपालसिंह डग्गी राजा, हुकुम सिंह कराड़ा, पीसी शर्मा, जीतू पटवारी, लाखन सिंह और यहां तक कि छोटे भाई लक्ष्मण सिंह भी चुनाव हार गए। ऐसे में राघौगढ़ सीट भी सिर्फ और सिर्फ 4505 वोटों से जीत पाना भविष्य के लिए नए संकेत से कम नहीं है।
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