बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाये जा सकते हैं वीडी शर्मा
इतिहास के सबसे खराब निर्णयों के लिए जाना जायेगा शर्मा का कार्यकाल, पराक्रम से नहीं परिक्रमा से बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष बने हैं शर्मा, शर्मा को पसंद नहीं हैं शिवराज, विजयवर्गीय, तोमर और संगठन के पदाधिकारी, विजवर्गीय या तोमर को मिल सकती है बीजेपी अध्यक्ष की कमान
भोपाल। दिसम्बर 2023 में प्रस्तावित मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के ठीक पहले प्रदेश भाजपा में बड़े बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। बीते कुछ दिनों से लगातार प्रदेश भाजपा के पदाधिकारियों के पदों में बदलाव के बाद इस बात के भी कयास लगाये जाने लगे हैं कि शीर्ष नेतृत्व जल्द ही प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के पद पर भी बदलाव कर सकता है। सूत्रों की मानें तो प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे वीडी शर्मा से प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व वापस लिया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि वीडी शर्मा का दो वर्षीय कार्यकाल कुछ समय पहले ही खत्म हो चुका है और शर्मा को शीर्ष नेतृत्व में नया प्रदेश अध्यक्ष न मिलने की स्थिति में अध्यक्ष पद का दायित्व अतिरिक्त रूप से दे रखा था। लेकिन विधानसभा चुनाव के ठीक पहले पार्टी कार्यकर्ताओं को एकजुट करने के उद्देश्य के साथ भाजपा आलाकमान इस परिवर्तन को लेकर तैयारी में जुट गया है। प्रदेश अध्यक्ष शर्मा को हटाये जाने को लेकर जो कारण बताये जा रहे हैं उनमें प्रमुख कारण है कि वीडी शर्मा से कार्यकर्ता बुरी तरह से खफा है। इसकी शिकायत बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष तक से की है। बताया जा रहा है कि कुछ मजबूरी में बीजेपी हाईकमान वीडी शर्मा को हटा नहीं पा रहा है। लेकिन अब स्थितियां ऐसी बन गई हैं कि जल्द ही शर्मा को हटाया जा सकता है। शर्मा के कार्यकाल में मध्यप्रदेश से संगठन लगभग खत्म हो गया है। शर्मा के लड़कपन वाले फैसलों ने संगठन को निष्क्रिय बना दिया है। प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में संगठन की पकड़ कमजोर हुई है। राजनीतिक जानकारों का तो यहां तक कहना है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो 2023 के विधानसभा में बीजेपी 50 सीटों पर सिमट जायेगी।
कयास लगाये जा रहे हैं कि कभी भी शर्मा की छुटटी हो सकती है। इसके साथ ही यह बात भी सत्य है कि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के इतिहास में सबसे खराब निर्णयों के लिए जाना जायेगा। अभी हाल ही में बीजेपी संगठन में बदलाव किये हैं। इस बदलाव में आशीष अग्रवाल को प्रदेश मीडिया प्रभारी का दायित्व सौंपा गया है। प्रदेश मीडिया प्रभारी एक ऐसे व्यक्ति को बनाया गया है जो मीडिया बेकग्राउंड से नहीं है। इस नियुक्ति की ज्यादातर नेताओं ने विरोध दर्ज कराया है। प्रदेश मीडिया प्रभारी लोकेन्द्र पाराशर की जगह आशीष अग्रवाल को प्रदेश मीडिया प्रभारी बनाया गया है। लोकेन्द्र पाराशर को भाजपा का प्रदेश मंत्री बनाया गया है। इसके अलावा एबीवीपी के नौसिखियों को अपनी टीम में रखा जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि वीडी शर्मा लोकेन्द्र पाराशर को प्रदेश मंत्री बनाने के पक्ष में नहीं थे। दवाब में आकर पाराशर को यह दायित्व सौंपा गया है। इसके अलावा और भी कई ऐसी नियुक्तियां हैं जिनमें शर्मा ने अपनी चलाई है और कम तजुर्बोकारों को जगह दिलाई गई है। अपने कार्यकाल के दौरान वीडी शर्मा ने केवल अपने संसदीय चुनावी क्षेत्र के कार्यकर्ताओं को पार्टी के प्रमुख पदों पर अधिक महत्व दिया। यही नहीं छोटे-छोटे शहरों के अनुभवहीन कार्यकर्ताओं को जिस तरह से वो पार्टी के प्रमुख जिम्मेदारियों से जोड़ने का काम कर रहे हैं उससे पार्टी आलाकमान पूरी तरह से खफा है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष