जो रंग बरस रह्यौ बरसाने, सो रंग तीन लोक में नाहें

राजकीय दर्जा प्राप्त बरसाना की लट्ठमार होली (28 फरवरी 2023) पर विशेष

Feb 25, 2023 - 22:10
 0  891
जो रंग बरस रह्यौ बरसाने, सो रंग तीन लोक में नाहें

बरसाना भगवान श्रीकृष्ण और उनकी स्वरूप भूता आल्हादिनी शक्ति राधा की लीला भूमि रही है। फाल्गुन शुक्ल नवमी को होने वाली यहां की लट्ठमार होली न केवल अपने देश में अपितु विदेशों तक में प्रसिद्ध है। जिसे देखने के लिए दुनियां के प्रत्येक कोने से लाखों लोग प्रति वर्ष यहां आते हैं। बरसाना, दिल्ली-आगरा राजमार्ग पर स्थित कोसीकलां से 19 किलोमीटर और मथुरा से (वाया गोवर्धन) 47 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 
बरसाना की लट्ठमार होली में अन्य स्थानों की होली के अनुरूप रंग-अबीर एवं नृत्य-संगीत के अलावा लाठियों से होली खेलने की जो विशिष्टता है, वो इस बात की द्योतक है कि राधा-कृष्ण की इस लीला भूमि के कण-कण में आज भी इतना रस व्याप्त है कि यहां लाठियां चल कर भी रस की वृष्टि होती है। 
होली का रंग यहां स्थित श्रीजी मन्दिर में बसन्त पँचमी के दिन होली का डॉढ़ा गड़ते ही छाने लग जाता है। साथ ही मंदिर में आने वाले दर्शनार्थियों के माथे पर गुलाल लगना प्रारम्भ हो जाता है। इसके अलावा मन्दिर में प्रतिदिन सायंकाल समाज गायन होता है। महाशिवरात्रि के दिन मन्दिर से रँगीली गली तक होली की प्रथम चौपाई अत्यंत धूमधाम के साथ निकाली जाती है। इस चौपाई में गोस्वामीगण संगीत की मृदुल स्वर लहरियों के मध्य होली के पदों का गायन करते हुए साथ चलते हैं। फाल्गुन शुक्ल सप्तमी को श्रीजी मन्दिर में राधा रानी के छप्पन प्रकार के भोग लगते हैं। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को श्रीकृष्ण के प्रतीक के रूप में नंदगाँव का एक गुसाईं बरसाना की गोपिकाओं को होली खेलने का निमंत्रण देने बरसाना आता है। बरसाना की गोपीकाओं द्वारा इस गुसाईं का लड्डुओं और माखन-मिश्री से अत्यधिक स्वागत सत्कार किया जाता है।इसके साथ ही वह होली खेलने का निमंत्रण स्वीकार कर लेती हैं। बरसाना का भी एक गुसाईं नंदगाँव जाकर वहां के गुसाइयों को बरसाना में होली खेलने हेतु आने का निमंत्रण देता है।इसी दिन बरसाना के श्रीजी मन्दिर से होली की दूसरी चौपाई सुदामा मोहल्ला होकर रँगीली गली तक जाती है। साथ ही इसी दिन फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को श्रीजी मन्दिर प्रांगण में लड्डू होली व पाण्डे लीला का भव्य आयोजन होता है। जिसमें गोस्वामीगण भक्तों व श्रद्धालुओं पर लड्डुओं और जलेबियों आदि की बौछार करते हैं।
अगले दिन फाल्गुन शुक्ल नवमी को नंदगाँव के तकरीबन 600 गोस्वामी परिवारों के हुरियारे अपनी-अपनी ढालों को लेकर नंदगाँव स्थित नंदराय मन्दिर में एकत्रित होते हैं और वहां से पैदल ही गाते-बजाते, नाचते-झूमते लगभग 9 किलोमीटर दूर बरसाना पहुँचते हैं। नंदगाँव के इन हरियारों का बरसाना में पहला पड़ाव "पीली पोखर" (प्रिया कुंड) पर होता है। यह वही सरोवर है जिसमें राधा रानी ने हल्दी का उबटन लगा कर स्नान किया था। इस कारण इसका रंग आज भी पीला है। 
