डॉ आंबेडकर के योगदान से ही भारतीय महिलाओं की उन्नति संभव हो सकी है : डॉ. पुष्पराग

Apr 14, 2023 - 17:30
Apr 14, 2023 - 17:31
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डॉ आंबेडकर के योगदान से ही भारतीय महिलाओं की उन्नति संभव हो सकी है : डॉ. पुष्पराग

गुना। सिंगवासा के बेल पारदी समुदाय के मध्य डॉ. अंबेडकर जयंती समारोह में बोलते हुए डॉ. पुष्पराग ने कहा कि अंबेडकर सिर्फ संविधान निर्माता और दलित लीडर ही नहीं थे बल्की एक सजग नारीवादी दूरदर्शा भी थे। भारत में जब नारीवाद का कोई नाम भी ढंग से नहीं जानता था, उस वक्त बाबा साहब आंबेडकर ने नारी सशक्तिकरण के ऐसे काम किए जिससे आज भारतीय महिलाएं अंतरिक्ष तक पहुंच चुकी हैं। 20वीं शताब्दी में बाबा साहब पहले वो व्यक्ति थे जिन्होंने कहा ‘मैं किसी समाज की तरक्की इस बात से देखता हूं कि वहां महिलाओं ने कितनी तरक्की की है।’ महिलाओं के उत्थान के लिए बाबा साहब कितने गंभीर थे…ये बताने के लिए उनका ये एक कथन ही काफी है। लेकिन विडंबना देखिए… इतना सब कुछ करने के बाद भी बाबा साहब भारत में नारीवाद का चेहरा नहीं बन पाए। लोगों ने उन्हें सिर्फ दलितों के नेता और संविधान निर्माता तक सीमित कर दिया जबकि महिलाओं की भलाई के लिए उनके जितने काम शायद ही किसी भारतीय नेता ने किए हों। उनकी मॉडर्न थींकिंग और दूरदर्शिता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि जब भारतीय समाज महिलाओं को चार दीवारी में कैद रखे हुए था उनने महिला शिक्षा पर गम्भीर काम किया।

बाबा साहब ने शिक्षा के दम पर असंख्य बच्चों का भविष्य संवारा था इसलिए बाबा साहब शिक्षा के महत्व को बखूबी जानते थे। पुरुषों की शिक्षा के साथ-साथ वो महिलाओं की शिक्षा को भी बहुत ज़रूरी मानते थे। 1913 में न्यूयार्क में एक भाषण देते हुए उन्होंने कहा ‘मां–बाप बच्चों को जन्म देते हैं, कर्म नहीं देते। मां बच्चों के जीवन को उचित मोड़ दे सकती हैं। यह बात अपने मन पर अंकित कर यदि हम लोग अपने लड़कों के साथ अपनी लड़कियों को भी शिक्षित करें तो हमारे समाज की उन्नति और तेज़ होगी।’ बाबा साहब का ये कथन पूरी तरह सच साबित हुआ। आज भारत की लड़कियां शिक्षित होकर हवाई जहाज तक उड़ा रही हैं।

बाबा साहब ने अमेरिका में पढ़ाई के दौरान अपने पिता के एक करीबी दोस्त को पत्र में लिखा था ‘बहुत जल्द भारत प्रगति की दिशा स्वंय तय करेगा, लेकिन इस चुनौती को पूरा करने से पहले हमें भारतीय स्त्रियों की शिक्षा की दिशा में सकारात्मक कदम उठाने होंगे।’

18 जुलाई 1927 को करीब तीन हजार महिलाओं की एक संगोष्ठि में बाबा साहब ने कहा ‘आप अपने बच्चों को स्कूल भेजिए, शिक्षा महिलाओं के लिए भी उतनी ही जरूरी है जितना की पुरूषों के लिए। यदि आपको लिखना–पढ़ना आता है, तो समाज में आपका उद्धार संभव है। एक पिता का सबसे पहला काम अपने घर में स्त्रियों को शिक्षा से वंचित न रखने के संबंध में होना चाहिए। शादी के बाद महिलाएं खुद को गुलाम की तरह महसूस करती हैं, इसका सबसे बड़ा कारण निरक्षरता है। यदि स्त्रियां भी शिक्षित हो जाएं तो उन्हें ये कभी महसूस नहीं होगा।’

भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख की परंपरा को बाबा साहब ने आगे बढ़ाया और महिलाओं को पढ़ने लिखने की आज़ादी के लिए खूब प्रयास किए। भारतीय प्राचीन समाज में स्त्रियों को जड़, मूर्ख और कपटी स्वभाव का माना गया है और शूद्रों की तरह उन्हें अध्ययन से वंचित रखा गया लेकिन बाबा साहब ने महिला शिक्षा के लिए बहुत काम किया।

