बाइडन को जिनपिंग के समिट में आने की आशा
बाइडन दो दर्जन से अधिक वैश्विक नेताओं के साथ अगले सप्ताह नई दिल्ली में आयोजित होने जा रहे जी-20 शिखर सम्मेलन में शामिल होने वाले हैं। बाइडन की मेजबानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे।
वाशिंगटन। (आरएनआई) चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत में 9-10 सितंबर को होने वाली जी-20 शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे या नहीं इसे लेकर उहापोह की स्थिति बनी हुई है। जिनपिंग के जी-20 बैठक में शामिल होने को लेकर चीन और भारत के विदेश मंत्रालय की तरफ से कोई बयान नहीं जारी किया गया है। इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने गुरुवार को उम्मीद जताई कि उनके चीनी समकक्ष शी जिनपिंग नई दिल्ली में जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे।
बाइडन दो दर्जन से अधिक वैश्विक नेताओं के साथ अगले सप्ताह नई दिल्ली में आयोजित होने जा रहे जी-20 शिखर सम्मेलन में शामिल होने वाले हैं। बाइडन की मेजबानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। हालिया मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शिखर सम्मेलन में शामिल होने की संभावना नहीं है।
गुरुवार को जब संवाददाताओं ने बाइडन से पूछा कि क्या वह राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बैठक में शामिल होने की उम्मीद कर रहे हैं? बाइडन ने संवाददाताओं से कहा, "इसका उत्तर यह है कि मुझे उम्मीद है कि वह जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे।"
एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (एएसपीआई) में साउथ एशिया इनिशिएटिव्स की निदेशक फरवा आमेर ने कहा कि राष्ट्रपति जिनपिंग के भारत में जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग न लेने को इस बात के सबूत के रूप में देखा जा सकता है कि चीन इस समय अहम स्थान भारत को सौंपने की इच्छा नहीं रखता है। उन्होंने कहा, शायद यह अब तक का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम है, कुछ लोग कह सकते हैं कि भारत द्वारा आयोजित आगामी जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग न लेने का राष्ट्रपति शी का निर्णय अपेक्षित था। इस कदम के बहुआयामी निहितार्थ हैं।
सबसे पहले यह अनुमान लगाया जा सकता है कि चीन भारत को अहम स्थान सौंपने को लेकर अनिच्छुक है, खासकर एशिया क्षेत्र के भीतर और अपने पड़ोस में। यह क्षेत्र में शक्ति के नाजुक संतुलन को सीधे प्रभावित करते हुए अपनी प्रमुख भूमिका और प्रभाव को बनाए रखने के चीन के इरादे को रेखांकित करता है। उन्होंने कहा, दूसरी बात यह है कि जिनपिंग की अनुपस्थिति एक रिमाइंडर के रूप में काम करती है कि सीमा पर तनाव कम करने के लिए निरंतर और जटिल राजनयिक प्रयासों की आवश्यकता होगी। बातचीत की प्रक्रिया लंबी चलेगी, जो हिमालय क्षेत्र के व्यापक भू-राजनीतिक परिदृश्य और अमेरिका के साथ चीन की रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के साथ जुड़ा हुआ है।राष्ट्रपति जिनपिंग के कार्यक्रम में जी-20 जैसे हाई-प्रोफाइल शिखर सम्मेलन की अनुपस्थिति वार्ता की जटिल परतों और यह सुनिश्चित करने की अनिवार्यता को उजागर करती है कि देश की जनता आगे के कूटनीतिक प्रयासों के साथ जुड़े रहें। आमेर ने कहा, अगर हम आगे की स्थिति पर नजर डालते हैं, तो यह स्पष्ट है कि चीन और भारत के संबंध जटिल क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। सीमा मुद्दे ऐतिहासिक विवादों, राष्ट्रीय गौरव और रणनीतिक हितों के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं। चूंकि दोनों देश वैश्विक मंच पर अपने प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, इसलिए उनकी बातचीत न केवल क्षेत्रीय गतिशीलता से बल्कि चीन और अमेरिका के बीच महान शक्ति प्रतिस्पर्धा की व्यापक रूपरेखा से भी प्रभावित होगी।जहां तक जी-20 शिखर सम्मेलन का सवाल है, तो अंतिम परिणाम इस बात के बैरोमीटर (Barometer) के रूप में काम करेगा कि भू-राजनीतिक तनाव और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा किस हद तक वैश्विक आर्थिक सहयोग और बहुपक्षीय कूटनीति को प्रभावित कर रही है। आमेर ने कहा, 2020 के गलवां संघर्ष के बाद से चीन-भारत संबंधों में बढ़ते तनाव और अनसुलझे सीमा मुद्दों को चिह्नित किया गया है। साथ ही उन्होंने कहा कि कई दौर की कूटनीतिक चर्चाओं और कोर कमांडरों की हालिया बैठक के बावजूद सीमा विवादों का स्पष्ट और आसान समाधान अभी भी टाल-मटोल बना हुआ है।प्रधानमंत्री मोदी के बार-बार दिए गए बयान कि चीन-भारत संबंधों की गति सीमा की स्थिति पर निर्भर करती है, इस मुद्दे के महत्व को उजागर करती है। वर्तमान स्थिति में, कम से कम निकट भविष्य में त्वरित समाधान की संभावनाएं दूर तक नजर नहीं आती हैं। उन्होंने कहा, ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग के बीच संभावित बैठक के संकेत के साथ द्विपक्षीय गतिशीलता रहस्यमय थी। हालांकि, वास्तविक बातचीत एक संक्षिप्त आदान-प्रदान तक ही सीमित रही, जो खेल में गहरी जटिलताओं को दर्शाती है।
इसके बाद चीन द्वारा एक नया नक्शा जारी किया गया, जिसमें पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश और विवादित अक्साई चिन पठार पर अपनी संप्रभुता का दावा किया गया, जिससे तनाव और बढ़ गया। विदेश मंत्री एस जयशंकर द्वारा चीन के दावे को 'बेतुका' बताए जाने सहित भारत के कड़े विरोध ने स्थिति की गंभीरता को रेखांकित किया है। चीन ने अपनी ओर से सामान्य रणनीति अपनाई और सभी पक्षों से निष्पक्ष बने रहने और मुद्दे की अधिक व्याख्या करने से बचने का आग्रह किया।
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