मनरेगा बजट स्थिर रखने पर कांग्रेस ने सरकार पर बोला हमला, कहा- यह ग्रामीण आजीविका की उपेक्षा है

कांग्रेस ने कहा कि इस महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच की "उपेक्षा" ग्रामीण आजीविका के प्रति सरकार की उदासीनता को दर्शाती है। प्रमुख ग्रामीण रोजगार योजना के लिए आवंटन 86,000 करोड़ रुपये रखा गया है, जो पिछले वर्ष के समान है।

Feb 2, 2025 - 13:45
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मनरेगा बजट स्थिर रखने पर कांग्रेस ने सरकार पर बोला हमला, कहा- यह ग्रामीण आजीविका की उपेक्षा है

नई दिल्ली (आरएनआई) कांग्रेस ने रविवार को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के बजट को स्थिर रखने को लेकर केंद्र सरकार पर हमला बोला। कांग्रेस ने कहा कि इस महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच की "उपेक्षा" ग्रामीण आजीविका के प्रति सरकार की उदासीनता को दर्शाती है। प्रमुख ग्रामीण रोजगार योजना के लिए आवंटन 86,000 करोड़ रुपये रखा गया है, जो पिछले वर्ष के समान है।

वित्त वर्ष 2023-24 में मनरेगा के लिए 60,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था, लेकिन अतिरिक्त धनराशि प्रदान की गई और वास्तविक व्यय 89,153.71 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। हालांकि, 2024-25 में इस योजना के लिए कोई अतिरिक्त आवंटन नहीं किया गया है।

कांग्रेस के संचार प्रभारी महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ते संकट के बावजूद सरकार ने 2024-26 के लिए मनरेगा का बजट 86,000 करोड़ रुपये पर स्थिर रखा है।  यह प्रभावी रूप से मनरेगा के लिए किए गए वास्तविक (मूल्य वृद्धि के लिए समायोजित) आवंटन में गिरावट को दर्शाता है।  ऊपर से चोट पर नमक छिड़कने के लिए, अनुमान बताते हैं कि बजट का लगभग 20% पिछले वर्षों के बकाए को चुकाने के लिए खर्च किया जाता है।

 यह प्रभावी रूप से मनरेगा की पहुंच को कम कर देता है, जिससे सूखा प्रभावित और गरीब ग्रामीण श्रमिक बीच में ही फंसे हुए ही छूट गए हैं।  यह श्रमिकों को दिए जाने वाले वेतन में किसी भी वृद्धि को भी रोकता है। इस चालू वित्तीय वर्ष में भी, न्यूनतम औसत अधिसूचित मजदूरी दर में केवल 7% की वृद्धि की गई। यह ऐसे समय में है जब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति 5% होने का अनुमान है। इसलिए, मनरेगा राष्ट्रीय वेतन में जो ठहराव का संकट है उसका आधार बन गया है।

उन्होंने कहा कि, इस महत्वपूर्ण सुरक्षा तंत्र के प्रति सरकार की उपेक्षा, ग्रामीण आजीविका के प्रति उसकी उदासीनता को उजागर करती है। मनरेगा एक वित्तीय वर्ष में प्रत्येक ऐसे परिवार के कम से कम एक सदस्य को 100 दिनों के वेतनभोगी रोजगार की गारंटी देता है, जिसके वयस्क सदस्य अकुशल श्रम कार्य करने के लिए स्वयंसेवा करते हैं। यह योजना महिलाओं के लिए कम से कम एक-तिहाई नौकरियां सुरक्षित रखती है।

कोविड महामारी के वर्ष 2020-21 में, जब लॉकडाउन के दौरान भारी संख्या में प्रवासियों की वापसी के बीच मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करने के लिए एक जीवनरेखा साबित हुआ, इस योजना पर 1,11,169 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।

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