आज कामकाजी महिलाएं 26 हफ्तों की मैटरनिटी लीव ले सकती हैं, जिसकी शुरुआत बाबा साहब डॉ आंबेडकर ने ही की थी। 10 नवंबर 1938 को बाबा साहब अंबेडकर ने बॉम्बे लेजिसलेटिव असेंबली में महिलाओं की समस्या से जुड़े मुद्दों को जोरदार तरीकों से उठाया। इस दौरान उन्होंनें प्रसव के दौरान महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताओं पर अपने विचार रखे। 1942 में सबसे पहले मैटरनिटी बेनेफिट बिल डॉ. अंबेडकर द्वारा लाया गया था। इसके बाद 1948 के Employees’ State Insurance Act के जरिए महिलाओं को मातृत्व अवकाश की व्यवस्था की गई। बाबा साहब ने ये काम उस वक्त कर दिया था जब उस जमाने के सबसे ताकतवर मुल्क भी इस मामले में बहुत पीछे थे।अमेरिका जैसे देश में साल 1987 में कोर्ट के दखल के बाद महिलाओं को मैटरनिटी लीव का रास्ता साफ हुआ था। अमेरिका ने साल 1993 में Family and Medical Leave Act बनाकर आधिकारिक रूप से कामकाजी महिलाओं को पेड मैटरनिटी लीव का इंतजाम किया था। लेकिन बाबा साहब बहुत आगे की सोचते थे और उसे हकीकत बना देते थे।

बाबा साहब ने भारतीय नारी को पुरुषों के मुकाबले बराबरी के अधिकार दिए हैं। भारतीय समाज में लैंगिक असमानता को खत्म करने के लिए उन्होंने बाकायदा संविधान में लिंग के आधार पर भेदभाव करने की मनाही का इंतजाम किया। आर्टिकल 14 से 16 में महिलाओं को समाज में समान अधिकार देने का भी प्रावधान किया गया है।

बाबा साहब ने संविधान में लिखा कि ‘किसी भी महिला को सिर्फ महिला होने की वजह से किसी अवसर से वंचित नहीं रखा जाएगा और ना ही उसके साथ लिंग के आधार पर कोई भेदभाव किया जा सकता है।’  भारतीय संविधान के निर्माण के वक्त भी बाबा साहब ने महिलाओं के कल्याण से जुड़े कई प्रस्ताव रखे थे। इसके अलावा महिलाओं की खरीद-फरोख्त और शोषण के विरुद्ध भी बाबा साहब ने कानूनी प्रावधान किए। साथ ही बाबा साहब ने संविधान में महिलाओं और बच्चों के लिए राज्यों को विशेष कदम उठाने के लिए संविधान में डीपीएसपी के प्रावधान किए।

वोटिंग राइट्स को लेकर 20वीं शताब्दी के आधे हिस्से तक दुनिया भर में कई आंदोलन हुए। नारीवाद की पहली और दूसरी लहर में महिलाओं के लिए वोटिंग राइट्स की जबरदस्त मांग उठी लेकिन उस समय भारत में इसके लिए बहुत ज्यादा आंदोलन नहीं हुए थे। जब बाबा साहब को संविधान लिखने का मौका मिला तो उन्होंने महिलाओं को भी समान मताधिकार दिया। आज 18 साल की उम्र होने पर महिलाएं वोट डालने का हक रखती हैं क्योंकि बाबा साहब ने महिलाओं को समान मताधिकार दिलाया था।

दुनिया भर के लगभग सभी प्राचीन ऋषियों ने महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक माना। बालपन में पिता, युवावस्था में पति और बुढ़ापे में पुत्र उसकी रक्षा करें क्योंकि स्री स्वतंत्र होने के लायक मानी ही नहीं गई थी। लेकिन बाबा साहब ने भारतीय संविधान में उन्हें बराबरी के नागरिक अधिकार दिए। स्विटजरलैंड जैसे देश में महिलाओं को मताधिकार 1971 में मिला लेकिन बाबा ने संविधान बनाते वक्त ही महिलाओं को मताधिकार सुनिश्चित कर दिया।

बाबा साहब ने संविधान के जरिए महिलाओं को वे अधिकार दिए जो पूर्ववर्ती समाज ने नकारे थे। उन्होंने राजनीति और संविधान के जरिए भारतीय समाज में स्त्री–पुरुष के बीच असमानता की गहरी खाई पाटने का सार्थक प्रयास किया। जाति– लिंग और धर्मनिरपेक्ष संविधान में उन्होंने सामाजिक न्याय की कल्पना की है। ‘हिंदू कोड बिल’ के जरिए उन्होंने संवैधानिक स्तर से महिला हितों की रक्षा का प्रयास किया। इस बिल के 4 प्रमुख अंग थे–
1. हिंदुओं में बहू विवाह की प्रथा को समाप्त करके केवल एक विवाह का प्रावधान, जो विधिसम्मत हो।
2. महिलाओं को संपत्ति में अधिकार देना और बच्चे गोद लेने का अधिकार देना।
3. पुरुषों के समान नारियों को भी तलाक का अधिकार देना, हिंदू समाज में पहले पुरुष ही तलाक दे सकते थे।
4. आधुनिक और प्रगतिशील विचारधारा के अनुरूप समाज को एकीकृत करके उसे मजबूत करना।

