नीदरलैंड बना भारत का तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य
पेट्रोलियम उत्पादों, इलेक्ट्रॉनिक सामान, रसायन और एल्युमीनियम सामान की वजह से चालू वित्त वर्ष के पहले नौ माह (अप्रैल-दिसंबर) में नीदरलैंड, भारत का तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य बनकर उभरा है। भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य अमेरिका है। वहीं संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) दूसरे नंबर पर आता है।
नयी दिल्ली, 29 जनवरी 2023, (आरएनआई)। पेट्रोलियम उत्पादों, इलेक्ट्रॉनिक सामान, रसायन और एल्युमीनियम सामान की वजह से चालू वित्त वर्ष के पहले नौ माह (अप्रैल-दिसंबर) में नीदरलैंड, भारत का तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य बनकर उभरा है। भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य अमेरिका है। वहीं संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) दूसरे नंबर पर आता है।
नीदरलैंड के साथ भारत का व्यापार अधिशेष भी 2017 के 1.5 अरब डॉलर से बढ़कर 2022 में 12.3 अरब डॉलर हो गया है।
वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, नीदरलैंड ने भारत के निर्यात बाजार के रूप में ब्रिटेन, हांगकांग, बांग्लादेश और जर्मनी को पीछे छोड़ दिया है।
अप्रैल-दिसंबर, 2022 के दौरान नीदरलैंड को भारत का निर्यात लगभग 69 प्रतिशत बढ़कर 13.67 अरब डॉलर पर पहुंच गया, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह आंकड़ा 8.10 अरब डॉलर रहा था।
वित्त वर्ष 2021-22 और 2020-21 में इस यूरोपीय देश को भारत का निर्यात क्रमश: 12.55 अरब डॉलर और 6.5 अरब डॉलर रहा था। नीदरलैंड को भारत का निर्यात 2000-01 से लगातार बढ़ रहा है। उस समय नीदरलैंड को निर्यात 88 करोड़ डॉलर रहा था।
नीदरलैंड 2020-21 में भारत का नौवां सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य था। 2021-22 में यह पांचवें स्थान पर आ गया था।
निर्यातकों के प्रमुख संगठन फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (फियो) के महानिदेशक अजय सहाय ने कहा कि नीदरलैंड यूरोपीय संघ के साथ बंदरगाह और सड़क, रेलवे और जलमार्ग संपर्क के माध्यम से यूरोप के एक केंद्र के रूप में उभरा है।
सहाय ने कहा कि चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-नवंबर की अवधि में पेट्रोलियम निर्यात इससे पिछले साल की समान अवधि के 2.7 अरब डॉलर से बढ़कर 6.4 अरब डॉलर हो गया है। इसकी वजह यह है कि पेट्रोलियम कंपनियां नीदरलैंड को एक वितरण केंद्र के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा नीदरलैंड को एल्युमीनियम, इलेक्ट्रिकल सामान और इलेक्ट्रॉनिक्स का निर्यात भी उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है। हालांकि, इनमें से कुछ उत्पादों का अंतिम इस्तेमाल जर्मनी या फ्रांस में होगा।
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