द्वारा जिन तीनों नाम को लेकर चर्चा हो रही है उसमें कैलाश विजयवर्गीय एक प्रमुख दावेदार बताए रहे हैं। कैलाश को प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व सौंपे जाने का प्रमुख कारण यह भी है कि विजयवर्गीय ने बीते पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में बेहतर रणनीति बनाकर पार्टी को वहां अधिक सीटें दिलवाने में सफलता प्राप्त की। यही नहीं विजयवर्गीय का प्रदेश के पार्टी कार्यकर्ताओं, मंत्री, विधायकों से बेहतर तालमेल है। ऐसे में आलाकमान निचले स्तर पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाने और कार्यकर्ताओं को एकजुट करने के लिए विजयवर्गीय को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप सकती है। गौरतलब है कि विजयवर्गीय दिल्ली में बैठने के बावजूद भी लगातार प्रदेश में सक्रिय रहते हैं और यहां के सियासी गणित से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के प्रदेश अध्यक्ष के नाम को लेकर भी चर्चाओं का बाजार गरम है। तोमर प्रदेश के सक्रिय मंत्री हैं और भिंड, मुरैना सहित प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने में उन्हें महारात हासिल हैं। इसलिये पार्टी आलाकमान तोमर को भी प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी देने पर विचार कर रही है। हालांकि गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा का भी नाम है। लेकिन नरोत्तम मिश्रा के नाम पर लगातार संशय बरकरार है। क्योंकि नरोत्तम मिश्रा द्वारा प्रदेश में कानून व्यवस्था को नियंत्रित न कर पाने और पेड न्यूज छपवाने के मामले में कोर्ट में मामला लंबित है। ऐसे में मिश्रा को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा चुनावी समय में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती।
बताया जा रहा है कि शर्मा ने प्रदेश अध्यक्ष पद का प्रभाव दिखाते हुए अपने ससुर और ससुराल पक्ष के लोगों को बड़ा लाभ दिया है। उन्होंने अपने ससुर को कृषि विश्वविद्यालय का कुलपति बनवा दिया तो पत्नी को उसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति दिलवाई है। यही नहीं प्रदेश के खनिज मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह के साथ मिलकर खनन के क्षेत्र से उन्होंने अनाप-शनाप कमाई की है।
प्रदेश अध्यक्ष का सबसे प्रमुख काम होता है सत्ता और संगठन में बेहतर तालमेल बिठाना। लेकिन वीडी शर्मा के साथ इसके बिल्कुल उलट है। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो वीडी शर्मा की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा, बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, पूर्व बीजेपी अध्यक्ष राकेश सिंह, पूर्व प्रदेश मीडिया प्रभारी लोकेन्द्र पाराशर सहित संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारियों से मनमुटाव चल रहा है। यह तो केवल बड़े स्तर के नाम हैं। इसके अलावा भी स्थानीय स्तर पर ज्यादातर क्षेत्रीय नेताओं से शर्मा की पटरी नहीं बैठ पा रही है। प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा से तो यहां तक खबरें है कि वीडी शर्मा और हितानंद में गाली गलौच तक हुई थी। वीडी शर्मा ने शुरू से ही सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले जी हजूरी की है। इसलिए कहा जा रहा है कि शर्मा पराक्रम से नहीं परिक्रमा से इस पद तक पहुंचे हैं। आज भी शर्मा को अपने आसपास ऐसे लोग पसंद हैं जो एसमैन की तरह खड़े रहते हैं। काबिल और होनहार लोगों की जरूरत नहीं है।
वर्तमान में वीडी शर्मा की पत्नी डॉ. स्तुति शर्मा की सत्ता-संगठन में काफी दखलअंदाजी बढ़ रही है। तमाम सियासी मामलों पर उनके ट्वीट पढ़े जा सकते हैं। इसके अलावा बताया जाता है कि सियासी मुददों पर भी उनकी पत्नी सलाहकार की भूमिका में होती हैं। पोस्टिंग, ट्रांसफर में भी स्तुति शर्मा सक्रिय रहती हैं।
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