बलिदानी ने बलिदान दिया और देश सेवा मान किया
हाथरस (आरएनआई) आज ही के दिन हुए थे राजा देवी सिंह गोदारा जी बलिदान आज उनका 165 वां बलिदान दिवस -शहीदों को शत शत नमन राजा देवी सिंह गोदर गोदारा जीका जन्म मथुरा की राया तहसील के अचरु ग्राम के एक जाट क्षत्रिय परिवार में हुआ था। गोदारा जाटों को स्थानीय भाषा मे गोदर भी बोला जाता है। राया क्षेत्र को स्थानीय भाषा में गोदरपट्टी भी बोलते हैं। राया को उनके पूर्वज राजा रायसेन गोदर जी ने ही बसाया था। उन्ही के नाम पर इस कस्बे का नाम राया पड़ा ।
राजा देवीसिंह धार्मिक स्वभाव के थे और एक अच्छे पहलवान भी थे एक बार वह गाँव में दंगल कर रहे थे। उनके आगे कोई टिक नहीं पाया। जीतने के बाद जब राजा साहब अपनी खुशी जाहिर कर रहे थे, तो एक युवक ने उन पर ताना कसते हुए कहा के यहां ताकत दिखाने का क्या फायदा है दम है तो अंग्रेजों के खिलाफ लड़ो और देश सेवा करो, यही क्षत्रियों का धर्म है। आपके पूर्वजों ने सदा से इस क्षेत्र की रक्षा अपने प्राणों की आहुति देकर की है । इसके बाद राजा देवीसिंह जी ने गांव-गांव घूमना शुरू कर दिया और स्वराज के लिए बिगुल बजा दिया। उन्होंने जाट बाहुल्य इलाके, जैसे राया, हाथरस, मुरसान, सादाबाद आदि समेत संपूर्ण कान्हा की नगरी मथुरा बृज क्षेत्र में क्रांति की अलख जगा दी और युवाओं की एक बड़ी फ़ौज खड़ी करली। उन्होंने कुछ अंग्रेजी सेनिको को लूट कर और चंदा इखट्टा कर हथियार भी ले लिए। धीरे-धीरे राजा साहब ने 80 गाँवों को अंग्रेजों से आजादी दिलाई। यह बात जब अंग्रेजी हाईकमान को पता चली तो वे बौखला गए। उन्होंने राजा साहब को ब्रिटिश आर्मी में एक बड़ा पद देने का लालच दिया, लेकिन राजा साहब ने देश के दुश्मनों के साथ मिलने से मना कर दिया। इसके बाद बल्लभगढ, हरियाणा के राजा नाहर सिंह और दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह जफर ने राजा देवीसिंह जी के आधिकारिक छेत्र को राज्य की मान्यता दे दी। बादशाह जफर को उस समय क्रान्तिकारियों की भी जरूरत थी और दूसरा एक नाहर सिंह ही थे जो उसे व दिल्ली को अंग्रेजों से अब तक बचाये हुए थे, इसलिए उन्होंने राजा देवी सिंह के राज को अपनी तरफ से मान्यता दे दी। पंचायत ने विधिवत राजा देवी सिंह का राजतिलक किया। उन्हे पगड़ी पहनाई व पीली राजपोषाक दी। हिन्दू संस्कृति के अनुसार पीला रंग राजशाही का प्रतीक होता है।
मार्च 1857 में फिर राजा देवी सिंह ने राया थाने पर आक्रमण कर सब कुछ तहस'नहस कर दिया। सात दिन तक थाने को घेरे रखा। जेल पर आक्रमण करके सभी सरकारी दफ्तरों, चौकियों आदि को जलाकर तहस-नहस कर दिया। नतीजा यह हुआ के अंग्रेज कलेक्टर थोर्नबिल वहां से भेष बदलकर भाग खड़ा हुआ। इसमें उसके वफादार दिलावर ख़ान और सेठ जमनाप्रसाद ने मदद की थी। दोनों को ही बाद में अंग्रेजी सरकार से काफी जमीन व इनाम मिला। अब राया को राजा साहब ने अंग्रेज़ों से पूर्णरूप से स्वतंत्र करवा दिया। उन्होंने अंग्रेजों के बही खाते व रिकॉर्ड्स जला दिए। जिसके माध्यम से वे गरीबों को लूटते थे। फिर अंग्रेज समर्थित व्यापारियों को धमकी भेजी गई कि या तो देश सेवा में ऊनका साथ दें वरना सजा के लिए तैयार रहें। जो व्यापारी नहीं माने उन्हें लुटा गया व उनके बही खाते जला दिए गए। क्योंकि वे अंग्रेजों के साथ रहकर गरीबों से हद से ज्यादा सूदखोरी करते थे। जिसके बाद राजा साहब के समर्थन में पूरे मथुरा के जय हो के नारे लगने लगे। उन्हें गरीबों का राजा, अजेय राजा जैसे शब्दों से जनता द्वारा सुशोभित किया जाने लगा। राजा देवीसिंह ने एक सरकारी स्कूल को अपना थाना बनाया उन्होंन अपनी सरकार पूर्णतः आधुनिक पद्धति से बनाई उन्होंने कमिश्नर, अदालत, पुलिस सुप्रिडेण्टेन्ट आदि पद नियुक्त किये। उन्होंने राया के किले पर भी कब्जा कर लिया व रोज जनता के बीच रहते थे और उनकी समस्या का समाधान करते थे। उन्होंने एक साल तक अंग्रेजों के नाक में दम रखा अंग्रेजी सल्तनत की चूल तक हिल गयी थी। अंग्रेज अधिकारी तक उनसे कांपते थे। अंत मे अंग्रेजों ने कोटा से आर्मी बुलाई और अंग्रेज अधिकारी डेनिश के नेतृत्व में हमला किया और धोखे से उन्हें 15 जून 1858 कैद कर लिया। उन्हें व साथी श्रीराम गोदारा के अलावा कई अन्य क्रांतिकारियों को भी उनके साथ ही फांसी दी गयी। अंग्रेजों ने फांसी से पहले उन्हें झुकने के लिए बोला था। लेकिन राजा साहब ने कहा कि मैं मृत्यु के डर से अपने दुश्मनों के आगे कतई नहीं झुकूंगा। ऐसे महान सेनानी नतमस्तक सम्मान है।
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