जिला अस्पताल को सोनोग्राफी में नहीं दिखी 23 एमएम की पथरी
पुनः प्राइवेट जांच में ये सामने आई पथरी, ये जानलेवा है लापरवाही
गुना। सरकार, स्वास्थ्य सेवाओं को चकाचक करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही। जिले के प्रभारी मंत्री भी औचक निरीक्षण कर अस्पताल की सेहत पर दृष्टिपात करते रहते हैं। सीएमओ, सिविल सर्जन भी दावा करते हैं कि डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल की सारी व्यवस्थाएं टनाटन हैं। पैथोलॉजी, सीटी स्कैन, सोनोग्राफी, एक्सरे, वेंटीलेटर से लेकर हर जांच मशीन और संसाधन भी आला दर्जे के हैं। और स्टाफ भी बेहद काबिल है। ऐसे में एक ऐसा वाकया सामने आया है जिससे जिला अस्पताल की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा हो गया है।
कहानी कुछ यूं है कि अपने गुना शहर के केंट निवासी संतोष तिवारी की धर्मपत्नी 50 वर्षीय मीना को पेट में दर्द की शिकायत हुई। दरअसल, वर्षों पहले मीना को पथरी हुई थी जिसे डॉक्टर्स ने ऑपरेशन से तभी निकाल भी दिया था। लेकिन सात आठ साल बाद फिर हल्का दर्द महसूस होने पर संतोष अपनी पत्नी का चेकअप कराने 5 अप्रैल को जिला अस्पताल पहुंचे। काउंटर पर 10 रुपए की रसीद कटवा कर उन्होंने मीना का चैकअप कराया। उन्होंने डॉक्टर को पथरी की पुरानी हिस्ट्री बताई तो डॉक्टर ने उन्हें सोनोग्राफी कराने की सलाह दी।
जिला अस्पताल पर भरोसा किए बैठे संतोष और उनकी पत्नी ने अस्पताल में ही सोनोग्राफी कराना मुनासिब समझा और तीन सौ रुपए की रसीद कटवा कर सोनोग्राफी करा भी ली। बकौल संतोष "अस्पताल में हमसे कहा गया कि यहां जांच मत करवाओ रिपोर्ट नॉर्मल ही आती है। लेकिन फिर भी मैंने सरकारी अस्पताल पर भरोसा करके वहीं जांच कराने का निर्णय लिया। सोनोग्राफी के दौरान हम पति पत्नी मॉनिटर पर हलचल देखते रहे। बाद में अस्पताल के डिपार्टमेंट ऑफ रेडियो डायग्नोसिस से सोनोग्राफी की रिपोर्ट जारी कर दी गई। जिसमें अपर एब्डोमेन और लोअर एब्डोमेन में स्थित सभी आंतरिक अंगों को नॉर्मल बताया गया। रिपोर्ट के मुताबिक पथरी नहीं पाई गई।"
इस सरकारी रिपोर्ट को देखकर तिवारी दंपत्ति ने सुकून की सांस ली। बाबजूद इसके मीना को पेट के निचले हिस्से में दर्द होता रहा। जब पांच दिनों तक दर्द की वही स्थिति रही तो संतोष के दिमाग में अस्पताल की रिपोर्ट को लेकर शक गहराया। इस कारण उन्होंने सेकेंड ओपिनियन लेने के लिए शहर के एक प्राइवेट सेंटर पर सोनोग्राफी करवाई। यहां जो रिपोर्ट सामने आई उसे पढ़कर संतोष और मीना के पैरों तले जमीन सरक गई। मीना की दाहिनी किडनी में 23.7 एमएम यानी लगभग एक इंच की पथरी होना पाया गया।
जिला अस्पताल की रिपोर्ट गलत और झूठी साबित हुई। इस वाकये से सन्न तिवारी दंपत्ति का कहना है कि जिला अस्पताल की ये लापरवाही जानलेवा है। एलोपैथी में डॉक्टर्स विभिन्न जांच रिपोर्ट को देखकर और उन्हें सही मानकर ही मेडिसिन लिखते हैं। जब जांच रिपोर्ट ही गलत और अविश्वसनीय है तो इलाज क्या ख़ाक होगा। ऐसी रिपोर्ट पर भरोसा करना तो जान जोखिम में डालना ही है।
इस वाकए को सुनने वाला हर व्यक्ति हतप्रभ है। लोगों का कहना है या तो जिला अस्पताल की मशीन खराब है या फिर जांच कर रिपोर्ट बनाने वाला अयोग्य है। लोगों को ये भी आशंका है कि कहीं प्राइवेट पैथोलॉजी और डायग्नोस सेंटर्स को कमीशन के बदले लाभ पहुंचाने की नियत से तो इस तरह की कारगुजारियां नहीं की जा रहीं।
बहरहाल, हकीकत जो भी हो इस तरह के वाकये न केवल अस्पताल की व्यवस्थाओं पर सवालिया निशान लगाते हैं, बल्कि जनता के उस भरोसे को भी तोड़ते हैं जिसे सरकारें गुड गवर्नेंस का विज्ञापन कर जनता के मन में जगह बनाकर जैसे तैसे जीतती हैं।
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