बिना लड़े ही यूपी के रण में आप ने मानी हार
जनता के बीच अच्छी पैठ भी बनाई। नगर निकाय चुनावों में 100 स्थानों पर जीत हासिल करके जमीन पर अपनी बढ़ती पकड़ को साबित भी किया। पर, जनता ने उसपर जो भरोसा जताया, उसको वह आगे नहीं बढ़ा पाई। बहरहाल इसे सियासी मजबूरी कहें या फिर कुछ और, लोकसभा चुनाव में पार्टी को प्रदेश में दूसरों का झंडा उठाने को विवश होना पड़ा है।
लखनऊ (आरएनआई) आम आदमी पार्टी ने 2023 में हुए नगर निकाय चुनावों में अपनी धमक दिखाई। जनता के बीच अच्छी पैठ भी बनाई। नगर निकाय चुनावों में 100 स्थानों पर जीत हासिल करके जमीन पर अपनी बढ़ती पकड़ को साबित भी किया। जनता ने उसपर जो भरोसा जताया, उसको वह आगे नहीं बढ़ा पाई। बहरहाल इसे सियासी मजबूरी कहें या फिर कुछ और, लोकसभा चुनाव में पार्टी को प्रदेश में दूसरों का झंडा उठाने को विवश होना पड़ा है।
फ्लैशबैक में जाएं तो आम आदमी पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव में मैदान में उतरी थी। तब पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल भाजपा के पीएम पद के दावेदार नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए वाराणसी के चुनावी मैदान में उतरे थे। पैराशूट प्रत्याशी होने के तोहमत के बावजूद केजरीवाल को 2,09,238 वोट मिले। पर, केजरीवाल को मिली शिकस्त के बाद पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में उतरने की हिम्मत भी नहीं दिखा सकी।
आम आदमी पार्टी ने 2022 के विधानसभा के चुनावों में एक बार फिर अपने दमखम को परखने की कोशिश की। 380 सीटों पर पार्टी ने प्रत्याशी उतारे। पर, इस बार भी उसे कोई कामयाबी तो नहीं मिली, पर उसका संगठन बूथ स्तर तक जरूर पहुंचा। इसका फायदा भी उसे मिला। 2023 के निकाय चुनाव में पार्टी रामपुर, बिजनौर, अलीगढ़ में नगरपालिका अध्यक्ष का चुनाव जीतने में कामयाब रही। नगर निगमों में उसके आठ पार्षद चुने गए, नगर पालिकाओं में 30 सभासद जीते, उसके 61 नगर पंचायत सदस्य भी चुने गए। यूपी की जमीन पर पकड़ मजबूत बनाने में जुटी पार्टी के लिए यह बड़ी उपलबि्ध थी। किंतु पार्टी उस उत्साह को आगे नहीं बढ़ा पाई।
आप के प्रदेश प्रवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि पदाधिकारी व कार्यकर्ता जिला स्तर पर विपक्षी गठबंधन के प्रत्याशियों को जिताने के लिए प्रचार-प्रसार में लगे हैं। आगे चलकर पार्टी प्रदेश में भी लोकसभा चुनाव लड़ेगी।
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