महिला जजों की बर्खास्तगी: तीन दिसंबर को सीलबंद रिपोर्ट पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट मध्य प्रदेश सरकार द्वारा बर्खास्त की गई दो महिला सिविल जजों के खिलाफ एक सीलबंद रिपोर्ट पर तीन दिसंबर को विचार करेगा। इस रिपोर्ट में कथित तौर पर उनके असंतोषजनक प्रदर्शन और अन्य कारणों का विवरण है।
नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट मध्य प्रदेश सरकार द्वारा बर्खास्त की गई दो महिला सिविल जजों के खिलाफ एक सीलबंद रिपोर्ट पर तीन दिसंबर को विचार करेगा। इस रिपोर्ट में कथित तौर पर उनके असंतोषजनक प्रदर्शन और अन्य कारणों का विवरण है। शीर्ष कोर्ट ने पिछले साल 11 नवंबर को इस मामले का संज्ञान लिया था, जब राज्य सरकार ने छह महिला जजों को उनकी कथित असंतोषजनक कार्यप्रणाली के कारण बर्खास्त कर दिया था।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने 23 जुलाई 2023 को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को यह आदेश दिया था कि वह जजों की बर्खास्तगी पर फिर से विचार करे। इसके बाद, 1 अगस्त 2023 को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की पूर्ण अदालत ने अपने फैसले पर पुनर्विचार किया और चार जजों को कुछ शर्तों को फिर से बहाल करने का फैसला लिया। ये चार जज ज्योति वर्गड़े, सोनाक्षी जोशी, प्रिया शर्मा और रचना अतुलकर जोशी थीं।
सरिता चौधरी और अदिति कुमार शर्मा के मामले में पहले आदेशों को रद्द नहीं किया गया और हाईकोर्ट ने इन दोनों जजों के खिलाफ जानकारी को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष सीलबंद रिपोर्ट के रूप में रखने का फैसला लिया। बुधवार को बर्खास्त जजों में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहीं वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने सवाल उठाया कि क्या उनके मुवक्किल के खिलाफ कोई नया सबूत है, जिसे चुनौती दी जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने सीलबंद रिपोर्ट की प्रति अमिकस क्यूरी और वरिष्ठ वकील गौरव अग्रवाल को देने का आदेश दिया है। ताकि वे पीठ को रिपोर्ट में मौजूद नए सबूतों के बारे में जानकारी दें सकें। शीर्ष कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस रिपोर्ट को फिलहाल बर्खास्त किए गए जजों के वकीलों के साथ साझा नहीं किया जाएगा। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में यह भी कहा था कि बर्खास्तगी के बावजूद कोरोना महामारी के कारण इन जजों के काम का ठीक से मूल्यांकन नहीं किया जा सका था।
इस मामले में एक बर्खास्त जज ने कहा कि उनकी बर्खास्तगी बिना किसी उचित प्रक्रिया के की गई थी, जबकि उनका सेवा रिकॉर्ड साफ था और उनके खिलाफ कोई नकारात्मक टिप्पणी नहीं थी। उन्होंने आरोप लगाया कि उनको उनका हक नहीं दिया गया और उनके खिलाफ कार्रवाई संविधान के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी दावा किया कि मातृत्व और बच्चे के देखभाल के लिए ली गई छुट्टियों को काम के मूल्यांकन में शामिल करना उनके अधिकारों का उल्लंघन है, क्योंकि यह एक महिला और शिशु का मौलिक अधिकार है। अब सुप्रीम कोर्ट तीन दिसंबर को इस मामले पर सुनवाई करेगा और सीलबंद रिपोर्ट की समीक्षा करेगा।
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