पटकाना रामलीला में हुआ ब्रह्म जन्म व नारद मोह लीला का मंचन
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हरदोई (आरएनआई)बीती रात रामलीला मेला मंच मोहल्ला पठकाना पर ब्रह्मा जन्म एवं नारद मोह लीला का सफल मंचन किया गया। ऐतिहासिक श्री रामलीला मेला मंच मोहल्ला पठकाना के 88 वें बर्ष की चल रही रामलीला में समिति के अध्यक्ष संजय मिश्रा बबलू और मीडिया प्रभारी ओमदेव दीक्षित, सनत मिश्रा समेत ऋषिकुमार मिश्रा, आशीष मोहन तिवारी, अक्षत मिश्रा, शशि मिश्रा आदि ने श्री गणेश, एवं राम, सीता, हनुमान का पूजन अर्चन आरती करके ब्रह्मा जन्म एवं नारद मोह लीला का शुभारम्भ किया।
ब्रह्मा जन्म एवं नारद मोह लीला के सफल मंचन से यह सीख मिली कि स्वयं की शक्तियों तथा सामर्थ्य का घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि वह सब कुछ ईश्वरीय इच्छा पर निर्भर करता है। हालांकि विधि के विधान को कोई नहीं टाल सकता अर्थात रामलीला में भी वही खेला गया जो सनातन संस्कृति एवं अध्यात्म में सत्य है। नारद ने जब अपनी साधना के मध्य विघ्न डालने आए कामदेव को जीत लिया और इन्द्र के भेजे हुए कामदेव समेत अप्सराओं आदि की विघ्न बधाओं से परास्त नहीं हुए। इसी कारण उन्हें अहंकार हो गया और वह अपने पिता ब्रह्मा व भोलेनाथ के बाद श्री हरि विष्णु के सामने भी स्वयं के द्वारा काम क्रोध पर विजय प्राप्त करने का बखान करने से बाज नहीं आए परिणाम स्वरूप उनका अहंकार मोहनी के स्वयंवर में चूर होते देर नहीं लगी एतएव नारद ने अपने इष्ट विष्णु को भी श्राप दे दिया। जिससे श्रापित होकर श्री हरि विष्णु को पृथ्वी लोक में मानव रूप में उत्पन्न होकर तमाम समस्याओं का सामना करते हुए वन वन भटकना पड़ा और लंका के राजा रावण सहित तमाम राक्षसों आदि से युद्ध करना पड़ा। भले जो विधि का विधान था वही हुआ।
आश्चर्य है कि नारद मुनि भगवान विष्णु की भक्ति में अनवरत साधना करते हैं। जिसमें नारद मुनि को तप करते देख देवराज इंद्र ने चिंतातुर होकर अंततः कामदेव को स्वर्ग की अति सुन्दर अप्सराओं में रम्भा मेनका उर्वशी आदि के साथ नारद मुनि का तप भंग करने को भेज दिया किन्तु नारद मुनि पर कामदेव की माया का कोई प्रभाव नहीं हुआ। काम देव की माया से खुद को मुक्त पाकर नारद ऋषि को अहंकार हो गया। इसके बाद नारदमुनि के विजय बखान का मंचन हुआ। नारद मुनि के मन में आए अंहकार को तोड़ने के लिए विष्णु लीला का मंचन किया गया। जिसमें भगवान विष्णु ने नारदमुनि का घमंड तोड़ने के लिए अपनी लीला का प्रर्दशन किया। भगवान की माया से मायारूपी मोहनी स्वरूप राजकुमारी की लीला का मंचन हुआ। नारदमुनि राजकुमारी के मोहनी रूप पर मुग्ध होकर विवाह करने हेतु प्रेमातुर हो गए। परन्तु जब उन्हें सच्चाई का भान हुआ तो उन्होंने अपनी इच्छा पर कुठाराघात होते देख माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु को गुस्से में आकर श्राप दे दिया। इससे भगवान विष्णु को अगले जन्म में श्रीराम के अवतार में माता सीता से वियोग भी सहना पड़ा। वहीं नारद मुनि के श्राप के बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी ने वास्तविक रूप में पाकर खुद पर पछतावा करने लगते हैं।
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