ढाई दशक बाद दिल्ली में शीला के बिना चुनाव लड़ेगी कांग्रेस
शीला के नहीं रहने व पार्टी के अधिकतर कद्दावर नेताओं के बुजुर्ग होने पर इस बार चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली के कंधों पर पार्टी के तीनों उम्मीदवारों की जिम्मेदारी आ गई है।
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नई दिल्ली (आरएनआई) दिल्ली की राजनीति में काफी समय तक केंद्र बिंदु रहीं शीला दीक्षित के बिना ढाई दशक बाद पहली बार कांग्रेस लोकसभा चुनाव लड़ेगी। शीला के नहीं रहने व पार्टी के अधिकतर कद्दावर नेताओं के बुजुर्ग होने पर इस बार चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली के कंधों पर पार्टी के तीनों उम्मीदवारों की जिम्मेदारी आ गई है। इसके अलावा उन्हें इंडिया गठबंधन में आप की चार सीटों पर सहयोग भी करना होगा।
दिल्ली में कांग्रेस की कद्दावर नेता शीला दीक्षित का निधन हो चुका है। नवंबर 84 के दंगों के मामले में सजा होने के कारण सज्जन कुमार जेल में हैं। इसके अलावा दंगों के मामले में आरोपी जगदीश टाइटलर डेढ़ दशक से राजनीतिक हाशिए पर हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा, शीला सरकार में मंत्री रहे तमाम नेता व अधिकतर पूर्व सांसद बुजुर्ग हो गए हैं। ऐसे में लवली पर चुनाव में पार्टी की कमान संभालने की जिम्मेदारी आ गई है।
लवली को भी जिम्मेदारी का भलीभांति अहसास है। पहले उत्तर पूर्वी दिल्ली सीट से उनका नाम आलाकमान के पास भेज दिया गया था। इस बीच चुनाव की कमान संभालने का संकट उठा तो उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। उनके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री व प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अजय माकन ही चुनाव की कमान संभाल सकते थे, लेकिन वह राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हो गए हैं।
कांग्रेस ने दिल्ली में वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव से शीला दीक्षित के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की शुरुआत की थी, लेकिन चुनाव में उनका जादू नहीं चला था। वर्ष 2004 व 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस को भारी जीत दिलाई थी। वर्ष 2014 में केरल की राज्यपाल होने होने से लोकसभा चुनाव में सीधे तौर पर हस्तक्षेप नहीं कर सकी थीं, जबकि पूर्वी दिल्ली सीट पर उनके बेटे संदीप दीक्षित चुनाव लड़ रहे थे।
शीला ने स्वास्थ्य सही न होने के बावजूद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव की कमान संभाली। उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष बनने के साथ-साथ उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा। हालांकि, शीला समेत कांग्रेस के सारे उम्मीदवार हार गए थे, लेकिन शीला के नेतृत्व में पार्टी को संजीवनी मिली। इस चुनाव में कांग्रेस का मत प्रतिशत बढ़ा। कांग्रेस पांच लोकसभा सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी, जबकि वर्ष 2014 के चुनाव में कांग्रेस सातों सीटों पर तीसरे नंबर पर रही थी।
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