भारत में सर्जिकल संक्रमण की दर कई उच्च आय वाले देशों से अधिक, आईसीएमआर का अध्ययन में खुलासा
अध्ययन को भारत के जय प्रकाश नारायण एपेक्स ट्रॉमा सेंटर मणिपाल के कस्तूरबा अस्पताल और मुंबई के टाटा मेमोरियल अस्पताल में किया गया था। अधिकारियों ने कहा कि इस अध्ययन का उद्देश्य अस्पताल में भर्ती होने के दौरान और छुट्टी के बाद एसएसआई से जुड़े जोखिमों का पता लगाना था।
नई दिल्ली (आरएनआई) भारत में सर्जिकल संक्रमण की दरों को लेकर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के द्वारा किए गए अध्ययन में कई सारी बातें सामने आई है। इस अध्ययन में पता चला है कि भारत के तीन प्रमुख अस्पतालों में सर्जिकल साइट संक्रमण (एसएसआई) की दर कई उच्च आय वाले देशों की तुलना में ज्यादा है।
यह अध्ययन 3,020 रोगियों पर किया गया था और इसमें पाया गया कि एसएसआई, स्वास्थ्य सेवा से जुड़े सबसे सामान्य संक्रमणों में से एक है। इस अध्ययन में जो सर्जरी सबसे ज्यादा प्रभावित हुई, वह थी ओपन रिडक्शन इंटरनल फिक्सेशन (ओआरआईएफ) और क्लोज्ड रिडक्शन इंटरनल फिक्सेशन (सीआरआईएफ) सर्जरी, जिसमें एसएसआई की दर 54.2 प्रतिशत थी।
एसएसआई से स्वास्थ्य में गंभीर समस्याएं हो सकती हैं, जिससे इलाज की लागत बढ़ जाती है और अस्पताल में रहने का समय भी ज्यादा हो जाता है। भारत में पोस्ट-डिस्चार्ज एसएसआई पर डेटा की कमी है, क्योंकि देश में इसके लिए कोई निगरानी प्रणाली नहीं है।
अध्ययन को भारत के जय प्रकाश नारायण एपेक्स ट्रॉमा सेंटर, मणिपाल के कस्तूरबा अस्पताल और मुंबई के टाटा मेमोरियल अस्पताल में किया गया था। मामले में अधिकारियों ने कहा कि इस अध्ययन का उद्देश्य अस्पताल में भर्ती होने के दौरान और छुट्टी के बाद एसएसआई से जुड़े जोखिमों का पता लगाना था।
साथ ही अध्ययन में यह भी सामने आया कि इन तीन अस्पतालों में एसएसआई की दर उन उच्च आय वाले देशों की तुलना में अधिक है, जहां यह दर 1.2 से 5.2 प्रतिशत के बीच होती है। भारत में कुछ राज्यों में एसएसआई दर 5 प्रतिशत से अधिक पाई गई।
अधिकारियों ने बताया कि उनका यह अध्ययन भारत में एसएसआई पर पहला बहुकेंद्रित निगरानी प्रयास था, जिसमें सर्जरी के बाद रोगियों की छह महीने तक निगरानी की गई। कुल 3,090 रोगियों में से 161 को एसएसआई हुआ, जिससे 5.2 प्रतिशत एसएसआई दर निकली। उनका कहना है कि जिन रोगियों को एसएसआई हुआ, उन्हें अस्पताल में अधिक समय तक रहना पड़ा और पोस्ट-डिस्चार्ज निगरानी ने 66 प्रतिशत मामलों का पता लगाने में मदद की।
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