डॉ. आंबेडकर का मानना था– ‘सही मायने में प्रजातंत्र तब आएगा, जब महिलाओं को पिता की संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा। उन्हें पुरुषों के समान अधिकार मिलेंगे। महिलाओं की उन्नति तभी होगी, जब उन्हें परिवार–समाज में बराबरी का दर्जा मिलेगा। शिक्षा और आर्थिक तरक्की उनकी इस काम में मदद करेगी।’ लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के हस्ताक्षर न करने के कारण  हिंदू कोड बिल पास ना हो सका। जिससे दुखी होकर 7 सितंबर 1951 को बाबा साहब ने कानून मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। मकसद पूरा न होने पर सत्ता छोड़ देना निस्वार्थ समाजसेवी की पहचान है। बाद में 1955-56 हिंदू कोड बिल के प्रावधानों को 1. हिंदू विवाह अधिनियम, 2. हिंदू तलाक अधिनियम, 3. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 4. हिंदू दत्तकगृहण अधिनियम के रूप में अलग-अलग पास किया गया।

महिलाओं को पिता और पति की संपत्ति में हिस्सेदारी देना, तलाक का अधिकार और बच्चे गोद लेने का अधिकार भी बाबा साहब ने ही उन्हें दिलाया। पुर्व में ऐसी मान्यता थी कि अगर महिला अपने घर से डोली पर निकलती है तो वापस उसकी अर्थी उठती है और विवाहित स्त्रियों का अपने पिता के घर वापस आना पाप माना जाता था लेकिन बाबा साहब ने महिलाओं के लिए क्रांति की शुरुआत कर दी थी।

बाबा साहब ने असहाय महिलाओं को उठकर लड़ने की प्रेरणा देने के लिए बाल विवाह और देव दासी प्रथा जैसी घटिया प्रथाओं के खिलाफ आवाज़ उठाई। 1928 में मुंबई में एक महिला कल्याणकारी संस्था की स्थापना की गई थी, जिसकी अध्यक्ष बाबा साहब की पत्नी रमाबाई थीं। 20 जनवरी 1942 को डॉ. भीम राव अंबेडकर की अध्यक्षता में अखिल भारतीय दलित महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसमें करीब 25 हजार महिलाओं ने हिस्सा लिया था। उस समय इतनी भारी संख्या में महिलाओं का एकजुट होना काफी बड़ी बात थी।

बाबा साहब ने महिलाओं की प्रशंसा करते हुए कहा था ‘महिलाओं में जागृति का अटूट विश्वास है। सामाजिक कुरीतियां नष्ट करने में महिलाओं का बड़ा योगदान हो सकता है। मैं अपने अनुभव से यह बता रहा हूं कि जब मैने दलित समाज का काम अपने हाथों में लिया था तभी मैने यह निश्चय किया था कि पुरूषों के साथ महिलाओं को भी आगे ले जाना चाहिए’।

भारतीय संदर्भ में देखा जाए तो आंबेडकर संभवत: पहली शख्सियत रहे हैं, जिन्होंने जातीय संरचना में महिलाओं की स्थिति को जेंडर की दृष्टि से समझने की कोशिश की। उनकी पूरी वैचारिकी के मंथन और दृष्टिकोण में सबसे अहम मंथन का हिस्सा महिला सशक्तिकरण था। भारतीय नारीवादी चिंतन और डॉ आंबेडकर के महिला चिंतन की वैचारिकी का केंद्र पितृसत्तात्मक व्यवस्था और समाज में व्याप्त परंपरागत धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं रही हैं, जो महिलाओं को पुरुषों के अधीन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती रही है।

डॉ आंबेडकर ने कहा था, ‘मैं नहीं जानता कि इस दुनिया का क्या होगा, जब बेटियों का जन्म ही नहीं होगा।’ स्त्री सरोकारों के प्रति डॉ भीमराव आंबेडकर का समर्पण किसी जुनून से कम नहीं था। सामाजिक न्याय, सामाजिक पहचान, समान अवसर और संवैधानिक स्वतंत्रता के रूप में नारी सशक्तिकरण लिए उनका योगदान पीढ़ी–दर–पीढ़ी याद किया जायेगा।

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