'यहां केवल गाउन देखकर व्यवहार नहीं किया जाता', वकीलों को वरिष्ठ पद देने के खिलाफ दायर याचिका खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट में 70 वकीलों को वरिष्ठ पदनाम दिए जाने के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी। न्यायमूर्ति बीआर गवई और के विनोद चंद्रन की पीठ ने  कहा कि हमें नहीं लगता कि इस न्यायालय में किसी को सिर्फ इसलिए बेहतर व्यवहार मिलता है क्योंकि उसने अलग गाउन पहना हुआ है।

Feb 7, 2025 - 17:00
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'यहां केवल गाउन देखकर व्यवहार नहीं किया जाता', वकीलों को वरिष्ठ पद देने के खिलाफ दायर याचिका खारिज

नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट में 70 वकीलों को वरिष्ठ पदनाम दिए जाने के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि यहां किसी के साथ भी गाउन के आधार पर बेहतर व्यवहार नहीं किया गया। 

न्यायमूर्ति बीआर गवई और के विनोद चंद्रन की पीठ ने अधिवक्ता मैथ्यूज जे नेदुम्परा और कई वकीलों की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि हमें नहीं लगता कि इस न्यायालय में किसी को सिर्फ इसलिए बेहतर व्यवहार मिलता है क्योंकि उसने अलग गाउन पहना हुआ है।

अदालत में अधिवक्ता नेदुम्परा ने बताया कि कैसे वकीलों को बॉम्बे उच्च न्यायालय में जमानत आवेदनों सहित अपने मामलों को सूचीबद्ध करवाने के लिए कतार में लगना पड़ता है। इस पर न्यायमूर्ति गवई ने उनसे पूछा कि क्या उन्हें पता है कि संबंधित न्यायाधीश मामलों की सुनवाई के लिए शाम सात बजे तक अदालत में बैठे रहे। न्यायाधीश भी इंसान हैं। वे अपना सर्वश्रेष्ठ करने की कोशिश कर रहे हैं।

इस पर नेदुम्परा ने कहा कि त्वरित न्याय प्रदान करने के लिए अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति की आवश्यकता है। पीठ ने कहा कि अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति करना हमारे हाथ में नहीं है।  नेदुम्परा ने कहा कि हमारे वकील मित्र अदालत से डरते हैं। पीठ ने कहा कि कोई भी डरने वाला नहीं है  वकील निडर हैं। वकीलों ने इस देश के स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया है। बेहतर होगा कि आप संसद में निर्वाचित हों और इसे हटाने के लिए एक अधिनियम पारित करें। 

याचिका में वकीलों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत करने और अल्पसंख्यकों को पक्ष और विशेषाधिकार प्रदान करने पर जोर दिया गया है। याचिका में कहा गया है कि अधिवक्ता अधिनियम की धारा 16 और 23(5) को चुनौती दी गई है, जो वकीलों, वरिष्ठ अधिवक्ताओं और अन्य अधिवक्ताओं के दो वर्ग बनाती है। इससे वास्तविक व्यवहार में एक अकल्पनीय तबाही और असमानताएं पैदा हुई हैं। 

पिछले महीने मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका में न्यायाधीशों के खिलाफ लगाए गए अपमानजनक और निराधार आरोपों पर आपत्ति जताई थी। पीठ ने कहा था कि याचिका को देखकर लगता है कि संस्था के खिलाफ बहुत ही अपमानजनक और निराधार आरोप लगाए गए हैं।

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