जैसलमेर में धरती फाड़कर निकली जलधारा! वैज्ञानिकों का दावा- टेथिस सागर का तट था ये इलाका
राजस्थान के जैसलमेर में जहां टयूबवेल की खुदाई के दौरान पाताल लोक से रहस्यमयी पानी, मिट्टी और गैस निकली, वहां किसी जमाने में विशाल डायनासोर का राज हुआ करता था। वैज्ञानिकों को इस बात के सबूत भी मिल चुके हैं। जैसलमेर में पानी निकलने वाली ताजा घटना का संबंध प्राचीन टेथिस सागर से जोड़ा जा रहा है।
जैसलमेर (आरएनआई) राजस्थान के जैसलमेर में जहां टयूबवेल की खुदाई के दौरान पाताल लोक से रहस्यमयी पानी, मिट्टी और गैस निकली, वहां किसी जमाने में विशाल डायनासोर का राज हुआ करता था। वैज्ञानिकों को इस बात के सबूत भी मिल चुके हैं। जैसलमेर में पानी निकलने वाली ताजा घटना का संबंध प्राचीन टेथिस सागर से जोड़ा जा रहा है।
दरअसल, वर्तमान में जैसलमेर का नाम सुनते ही जेहन में दूर-दूर तक फैले रेत के समंदर की तस्वीर सामने आती है, मगर कई वैज्ञानिकों का दावा है कि 25 करोड़ साल पहले राजस्थान का यह इलाका दुनिया के सबसे विशाल टेथिस सागर का तट हुआ करता था। कहते हैं कि मौजूदा जैसलमेर शहर के एक तरफ अथाह जलराशि समेटे टेथिस सागर का किनारा था तो दूसरी ओर डायनासोर रहा करते थे।
डॉ रविंद्र कुमार बुडानिया आचार्य भूगोल राजकीय लोहिया महाविद्यालय चूरू कहते हैं कि जैसलमेर बाड़मेर तथा इसके आसपास का थार मरुस्थल का संपूर्ण क्षेत्र मध्य जीवी युग में टेथिस सागर के रूप में स्थित था। यूरेशियन तथा भारतीय प्लेट में उत्पन्न संपीडनात्मक बल के कारण इस स्थान पर गर्त का निर्माण हुआ, जहां कई सालों तक नदियां बहती थीं। इन्हीं नदियों के अवसाद के जमाव के कारण यह एक मैदान बना और बाद में हुए जलवायु परिवर्तनों के कारण यह एक मरुस्थल बन गया।
डॉ बुडानिया के अनुसार जैसलमेर में आज भी लवणीय पदार्थों तथा जीवाश्म की मौजूदगी इस बात के प्रमाण है कि यह भूभाग कभी समुद्र के नीचे रहा है। पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस के भंडार भी यहां मौजूद है। साथ ही मीठे जल के भंडार भी यहां मिलते हैं। हाल ही में जैसलमेर में पानी तेजी से बाहर निकालने की जो घटना घटित हुई है। शायद धरातल के आंतरिक भाग में प्राकृतिक गैस और पानी का भंडार मौजूद रहा होगा, जिस पर से दबाव हटाने के कारण वो तेजी से बाहर निकला है।
जैसलमेर आज भले ही सम के धोरों की रेत के पहचाना जाता हो। यहां भूजल स्तर पाताल में चला गया हो और रेगिस्तान का जहाज ऊंट दौड़ता नजर आता हो, मगर किसी जमाने में यहां पर फाइटर प्लेन जैसे बड़े पंख वाले डायनासोर की मौजूदगी थी। यहां टेथिस सागर के पानी में विशाल शार्क मछलियां तैरा करती थीं। एशिया में इस शार्क के जीवाश्म सिर्फ जैसलमेर, जापान और थाईलैंड में मिले हैं।
IIT रुड़की और भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) की टीम ने जैसलमेर जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर जेठवाई क्षेत्र में 16.7 करोड़ साल पुराना शाकाहारी डायनासोर का जीवाश्म दूंढ निकाला। डायनासोर का यह जीवाश्म दुनिया का सबसे पुराना जीवाश्म था। यह इस बात का सबूत है कि करोड़ों साल पहले जैसलमेर में डायनासोर रहा करते थे। उस समय भारतीय उपमहाद्वीप डिप्लोडोसॉइड डायनासोरों की उत्पति और क्रमिक-विकास का मुख्य केंद्र था।
जैसलमेर के जेठवाई और थैयात गांव में साल 2014 और 2016 में करोड़ों साल पुराने डायनासोर के जीवाश्म मिल चुके हैं। जैसलमेर के रेगिस्तान में मिले जीवाश्म को 'थारोसोरस इंडिकस' यानी भारत के थार का डायनासोर नाम दिया गया। इनकी रीढ़ की लंबी थी और सिर पर ठोस नोक, जो चीन में मिले जीवाश्म से भी पुराने हैं। वैज्ञानिकों का कहना था कि जैसलमेर का यह इलाका डायनासोर बेसिन हो सकता है।
