पदोन्नति में पिछड़े सीआरपीएफ के ग्राउंड कमांडर
कैडर अधिकारियों का 'बोर्ड ऑफ ऑफिसर' गठित, देंगे सुझाव
नई दिल्ली (आरएनआई) सीआरपीएफ के ग्राउंड कमांडर यानी 'सहायक कमांडेंट' भले ही आतंकियों व नक्सलियों से निपटने, राष्ट्रीय आपदा, चुनाव और कानून व्यवस्था सुधारने में अव्वल रहते हों, मगर वे तरक्की के मोर्चे पर लगातार पिछड़ते जा रहे हैं। सहायक कमांडेंट को पहली पदोन्नति मिलने में ही करीब 15 साल लग रहे हैं। इससे बल में ग्राउंड कमांडरों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। कैडर अधिकारियों को ओजीएएस और एनएफएफयू की मूल भावना को लेकर संघर्ष करना पड़ रहा है। एनएफएफयू का फायदा, सभी कैडर अधिकारियों को नहीं मिल सका है। इन समस्याओं का हल खोजने के लिए सीआरपीएफ डीजी ने कैडर अधिकारियों का 'बोर्ड ऑफ ऑफिसर' गठित किया है। 'बोर्ड ऑफ ऑफिसर' द्वारा तीन माह में अपनी रिपोर्ट, बल मुख्यालय को सौंपी जाएगी।
सीआरपीएफ की 48वीं बटालियन के कमांडेंट वी. शिवा रामा कृष्णा की अध्यक्षता में 11 अधिकारियों का एक बोर्ड गठित किया गया है। यह बोर्ड, सीआरपीएफ मुख्यालय को कैडर अधिकारियों की पदोन्नति में आई स्थिरता को लेकर अपने सुझाव देगा। पदोन्नति में किन कारणों से देरी हो रही है, स्थिरता को कैसे दूर किया जाए और सरकार के नियमों के मुताबिक वित्तीय अपग्रेडेशन को किस तरह से बढ़ाया जाए, आदि बातों पर 'बोर्ड ऑफ ऑफिसर' एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगा। बोर्ड के अन्य सदस्यों में अमित चौधरी, कमांडेंट सीआरपीएफ अकादमी, त्रिलोक नाथ सिंह टूआईसी 5वीं बटालियन, टूआईसी संजय गौतम 51वीं बटालियन, मनोरंजन कुमार टूआईसी 194वीं बटालियन, पंकज वर्मा डिप्टी कमांडेंट ट्रेनिंग ब्रांच 'मुख्यालय', विवेक कुमार डीसी रांची, पुश्कर सिंह डीसी आरटीसी अमेठी, अरूण कुमार राणा सहायक कमांडेंट 75वीं बटालियन, मितांशु चौधरी एसी 103 आरएएफ और विनोद कुमार एसी 139वीं बटालियन, शामिल हैं।
'बोर्ड ऑफ ऑफिसर' के कार्यक्षेत्र में जो बातें शामिल की गई हैं, उनमें कैडर अफसरों की तय समय पर पदोन्नति कैसे सुनिश्चित हो, शामिल है। क्या इसके लिए मौजूदा भर्ती नियमों में बदलाव की जरूरत है। अगर बदलाव जरूरी हैं, तो उसका ठोस तर्क देना होगा। सभी कैडर अधिकारियों तक एनएफएफयू और एनएफएसजी का फायदा कैसे पहुंचे, इस बाबत सुझाव देने होंगे। बल में अफसरों का प्राधिकार, इसे कैसे बढ़ाया जाए। ऐसे मामलों में मुकदमेबाजी को कम करने के लिए कौन से कदम उठाए जाएं। पदोन्नति में ठहराव, इस समस्या को किसी अन्य तरीके से हल किया जा सकता है, तो उसके बारे में भी विस्तृत रिपोर्ट तैयार करनी होगी।