नंदगाँव के हुरियारे पीली पोखर में स्नान आदि कर यहां स्थित वट वृक्ष के तले बरसाना की गोपिकाओं के साथ होली खेलने के लिए सजते-संवरते हैं। वह अपनी ढालों को भी सजाते हैं। साथ ही वह चिलम पीते हैं,हुक्का गुड़गुड़ाते हैं और सिल-बट्टा चला-चला कर भांग-ठण्डाई छानते हैं।इस सबके नशे से वह इतना मदमस्त हो जाते हैं कि उनके नेत्र व होठ आदि फड़क उठते हैं। यह नशा वह इसलिए करते हैं ताकि वह गोपीकाओं के द्वारा किये जाने वाले लाठियों के प्रहारों को अपनी ढालों पर आसानी से झेल सकें। नंदगांव के हरियारों में 10-12 वर्ष के बच्चों से लेकर 60-70 वर्ष के बूढ़े तक हुआ करते हैं। 
इस सबके बाद यह हुरियारे अपरान्ह लगभग 3 बजे नंदगांव के नंदराय मन्दिर का झंडा लेकर अपनी पारम्परिक वेशभूषा में "बम्म" (बड़ा नगाड़ा) व मंजीरों की ताल पर होली व रसिया आदि गाते हुए श्रीजी मन्दिर की ओर चल पड़ते हैं। रास्ते में इनकी बरसाना के वयोवृद्ध गुसाइयों के द्वारा उसी प्रकार "मिलनी" की जाती,जिस प्रकार की विवाहों में कन्या पक्ष की ओर से वर पक्ष की "मिलनी" होती है। यह "मिलनी' गले मिलकर, रंग-अबीर लगा कर और इलायची-मिश्री आदि खिलाकर होती है।
 होली के रसिया गाते,अबीर-गुलाल उड़ाते और नाचते-झूमते नंदगाँव के हुरियारे 250 सीढ़ियों की कवायद कर बरसाना के ब्रह्मेश्वर गिरि के उच्च शिखर पर स्थित श्रीजी मन्दिर में पहुँचते हैं। यहां राधा रानी की मनोहारी प्रतिमा के समक्ष बरसाना और नंदगाँव के गुसाइयों द्वारा समाज गायन होता है। इस समाज में नंदगाँव के गुसाईं अपने को श्रीकृष्ण का प्रतिनिधि मान कर राधा रानी के प्रतीक के रूप में बरसाना के गुसाइयों को और बरसाना के गुसाईं अपने को राधा रानी का प्रतिनिधि मान कर, श्रीकृष्ण के प्रतीक के रूप में नंदगांव के गुसाइयों को प्रेम भरी गालियाँ सुनाते हैं। साथ ही सभी परस्पर टेसू के फूलों से बने रंग के द्वारा होली खेलते हैं। 
ततपश्चात नंदगाँव के हुरियारे मन्दिर की सीढ़ियां उतर कर रँगीली गली में प्रवेश करते हैं, जहां पर कि रंगों की बौछारों एवं सङ्गीत की मृदुल स्वर लहरियों के मध्य ठिठोली यानी हंसी-मजाक की जमकर होली होती है। ठिठोली होली में नंदगाँव के हुरियारे बरसाना की गोपिकाओं के साथ श्रृंगार रस से परिपूर्ण हंसी-मजाक करते हैं। इस हंसी-मजाक में बरसाना की गोपिकाएँ भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। आखिर लें भी क्यों न, होली कौन सी रोज-रोज होती है। 
ठिठोली होली हो चुकने के बाद बरसाना की गोपिकाएँ (श्रीजी मन्दिर के गुसाईं घरों की स्त्रियां) एवं नंदगाँव के हरियारे लट्ठमार होली खेलने हेतु रँगीली गली के चौक पर एकत्रित होते हैं। उनके हाथों में मेहन्दी, पांव में महावर और आंखों में कटीला काजल हुआ करता है। कंठ-हार हमेल, हथफूल व कर्णफूल आदि अनेकानेक आभूषण उनके अंग-प्रत्यंग की शोभा बढ़ाते हैं। इसके अलावा उनके हाथों में लंबी-लंबी लाठियां और मुँह पर लंबे-लंबे