'निवारक निरोध आदेश देते समय अतिरिक्त सावधानी की जरूरत'; बॉम्बे हाईकोर्ट का प्राधिकरणों को निर्देश
हाईकोर्ट ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति को निवारक रूप से हिरासत में लिया जाता है, तो अनुच्छेद 22 (4) और (5) के तहत दिए गए सुरक्षा उपायों का अनिवार्य रूप से पालन किया जाना चाहिए।
मुंबई (आरएनआई) बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए मंगलवार को विभिन्न प्राधिकरणों और अधिकारियों से निवारक हिरासत के आदेश पारित करने को लेकर सावधानी बरतने को कहा है। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ ने कहा कि अधिकारियों का एक आकस्मिक दृष्टिकोण किसी व्यक्ति को उसके सबसे कीमती मौलिक अधिकार, उसकी स्वतंत्रता से वंचित कर सकता है। किसी व्यक्ति को अपराध करने से रोकने के लिए बिना किसी मुकदमे के हिरासत में लेना निवारक निरोध कहलाता है।
हाईकोर्ट ने यह निर्देश 2 जुलाई को अक्टूबर 2023 में एक व्यक्ति के खिलाफ पारित निवारक हिरासत आदेश को रद्द करते हुए दिया। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की खंडपीठ ने कहा कि याची को आदेश के खिलाफ प्रतिनिधित्व दायर करने का अवसर नहीं दिया गया था। इसके साथ ही खंडपीठ ने उसे रिहा करने का आदेश भी दिया।
याची राकेश जेजुरकर को अक्टूबर 2023 में माल की तस्करी करने उसे बढ़ावा देने और भविष्य में तस्करी के माल को छिपाने से रोकने के लिए हिरासत में लिया गया था। उस पर यह आरोप लगाया गया था कि हिरासत में लिया गया व्यक्ति आदतन अपराधी था और दुबई से भारत में सुपारी की तस्करी में शामिल एक प्रमुख एजेंट था। इस मामले में भारत सरकार के संयुक्त सचिव ने विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम के प्रावधानों के तहत उसकी हिरासत का आदेश पारित किया था।
इस मामले में हाईकोर्ट ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति को निवारक रूप से हिरासत में लिया जाता है, तो अनुच्छेद 22 (4) और (5) के तहत दिए गए सुरक्षा उपायों का अनिवार्य रूप से पालन किया जाना चाहिए। बता दें कि तो अनुच्छेद 22 (4) और (5)में बताया गया है कि किसी व्यक्ति को तीन महीने से अधिक समय तक निवारक हिरासत में नहीं रखा जा सकता है। साथ ही जब किसी व्यक्ति को हिरासत में लिया जाता है तो उसे आदेश के विरुद्ध अभ्यावेदन करने का यथाशीघ्र अवसर दिया जाना चाहिए।
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