'निवारक हिरासत कठोर उपाय'; सुप्रीम कोर्ट ने नगालैंड में दो लोगों के खिलाफ जारी आदेश किया रद्द
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निवारक हिरासत को संविधान के अनुच्छेद 22(3)(बी) के जरिये मंजूरी दी गई है। लेकिन अनुच्छेद 22 में निवारक हिरासत को प्रभावित करते समय पालन किए जाने वाले कड़े मानदंड भी दिए गए हैं।

नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निवारक हिरासत एक कठोर उपाय है। शीर्ष अदालत ने नगालैंड में मादक पदार्थ मामले में हिरासत में लिए गए दो लोगों के खिलाफ जारी हिरासत आदेश को निर्धारित सुरक्षा उपायों के अभाव में रद्द कर दिया।
जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि अधिकारियों ने बिना किसी विवेक का प्रयोग किए हिरासत में रखने का आदेश दिया। पीठ ने गौहाटी हाईकोर्ट के आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसने अशरफ हुसैन चौधरी और उनसकी पत्नी अडालिउ चावांग की हिरासत आदेश के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी थी। इन दोनों के खिलाफ 1988 के नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम में अवैध तस्करी की रोकथाम की धारा 3 (1) के तहत हिरासत आदेश जारी किया गया था।
पीठ ने कहा, निवारक हिरासत एक कठोर उपाय है। इसके तहत किसी ऐसे व्यक्ति को, जिस पर किसी दंडात्मक कानून के तहत मुकदमा नहीं चलाया गया है और जिसे दोषी नहीं ठहराया गया है, एक निश्चित अवधि के लिए हिरासत और कारावास में रखा जा सकता है, ताकि उस व्यक्ति की संभावित आपराधिक गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सके।
पीठ ने आगे कहा कि निवारक हिरासत को संविधान के अनुच्छेद 22(3)(बी) के जरिये मंजूरी दी गई है। लेकिन अनुच्छेद 22 में निवारक हिरासत को प्रभावित करते समय पालन किए जाने वाले कड़े मानदंड भी दिए गए हैं। अनुच्छेद 22 में संसद की ओर से निवारक हिरासत से संबंधित शर्तों और तौर-तरीकों को निर्धारित करने के लिए कानून बनाने की बात कही गई है। 1988 का अधिनियम एक ऐसा कानून है जिसे संसद की ओर से पारित किया गया था, जिसमें निवारक हिरासत को अधिकृत किया गया था ताकि मादक पदार्थों और साइकोट्रोपिक पदार्थों की तस्करी पर अंकुश लगाया जा सके। पीठ ने नागालैंड सरकार के गृह विभाग के विशेष सचिव की ओर से पारित और बढ़ाए गए 30 मई, 2024 के नजरबंदी आदेशों को रद्द कर दिया।
Follow RNI News Channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VaBPp7rK5cD6X
What's Your Reaction?






