तख्तापलट के पीछे अमेरिका और पाकिस्तान का हाथ होने की आशंका, बांग्लादेश में अस्थिरता फैलाने का आरोप

लंबे समय से हसीना को सत्ता से हटाना चाहता था अमेरिका, विशेषज्ञ तख्तापलट के पीछे उसी की भूमिका देख रहे। दुनिया के कई देशों में यूएसएड की मदद से अस्थिरता फैलाने का अमेरिका पर लगा है आरोप। लोकतंत्र बचाने के नाम पर विवि बने अराजकता की प्रयोगशाला।

Aug 7, 2024 - 07:01
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तख्तापलट के पीछे अमेरिका और पाकिस्तान का हाथ होने की आशंका, बांग्लादेश में अस्थिरता फैलाने का आरोप

नई दिल्ली (आरएनआई) बांग्लादेश में जारी उथल-पुथल में राजनीतिक विश्लेषकों को अमेरिका और पाकिस्तान का हाथ दिख रहा है। इस छात्र आंदोलन के पीछे कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी को माना जा रहा है, जो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का करीबी है। दरअसल, लंबे समय से अमेरिका चाह रहा था कि बांग्लादेश में सरकार बदले और एक ऐसी सरकार बने, जो बांग्लादेश के हितों के बजाय अमेरिकी हितों के लिए काम करे। भारत के साथ गहरे आर्थिक और सुरक्षा संबंधों को बढ़ावा देने वाली शेख हसीना अमेरिका की उन योजनाओं में आड़े आ रही थीं, जिन्हें वह बंगाल की खाड़ी में लागू करना चाहता है। कई पूर्व भारतीय सैन्य और खुफिया अधिकारियों का दावा है कि अमेरिका लंबे समय से हसीना को सत्ता से हटाकर बांग्लादेश को अस्थिर करना चाह रहा था।

भारतीय वायुसेना (आईएएफ) के सेवानिवृत्त एयर मार्शल व चेन्नई स्थित थिंक टैंक द पेनिनसुला फाउंडेशन (टीपीएफ) के प्रमुख एम. माथेस्वरन कहते हैं, प्रधानमंत्री हसीना की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को गिराने के लिए छात्र विरोध प्रदर्शनों का फायदा उठाने में स्पष्ट रूप से अमेरिका का हाथ प्रतीत होता है। छात्र आसानी से प्रभावित होने वाला समूह है और दुख की बात है कि इस मामले में वे हसीना को हटाने के आह्वान में पश्चिमी प्रभाव के आगे झुक गए। एयर मार्शल माथेस्वरन कहते हैं, अमेरिका को अपने स्वार्थी हितों के लिए किसी भी देश को अस्थिर करने में कोई हिचक नहीं है।

रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व अधिकारी कर्नल आरएसएन सिंह कहते हैं, हसीना का सत्ता से बाहर होना भारतीय हितों के लिए बड़ा सिरदर्द बन सकता है। 2000 के दशक में जब बीएनपी-जमात सत्ता में थे, भारत के पूर्वोत्तर में उग्रवाद को जमकर बढ़ावा दिया गया। अमेरिका लंबे समय से बंगाल की खाड़ी में मौजूदगी की कोशिश कर रहा था, जो वैश्विक व्यापार के लिए रणनीतिक रूप से अहम मार्ग है। मई में हसीना ने कहा था कि एक विदेशी ताकत (अमेरिका) सेंट मार्टिन द्वीप पर सैन्य अड्डा बनाने की मांग कर रही है, ताकि चीन के मुकाबले में अपनी स्थिति मजबूत कर सके और म्यांमार की स्थिति को प्रभावित कर सके, जो दक्षिण-पूर्व एशिया का प्रवेश द्वार है।

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने हिंसा भड़काने के लिए छात्र शिविर नामक संगठन का इस्तेमाल किया। खास बात है कि छात्र शिविर संगठन बांग्लादेश में प्रतिबंधित जमात ए इस्लामी का ही हिस्सा है।

अमेरिका और इसके पश्चिमी साझेदार बांग्लादेश की अराजकता को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के नाम पर समर्थन दे रहे हैं। उनके इस रवैये से पाखंड की बू आती है, क्योंकि एक तरफ वे अमेरिकी विवि में फलस्तीन समर्थक आवाजों को बेरहमी कुचलते हैं, वहीं बांग्लादेश की अराजकता को समर्थन देते हैं। बांग्लादेश में आरक्षण कोटा में सुधार की मांग को लेकर शुरू हुए इस प्रदर्शन की सबसे बड़ी मांग पहले ही पूरी हो चुकी है। ऐसे में शेख हसीना को पद हटाने की मांग करने का कोई औचित्यपूर्ण कारण नजर नहीं आता है। यही वह वजह है, जो साफ संकेत देती है कि इस खेल में छात्र मोहरे हैं, जबकि चाल बड़ी ताकतें चल रही हैं।

