दिग्गजों की सीटों पर कांग्रेस हाईकमान करा रहा सर्वे, जीत पक्की करने के लिए क्षेत्रवार रणनीति की तैयारी
हरियाणा में जो सर्वे टीम सीधे वार रूम से जुड़ी है, वह राज्य में पार्टी के बड़े नेताओं की स्वीकार्यता का डाटा भी जुटा रही है। वह अपने सर्वे में एक सवाल यह भी पूछते हैं कि राज्य कांग्रेस का कौन नेता यहां के लोगों की उम्मीदों पर ज्यादा खरा उतर सकता है।
रोहतक (आरएनआई) हरियाणा के नेता भले कहें कि प्रदेश में पार्टी की हवा बन गई है, लेकिन कांग्रेस हाईकमान एक-एक विधानसभा सीट पर अपने प्रत्याशियों की कमजोरी पता लगा उन्हें दूर करने की पुरजोर कोशिश में जुटा है। प्रदेश में पार्टी दिग्गजों की सीटों पर खासतौर पर सर्वे कराया जा रहा है, क्योंकि पार्टी नेतृत्व उनकी जीत हर हाल में सुनिश्चित करना चाह रहा है। रणनीति बनाई जा रही है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता जब हरियाणा में प्रचार के लिए उतरें, तो उस इलाके के मुद्दों पर ठोस योजना मतदाताओं के सामने रख सकें।
कांग्रेस आलाकमान ने नई दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय में एक वार रूम बना रखा है। यह पार्टी के एक सांसद की देखरेख में काम कर रहा है। इसमें हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए खासतौर पर टीमें बनाई गई हैं। कहने को तो इसे मीडिया वॉर रूम का नाम दिया गया है, पर इसकी भूमिका रणनीति और जमीनी हकीकत पता लगाने की है। इसी वजह से इस टीम से जुड़े सदस्य और एजेंसियां दो तरीके से काम कर रही हैं।
एक अनुभवी लोगों की टीम कुछ खास विधानसभा क्षेत्रों में दौरा कर उन असंतुष्टों से होने वाले नुकसान का आकलन कर रही है, जो या तो प्रतिद्वंद्वी पार्टी के खेमे में चले गए हैं अथवा किसी निर्दलीय को परोक्ष समर्थन दे रहे हैं। दूसरी टीम में युवा मीडिया और तकनीकी प्रोफेशनल हैं, जो सोशल मीडिया के जरिए माहौल परखने के माहिर हैं। इन युवाओं को 10-10 विधानसभा क्षेत्रों की जमीनी सच्चाई पता लगाने की जिम्मेदारी दी गई है।
उन्हें एक-एक सीट पर अलग-अलग प्रभाव डालने वाले प्रमुख मुद्दों, प्रत्याशियों की कमजोर कड़ी और उससे पार पाने का रास्ता सुझाने की जिम्मेदारी दी गई है। इस टीम के सदस्य हर सीट पर कुछ चुनिंदा लोगों और जानने वालों से फोन पर बात करते हैं और उनको कुरेदकर बस वहां का मुद्दा जानना चाहते हैं। सवालों में जीत-हार की संभावना कम, प्रमुख मुद्दे तलाशने की इच्छा दिखाई देती है।
कांग्रेस के लिए हरियाणा की एक-एक विधानसभा सीट कितनी महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा वार रूम की रणनीति और फुर्ती से लगाया जा सकता है। वार रूम से जुड़े एक सूत्र का कहना है कि हरियाणा विधानसभा के चुनाव उम्मीद से कुछ दिन पहले घोषित होने के कारण कांग्रेस आलाकमान को रणनीति में बदलाव करना पड़ा। पहली चुनौती टिकट वितरण और दूसरी प्रत्याशी घोषित होने के बाद विरोध को रोकने की थी।
इसके लिए प्रभारी महासचिव, नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष को स्ट्रेटजी के साथ मैदान में उतारा गया। इसके बाद सामने आई प्रदेश के बड़े नेताओं की गुटबाजी। इसको रोकने के लिए आलाकमान ने कुछ नरम-कुछ गरम रुख अख्तियार किया। फिर चुनावी रणनीति और जीत का फार्मूला बनाने के लिए वार रूम को आलाकमान ने हरियाणा में सक्रिय कर दिया। इसकी निगरानी भी आलाकमान खुद कर रहा है। वार रूम एक-एक विधानसभा सीट के लिए हर सप्ताह प्रोग्रेस रिपोर्ट तैयार कर रहा है। सर्वे टीम के सदस्यों को कुछ सीटों के नाम दे दिए जाते हैं और उनसे 24 घंटे में अपनी रिपोर्ट एक एक्सल शीट में तैयार कर देनी होती है। इसी के आधार पर पार्टी क्षेत्रवार संसाधन का बंटवारा, नेताओं के दौरे और सेलेब्रिटी को प्रचार में उतारने की तैयारी कर रही है।
हरियाणा में जो सर्वे टीम सीधे वार रूम से जुड़ी है, वह राज्य में पार्टी के बड़े नेताओं की स्वीकार्यता का डाटा भी जुटा रही है। वह अपने सर्वे में एक सवाल यह भी पूछते हैं कि राज्य कांग्रेस का कौन नेता यहां के लोगों की उम्मीदों पर ज्यादा खरा उतर सकता है। किरण चौधरी के साथ जो हुआ और उन्होंने जो कदम उठाया, उससे आलाकमान सतर्क है और वह अब उस स्तर के किसी अन्य नेता को खोना नहीं चाहता। बड़े नेताओं के चुनाव क्षेत्र में भी सर्वे टीम पता कर रही है कि उन्होंन वहां कौन-कौन से विकास के काम कराए और उनसे जनता को कितना लाभ मिला। सबसे रोचक तो यह है कि सर्वे टीम दिग्गज नेताओं के बारे में यह भी पता कर रही है कि अपनी निधि का कितना फीसदी उन्होंने खर्च किया। उससे जो काम हुए वह किसी खास गांव या इलाके में तो सीमित नहीं हैं।
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