भारत में पानी को लेकर 150 फीसदी बढ़ी टकराव की घटनाएं; पानी पर नियंत्रण को लेकर दुनियाभर में मारामारी
भारत समेत पूरी दुनिया में पानी का संकट किसी से छिपा नहीं है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पानी को लेकर टकराव की घटनाएं 150 फीसदी बढ़ी हैं। पानी पर नियंत्रण को लेकर दुनियाभर में मारामारी बढ़ रही है। वैश्विक स्तर पर टकराव के मामले 1477 फीसदी बढ़े हैं।
नई दिल्ली (आरएनआई) भारत में जल संघर्ष की घटनाओं में पिछले 12 महीनों में 150 फीसदी की वृद्धि हुई है। 2022 में जहां देश में जल संघर्ष की दस घटनाएं सामने आईं थीं, वहीं 2023 में यह संख्या बढ़कर 25 हो गई है। वहीं, दुनियाभर में पानी की लेकर जारी संघर्ष की घटनाओं में 50 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है। 2022 में वैश्विक स्तर पर जल संघर्ष की 231 घटनाएं सामने आईं थीं, वहीं 2023 में ये संख्या बढ़कर 347 पर पहुंच गईं।
यह खुलासा पैसिफिक इंस्टीट्यूट की ताजा रिपोर्ट में हुआ है। विश्व जल सप्ताह (25 से 29 अगस्त) के बीच जारी ‘सीमाओं को पाटना : शांतिपूर्ण और शाश्वत भविष्य के लिए जल’ विषयक रिपोर्ट में बताया गया कि 2023 में जल संसाधनों को लेकर जारी हिंसा की घटनाओं में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है, जो पूरी दुनिया के लिए चिंताजनक है। रिपोर्ट के अनुसार इन घटनाओं में हो रही वृद्धि का सिलसिला पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से जारी है। साल 2000 में जल संसाधनों को लेकर हुए टकरावों की महज 22 घटनाएं सामने आईं थीं, जो 1,477 फीसदी बढ़ चुकी हैं।
झारखण्ड के रांची में पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया के सदस्यों ने एक पानी के टैंकर और मशीनरी को आग लगा दी।
तमिलनाडु में पीने के पानी के दुरुपयोग को लेकर हुए राजनीतिक विवाद और हिंसा ने दो व्यक्तियों की जान ले ली।
कर्नाटक के हुबली में जल आपूर्ति मुद्दों पर हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई झड़पों ने हिंसक रूप ले लिया।
जम्मू कश्मीर के एक गांव में जल प्रदूषण को लेकर हुए संघर्ष में 30 से अधिक लोग घायल हो गए।
हरियाणा, मप्र और पंजाब में भी जल विवाद को लेकर हिंसक संघर्ष की घटनाएं सामने आईं।
मणिपुर, राजस्थान, असम उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और दिल्ली भी इसी श्रेणी में हैं।
बढ़ती आबादी और जलवायु परिवर्तन के कारण जल संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही है। मध्य पूर्व और यूक्रेन जैसी जगहों पर जारी युद्ध के दौरान जल प्रणालियों को भी निशाना बनाया जा रहा है। कहीं न कहीं हम जल संसाधनों का उचित प्रबंधन करने में असफल रहे हैं और यह संघर्ष उन्हीं विफलताओं का नतीजा है।
पैसिफिक इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ फेलो और सह-संस्थापक डॉ. पीटर ग्लीक का कहना है कि जल संघर्ष इसलिए हो रहे हैं क्योंकि लोग इस बात पर टकरा रहे हैं कि इन सीमित संसाधनों पर किसका नियंत्रण होगा और कौन इनका उपयोग करेगा। अब समय आ गया है कि व्यवस्था को इस और गंभीर होना होगा।
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