हसीना को सत्ता से हटाने में पश्चिमी देशों के लिए प्रवासी बांग्लादेशी अहम उपकरण बनकर उभरे हैं, क्योंकि इन्होंने पश्चिमी देशों के डीप स्टेट एक्टरों के इशारों पर बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन की मांगों को हवा दी है। मिसाल के तौर पर पश्चिमी देशों की तरफ से तारिक जिया जैसे बीएनपी नेताओं को खुले आम समर्थन दिया जा रहा है, जो फिलहाल लंदन में हैं और खुले तौर पर हसीना को हटाने की मांग कर रहे थे। सिंह कहते हैं, बांग्लादेश में कई पश्चिमी गैर सरकारी संगठनों की मौजूदगी उपस्थिति, इनमें बार्क जैसे एनजीओ शामिल हैं, जिन्हें यूएसएड जैसे डीप स्टेट एक्टरों की तरफ से वित्त पोषित किया जाता है।

करीब 6,301 करोड़ डॉलर के बजट वाली अमेरिकी सरकार की कथित विकास एजेंसी- यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएड) का प्रमुख काम दूसरे देशों से कूटनीतिक जुड़ाव के लिए मदद करना है। इतिहास इस बात गवाह है कि जिस भी देश में यूएसएड की तरफ से मदद जाती है, वहां राजनीतिक अस्थिरता पैदा होती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इसका काम अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के साथ मिलकर अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए विदेशों में अपने लिए मोहरे तैयार करना रहता है। बांग्लादेश के मामले में यूएसएड ने बार्क और जमात-ए-इस्लमी को अपना जरिया बनाया है। ध्यान देने वाली बात है कि बांग्लादेश में हुए विरोध प्रदर्शन में बार्क यूनिवर्सिटी केंद्र में रही है। बार्क को पिछले कुछ दिनों में ही अमेरिका से करीब 20 करोड़ डॉलर की मदद मिली है।

भू-राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि जब बात अमेरिका के निजी हितों की आती है, तो वह किसी भी रणनीतिक साझेदार या सहयोगी की परवाह नहीं करता है। अतीत   में अनेक बार ऐसा हो चुका है। मौजूदा परिस्थितियों में अमेरिका के लिए चीन के खिलाफ भारत के मजबूत कंधों की जरूरत है, लेकिन अमेरिका यह कभी नहीं चाहता है कि भारत की भुजाएं इतनी ताकतवर हो जाएं कि अमेरिका उन्हें मरोड़ न पाए। यही वजह है कि अमेरिका बांग्लादेश में भारत के रणनीतिक हितों को कुचलते पाकिस्तान जैसी राजनीतिक व्यवस्था को मंजूरी दे सकता है, जहां अमेरिका के साथ चीन भी मजबूत स्थिति में है और भारत के साथ संबंधों में तनाव रहे।

जमात-ए-इस्लामी की सरकार में भूमिका यह तय करेगी कि बांग्लादेश भारत से दूर रहे, क्योंकि यह वही संगठन है, जिसने 1971 में बांग्लादेश मुक्ति अभियान के दौरान पाकिस्तानी सेना का साथ दिया था और आज भी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के बेहद करीबी संबंध हैं।

शेख हसीना ने कई बार साफ तौर पर कहा है कि अमेरिका और उसके सहयोगी म्यांमार और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों को मिलाकर एक नया ईसाई देश बनाना चाहते हैं, जिनमें कुछ हिस्से भारत के पूर्वात्तर के राज्यों के भी शामिल हैं। इसके अलावा, अमेरिका बंगाल की खड़ी में ऐसी परिस्थितियां चाहता है, जिनके बहाने भारत पर निर्भर रहे बिना मजबूत सैन्य मौजूदगी बना सके। अमेरिका अपनी इन रणनीतिक जरूरतों को तभी पूरा कर सकता है, जब यहां अस्थिरता हो और ऐसे लोग सत्ता में हों, जिन्हें असानी से नियंत्रित किया जा सके। म्यांमार में पहले से ही अस्थिरता और सैन्य शासन है, हसीना के चले जाने के बाद अमेरिका के लिए बांग्लादेश में घुसना और सेना को अपने हितों के लिए इस्तेमाल करना आसान हो जाएगा।

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