दुनिया में 6.18 करोड़ लोगों को ऑटिज्म, पुरुषों में दोगुने मामले; वातावरण-जीवनशैली जैसे कारक जिम्मेदार
इस समस्या से पीड़ित लोग न तो दूसरों की बात ठीक से समझ पाते हैं और न ही स्वयं को अभिव्यक्त कर पाते हैं। इसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) भी कहा जाता है।
नई दिल्ली (आरएनआई) दुनियाभर में 6.18 करोड़ लोग ऑटिज्म नामक डिसऑर्डर के शिकार हैं। इनमें महिलाएं, पुरुष और बच्चे शामिल हैं। यानी धरती का हर 127वां इन्सान ऑटिस्टिक है। इस समस्या से पीड़ित लोग न तो दूसरों की बात ठीक से समझ पाते हैं और न ही स्वयं को अभिव्यक्त कर पाते हैं। इसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) भी कहा जाता है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज 2021 पर आधारित अध्ययन में ये बातें सामने आईं हैं, जिसके नतीजे अंतरराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट साइकियाट्री में प्रकाशित हुए हैं।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर 20 वर्ष से कम आयु के बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य से जुड़ी 10 सबसे गैर-घातक चुनौतियों में से एक है। इसके बावजूद यह समस्या इनके जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है। अच्छी समझ विकसित न होने के कारण इनके स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले बहुत से कारक होते हैं जैसे कि आहार, व्यायाम, निद्रा, तनाव, अवसाद, प्राकृतिक वातावरण, और जीवनशैली। इस विकार का प्रसार पुरुषों में महिलाओं की तुलना में दोगुने से अधिक है। प्रति एक लाख पुरुषों पर ऑटिज्म के 1,065 मामले सामने आए हैं, जबकि महिलाओं में यह संख्या 508 है।
एएसडी के लिए कोई एक कारण जिम्मेदार नहीं है। कई कारक मिलकर व्यक्ति के मस्तिष्क के विकास को प्रभावित करते हैं। इनमें आनुवंशिक और पर्यावरणीय दोनों तरह के कारक शामिल होते हैं। ऑटिज्म से पीड़ित किसी बच्चे के दूसरे जैविक भाई-बहन में भी ऑटिज्म होने का खतरा बढ़ जाता है। जुड़वां बच्चों में ऑटिज्म होने की दर ज्यादा होती है। गर्भावस्था के दौरान संक्रमण या तनाव होना, समय से पहले या सामान्य आकार से छोटे बच्चे का जन्म होना, कुछ मातृ दवाएं, पर्यावरणीय विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आना ऑटिज्म के जोखिम कारक हो सकते हैं।
इस बीमारी के लक्षण आमतौर पर 12-18 महीनों की आयु में या इससे पहले भी दिखते हैं जो सामान्य से लेकर गंभीर हो सकते हैं। ये समस्याएं पूरे जीवनकाल तक रह सकती हैं।
नवजात शिशु जब ऑटिज्म का शिकार होते हैं उनमें कई संकेत दिखाई देने लगते हैं। जैसे इक्का दुक्का शब्द बार-बार बोलना या बड़बड़ाना, किसी खास चीज की तरफ बार-बार इशारा करना। मां की आवाज को अनसुना करना, ज्यादातर हाथों के बल चलकर दूसरों के पास जाना और आंखों में आंखें मिलाकर न देखना या आई-कॉन्टैक्ट न बनाना।
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