सीआरपीएफ कैडर अधिकारियों का कहना है कि 'सहायक कमांडेंट, डिप्टी कमांडेंट और सेकंड इन कमांड' इन तीन पदों पर प्रमोशन लेना बहुत मुश्किल हो गया है। सहायक कमांडेंट को पहली पदोन्नति मिलने में 15 साल से ज्यादा समय लग रहा है। अगर यूं ही चलता रहा, तो उन्हें कमांडेंट पद तक पहुंचने में 25 साल लग जाएंगे। मतलब रिटायरमेंट की दहलीज पर जाकर, उन्हें बटालियन को कमांड करने का मौका मिल सकेगा। ग्राउंड कमांडरों का तर्क है कि वे बल की तरफ से हर छोटा बड़ा जोखिम उठाते हैं। सभी तरह के ऑपरेशन को लीड करते हैं। यूपीएससी से नियुक्ति मिलने के बावजूद परमोशन में वे पिछड़ जाते हैं।
अभी तक 2009 बैच के सहायक कमांडेंट, पहले प्रमोशन तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। ये तो प्रमोशन का मौजूदा हाल है। अगर कैडर रिव्यू में कुछ नहीं होता है तो 3-4 साल बाद कमांडेंट बनने में 25 से 30 साल लगेंगे। कैडर अधिकारियों का कहना है कि केंद्र सरकार की 55 संगठित कैडर वाली सेवाओं में अधिकतम बीस साल बाद सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड मिलता है। इसके बाद आईएएस अधिकारी जेएस रैंक पर और आईपीएस, आईजी के पद पर चला जाता है। लिहाजा ये कैडर सर्विस हैं, इसलिए इनमें टाइम बाउंड प्रमोशन यानी एक तय समय के बाद पदोन्नति मिल जाती है। इन सेवाओं में रिक्त स्थान नहीं देखा जाता। जगह खाली हो या न हो, मगर तय समय पर प्रमोशन जरूर मिलता है।
सीआरपीएफ में प्रमोशन उस वक्त होता है, जब सीट खाली होती है। अगर किसी फोर्स में एक साथ कई बटालियनों का गठन होता है, तो ही प्रमोशन की कुछ संभावना बनती है। इसे नॉन प्लान ग्रोथ कहा जाता है। डीओपीटी ने इस बाबत भी दिशा निर्देश जारी कर कहा था कि किसी भी फोर्स में नॉन प्लान ग्रोथ नहीं होगी। जो भर्ती होगी, वह सुनियोजित तरीके से ही की जाएगी। 2001 और 2010 में भर्ती नियमों को बदला गया, लेकिन उनमें इतनी ज्यादा विसंगतियां थी कि उससे कैडर अफसरों को फायदा होने की बजाए नुकसान हो गया। सीआरपीएफ के सभी कैडर अधिकारियों को ओजीएएस और एनएफएफयू की मूल भावना के अंतर्गत फायदा नहीं मिल पा रहा है। नियमों की अवहेलना हो रही है।
बीएसएफ के पूर्व एडीजी एसके सूद का कहना है, सीएपीएफ में सिपाही से लेकर कमांडेंट तक, पदोन्नति में बुरी तरह पिछड़ रहे हैं। अगर कोई त्वरित राहत प्रदान नहीं की गई, तो अगले दो दशक तक पदोन्नति का अंतर कम नहीं हो सकता। सर्वोच्च न्यायालय तक मामला पहुंचने के बाद, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 3 जुलाई 2019 को अपनी एक घोषणा के जरिए 'सीएपीएफ संगठित सेवा ए' को मंजूरी प्रदान कर दी थी। तब कैडर अफसरों में यह उम्मीद जगी थी कि उन्हें एनएफएफयू के परिणामी लाभ मिल जाएंगे, मगर उसे सही रूप में लागू नहीं किया गया। वह फैसला ठीक से लागू होता, तो आज सीएपीएफ के विभिन्न बलों में पदोन्नति और वेतनमान में अंतर को लेकर जो दिक्कतें सामने आ रही हैं, उनसे बचा जा सकता था। पद न सही, उतना वेतन तो मिलना चाहिए।
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