नव संवत्सर ही भारतीय संस्कृति का नववर्ष : स्वामी मधुसूदनाचार्य महाराज
वृन्दावन।सेवाकुंज गली स्थित श्रीकृष्ण बलराम मन्दिर में भारतीय नव संवत्सर की पूर्व संध्या पर संत समागम का आयोजन श्रील भक्ति वेदांत स्वामी मधुसूदनाचार्य गोस्वामी महाराज (विश्वबन्धु) के पावन सानिध्य में किया गया।जिसमें देश-विदेश के अनेक संतों, धर्माचार्यों एवं भक्तों - श्रृद्धालुओं ने भाग लिया।
श्रील भक्ति वेदांत स्वामी मधुसूदनाचार्य गोस्वामी महाराज ने कहा कि नव संवत्सर ही भारतीय संस्कृति का नववर्ष है। जो कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है।इस दिन किए हुए दान व पुण्य अनन्त गुणा फलदाई होते हैं।इस तिथि की गणना साढ़े तीन स्वयं सिद्ध अत्यंत शुभ मुहूर्तों में सर्वप्रथम की जाती है।वस्तुत: यह तिथि सृष्टि का उत्पत्ति दिवस अर्थात आदि तिथि है।
ब्रज साहित्य सेवा मंडल के अध्यक्ष डॉ. गोपाल चतुर्वेदी ने कहा कि "ब्रह्मपुराण" के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के ही दिन जगतसृष्टा ब्रह्माजी ने सृष्टि रचना का कार्य प्रारम्भ किया था।यह तिथि सतयुग की प्रारम्भिक तिथि है।इसीलिए इस तिथि को ही नव संवत्सर का प्रारम्भ होता है।साथ ही समस्त सनातन धर्मावलंबी इस तिथि को नववर्ष प्रारम्भ की तिथि के रूप में अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।
ब्रजभूमि कल्याण परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित बिहारीलाल वशिष्ठ ने कहा कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के ही दिन मां दुर्गा की आराधना का पर्व चैत्र नवरात्रि प्रारम्भ होता है। साथ ही इसके अंतिम दिन भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव रामनवमी पर्व के रूप में अत्यंत श्रद्धा व भक्ति के साथ मनाया जाता है।
इस अवसर पर भक्तिवेदांत दामोदर महाराज, भक्तिवेदांत साधु महाराज, युवा साहित्यकार डॉ. राधाकांत शर्मा, पंडित ईश्वरचंद्र रावत, भक्तिमयूर भिक्षु महाराज,स्वामी विष्णु महाराज, गोविंद महाराज, प्रेम प्रदीप दास,राजू, राधानाथ दास एवं रविकुमार शर्मा आदि की उपस्थिति विशेष रही।संचालन डॉ. गोपाल चतुर्वेदी ने किया।
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