ज्योतिरादित्य सिंधिया की कोशिशों को मिले पंख, फिर लौटा ग्वालियर का गौरव
ज्योतिरादित्य सिंधिया की कोशिशों को मिले पंख, फिर लौटा ग्वालियर का गौरव, यूनेस्को ने दिया ‘सिटी आफ म्यूज़िक’ का खिताब।
ग्वालियर, (आरएनआई) संगीत सम्राट तानसेन ने ऐसी तान छेड़ी कि भोलेनाथ का मंदिर टेढ़ा हो गया…ग्वालियर के बेहट गांव में आज भी ये मंदिर उसी रूप में स्थापित है। अब तानसेन की इस नगरी को UNESCO ने ‘सिटी आफ म्यूज़िक के खिताब से नवाज़ा है। केंद्रिय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रयासों से शहर को ये खास तमगा हासिल हुआ है। यूनेस्को द्वारा चयन किए जाने के बाद अब ग्वालियर के संगीत को विश्व पटल पर एक नई पहचान मिलेगी और एक नई उड़ान भी हासिल होगी। अब विश्व संगीत पटल पर ग्वालियर का नाम होगा। यहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम आयोजित होंगे और इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।
तानसेन की नगरी अब बनी ‘सिटी आफ म्यूज़िक
पुरातन काल से ग्वालियर में संगीत लहरियां गूंजती रही है। ये तानसेन का शहर है..जिनका जन्म ग्वालियर से करीब 45 किलोमीटर दूर बेहट गांव में हुआ था। इस गांव में एक नदी बहती है जिसका नाम झिलमिल है। लेकिन बेहट, ग्वालियर और दरअसल पूरे देश की सांगीतिक झिलमिल तो मियां तानसेन हैं। वो तानसेन जिनके बारे में कहा जाता है कि वो बचपन में बोल नहीं पाते थे। उनके माता पिता ने ईश्वर की अथक प्रार्थना के बाद उन्हें पाया लेकिन बालक ‘तनु पांडे’ बोलने में असमर्थ थे।
कथानुसार, वो बचपन में बकरियां चराया करते और एक बकरी का दूध निकालकर भगवान शिव को अर्पित करते। एक तेज बारिश वाले दिन बालक तनु शिवजी पर दूध चढ़ाना भूल गए। शाम को तब वो भोजन करने बैठे तो ये बात याद आई। अपना भोजन छोड़ वो तुरंत बारिश में ही शिव मंदिर पहुंच गए। इस भोले बालक की भक्ति से शिवशंकर प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देकर वरदान मांगने को कहा। तब बालक ने अपने गले की ओर संकेत किया। इसपर भोलेनाथ ने कहा कि जितना जोर से बोल सकते हो..बोले। इसके बाद बालक तानसेन ने ऐसी आवाज लगाई कि शिवमंदिर एक तरफ झुक गया। बस उसी क्षण उनकी संगीत आराधना भी शुरु हो गई और वो आलाप लगाने लगे। बेहट गांव में आज भी वो टेढ़ा शिवमंदिर स्थिति है जहां देश विदेश से लोग उसे देखने पहुंचते हैं।
सिंधिया के प्रयास रंग लाए
आज 1 नवंबर मध्य प्रदेश की स्थापना दिवस की सुबह प्रदेशवासियों के लिए सौगात लेकर आई है। ग्वालियर चंबल यूनेस्को क्रिएटिव सिटीज नेटवर्क (यूसीसीएन) में शामिल हो गया है। ग्वालियर ने ‘संगीत’ श्रेणी में इस प्रतिष्ठित सूची में जगह बनाई है जिसकी घोषणा यूनेस्को ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर भी की है। इस बात के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रयासों को बड़ा श्रेय जाता है। उन्होने ग्वालियर का नाम UNESCO के म्यूजिक सिटी में शामिल हो, इसके लिए जून माह में एक समर्थन पत्र लिखा था। इस पत्र में ग्वालियर के महान सांस्कृतिक व संगीत के इतिहास और विरासत के बारे में बताया गया था साथ ही ग्वालियर घराने के महान संगीतकार तानसेन और बैजू बावरा का भी उल्लेख था। उनका ये प्रयास रंग लाया और अब ग्वालियर को ‘संगीत के शहर’ की उपाधि दी गई है।
ग्वालियर को हासिल हुई इस उपलब्धि को जानकार सिंधिया घराने और ख़ासकर ज्योतिरादित्य सिंधिया के लगातार उठाए गए कदमों से जोड़ कर देख रहे हैं। इतिहास में वर्णित है सिंधिया परिवार ग्वालियर घराने संगीत व कलाकारों को संरक्षित करने के लिए हमेशा तत्पर रहा है। उनका सरोद घर निर्माण में भी अभूतपूर्व सहयोग रहा है। सरोद घर एक संग्रहालय है जहाँ भारत के कई महान संगीतकारों के वाद्ययंत्र और व्यक्तिगत वस्तुएं संरक्षित हैं। ये महान संगीतकार उस्ताद हाफिज अली खान का पैतृक घर है, जिसे एक संग्रहालय में बदल दिया गया है। सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान ने इसका नाम सरोद घर रखा। ये एक आर्ट गैलरी है जो पर्यटकों को शहर के समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास से परिचित कराती है।
ग्वालियर घराना
बता दें कि ‘ग्वालियर घराना’ हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत परंपरा में सबसे पुराना घराना माना जाता है। ये घराना ‘ख्याल’ गायिकी के लिए सर्वप्रसिद्ध है और इसे सभी ख्याल घरानों की गंगोत्री कहा जाता है। इस घराने की गायनशैली का आरंभ 19वीं शताब्दी में हद्दू खां, हस्सू खां और नत्थू खां नाम के तीन भाइयों ने की थी। इनके शिष्य शंकर पंडित और उनके पुत्र कृष्णराव शंकर पंडित अपने समय के महान गायकों में शुमार होते थे। ग्वालियर गायकी खुले गले की गायकी है जिसमें आवाज को स्वाभाविक ढंग से लगाया जाता है। इसमें 8 अंगों का प्रयोग होता है जो हैं- आलाप-बहलावा, बोलआलाप, तान, बोलतान, मींड़, गमक, लयकारी और मुरकी-खटका-जमजमा। यहां बंदिश पर बहुत जोर दिया जाता है। इसकी गायिकी अधिकतर झुमरा , तिलवाड़ा , आड़ाचारताल , विलम्बित एक ताल आदि में निबद्ध होती है।
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