घूँघट होते हैं। यह गोपिकाएँ अपने-अपने घूंघटों की ओट से नंदगांव के हरियारों पर उछल-उछल कर अपनी-अपनी लाठियों से बड़े ही प्रेम पूर्ण प्रहार करती हैं। इन प्रहारों को नंदगाँव के हरियारे अपनी-अपनी ढालों पर रोकते हैं। यह प्रहार बड़े ही जबरदस्त होते हैं। गोपिकाओं की लाठियों के प्रहारों से देखते ही देखते नंदगाँव के हरियारों की ढालें छलनी हो जाती हैं। यदि इस लट्ठमार होली में किसी के खून आदि निकल आये तो उसे एक शुभ-शगुन समझा जाता है। उससे किसी में कोई दुर्भावना उत्पन्न नही होती है। नंदगाँव के हरियारों को बरसाना की गोपिकाओं की लाठियां भी इतनी अच्छी लगती हैं कि जब-जब गोपिकाओं का लाठियां चलाने का जोश ठंडा पड़ता है, तब-तब नंदगाँव के हुरियारे श्रृंगार रस की कड़ियाँ गा-गाकर उन्हें उत्तजित कर देते हैं। अतः यह लट्ठमार होली काफी देर तक चलती है। जब यह होली हो चुकती है तब बरसाना की गोपिकाएँ अपनी लाठियों को दर्शकों के माथे पर टिका-टिका कर उनसे इनाम माँगती हैं।जो देना चाहे वह दे,किसी से कैसी भी कोई जबरदस्ती नही होती है। 
लट्ठमार होली के खेलने की तैयारी बरसाना की गोपिकाएँ और नंदगांव के हुरियारे कई महीनों पूर्व से बड़े ही उत्साह व उमंग के साथ किया करते हैं। बरसाना में जिस दिन यह होली खेली जाती है उस दिन लोग-बाग इस होली को देखने के लिये सुबह से ही घरों की छतों पर बैठना शुरू कर देते हैं। रँगीली गली के किनारे बने सारे मकानों के छज्जे इस होली के असँख्य दर्शकों से पट जाते हैं। इसके अलावा रँगीली गली में भी दर्शकों का सैलाब उमड़ पड़ता है।बरसाना में जिस दिन लट्ठमार होली होती है उस दिन यहां सुबह से ही घर-घर में पूड़ी-पकवान बनने शुरू हो जाते हैं। क्योंकि पता नही कब और किसके घर पर बरसाना की लट्ठमार होली देखने हेतु मेहमान आ जाएं। इस दिन प्रायः प्रत्येक बरसाना वासी के यहां कोई न कोई मेहमान अवश्य आता है। 
अगले दिन यानी फाल्गुन शुक्ल दशमी को इसी प्रकार की लट्ठमार होली नंदगाँव में गांव से बाहर रंगीली चौक पर होती है। नंदगाँव में होने वाली लट्ठमार होली में हुरियारे होते हैं बरसाना के गुसाईं और लाठियां चलाती हैं नंदगाँव की गोपिकाएँ। नंदगाँव में होली खेलने हेतु बरसाना के गुसाईं बरसाना स्थित श्रीजी मन्दिर की ध्वजा को लेकर नंदगाँव जाते हैं। वहां के यशोदा मन्दिर में उनका भांग-ठण्डाई से स्वागत-सत्कार किया जाता है।उसके बाद नंदराय मन्दिर में संगीत समाज होता है। ततपश्चात वहां होती है बरसाना की भांति लट्ठमार होली।

(लेखक वरिष्ठ साहित्यकार एवं आध्यात्मिक पत्रकार हैं।)

डॉ. गोपाल चतुर्वेदी
वृन्दावन
मोबाइल - 9412178154

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

RNI News Reportage News International (RNI) is India's growing news website which is an digital platform to news, ideas and content based article. Destination where you can catch latest happenings from all over the globe Enhancing the strength of journalism independent and unbiased.