दरअसल, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) के वैज्ञानिक देबाशीष भट्टाचार्य, कृष्ण कुमार, प्रज्ञा पांडे और त्रिपर्णा घोष ने करीब पांच साल पहले जैसलमेर में खोजबीन की थी। उनकी रिसर्च के दौरान गांव जेठवाई की पहाड़ियों में शाकाहारी डायनासोर थोरोसोरस की रीढ, गर्दन, सूंड, पूंछ और पसलियों के जीवाश्यम मिले थे। फिर सुनील बाजपेयी और देबाजित दत्ता ने उन जीवाश्म की आईआईटी रुड़की रिसर्च सेंटर में जांच की और अगस्त 2023 में इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ये जीवाश्म दुनिया के सबसे पुराने शाकाहारी डायनासोर के हैं।
जैसलमेर के बारे में तो यह भी दावा किया जाता है कि करोड़ों साल पहले टेथिस सागर के जमाने में यहां पर रेत के टीलों की जगह 30-40 फीट लंबे घने पेड़ों वाला जंगल हुआ करता था। इसका सबसे बड़ा सबूत जैसलमेर के आकल गांव स्थित फूड फोसिल पार्क है, जिसमें करोड़ों साल पहले के पेड़ के जीवाश्म मौजूद है। लकड़ी के वो पेड़ वक्त के साथ पत्थर में तब्दील हो गए।
वरिष्ठ भूजल वैज्ञानिक डॉ. नारायण दास इनखिया कहते हैं जैसलमेर के मोहनगढ़ के बोरवेल की खुदाई के दौरान निकला पानी हजारों से साल पहले यहां से बहने वाली सरस्वती नदीं का नहीं है, क्योंकि 28 दिसंबर 2024 को नलकूप की खुदाई से निकले पानी का इतिहास करीब 60 लाख साल पुराना है जबकि सरस्वती नदी तो इस इलाके में 5 हजार साल पहले बहा करती थी।
वरिष्ठ भूजल वैज्ञानिक डॉ. नारायण दास इनखिया का यह भी कहना है कि बोरवेल से पानी के साथ निकली मिट्टी टर्सरी काल की है, जो वैदिक काल से भी पुरानी है। यह पूरी तरह से समुद्री मिट्टी है। वहीं, पानी का टीडीएस भी करीब 5 हजार है। हालांकि समुद्र के पानी का टीडीएस इससे भी ज्यादा होता है, मगर जैसलमेर में बोरवेल से निकले पानी के साथ कई तरह के खनिज लवण भी मिल गए हैं, इसलिए इसके टीडीएस में कमी आ सकती है।
वरिष्ठ भूजल वैज्ञानिक इनखिया की मानें तो जैसलमेर के मोहनगढ़ इलाके में बोरवेल से निकले पानी को सरस्वती नदी का पानी कहना जल्दबाजी होगी, क्योंकि सरस्वती नदी का मार्ग तो भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित तनोट के आस-पास क्षेत्र है, जहां जमीन के कुछ नीचे ही बाहर निकलता है, जो मीठा है जबकि बोरवेल से निकला पानी खारा है। इलाके में आठ-दस कुएं खोदने के बाद ही यहां के पानी की अच्छी तरह से जांच की जा सकती है।
राजस्थान में सीमावर्ती इलाके जैसलमेर की उप तहसील मोहनगढ़ के नहरी क्षेत्र के 27 बीडी चक 3 जोरावाला में भाजपा मंडल अध्यक्ष व किसान विक्रम सिंह भाटी के खेत में बोरवेल खोदा जा रहा था। बोरवेल को 850 फीट तक खोद दिया था। 28 दिसंबर 2024 को बोरवेल से पाइप वापस निकाले जा रहे थे। सुबह पांच बजे बोरवेल से अचानक पानी का फव्वारा फूट पड़ा था। बोरवेल की खुदाई के काम में लगा ट्रक व बोरिंग मशीन तक को वहां से हटाने का समय नहीं मिला और देखते ही देखते विक्रम सिंह व उनके पड़ोसियों के खेत पानी के तालाब बन गए। करीब 72 घंटे बाद पानी अपने बाद बंद हो गया और ट्रक व 22 टन वजनी बोरिंग मशीन भी उसी पानी वाले गड्ढे में समा गए।
जैसलमेर में बोरवेल खुदाई के दौरान पाताल से अचानक पानी व गैस निकलने की सूचना पर गुजरात के बड़ौदा से ONGC की क्राइसिस मैनेजमेंट की टीम मौके पर पहुंची और घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया। जांच रिपोर्ट तैयार की, जो 3 जनवरी 2025 को जैसलमेर जिला कलेक्टर प्रताप सिंह नाथावत को सौंप दी। रिपोर्ट में कहा गया है कि भूगर्भ से संभवतया ट्रक व बोरिंग मशीन के प्रेशर की वजह से ही पानी और गैस का रिसाव बंद हुआ है, मगर उन्हें बाहर निकाला गया तो आशंका है कि वापस पानी और गैस निकलने लग सकती है।
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