‘जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नीति आयोग जैसी ईकाई की जरूरत’, सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा- यह गंभीर खतरा
सुप्रीम कोर्ट के जज केवी विश्वनाथन ने जलवायु परिवर्तन को अस्तित्व के लिए खतरा बताया है। उन्होंने कहा है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नीति आयोग की तर्ज पर एक आयोग बनाया जाना चाहिए।
नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन ने शुक्रवार को कहा कि जलवायु परिवर्तन एक गंभीर खतरा है और इस समस्या का व्यापक समाधान खोजने के लिए नीति आयोग के की तरह ही भारत में एक स्थायी आयोग की स्थापना होनी चाहिए।
वकील जतिंदर (जय) चीमा की "क्लाइमेट चेंज: द पॉलिसी, लॉ एंड प्रैक्टिस" नामक पुस्तक के लॉन्च होने के मौके पर सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा कि जलवायु परिवर्तन अस्तित्व के लिए बहुत बड़ा खतरा है। उन्होंने आगे कहा कि चीमा ने अपनी किताब में जलवायु परिवर्तन के लिए आयोग की स्थापना की बात कही है। किताब में चीमा ने बताया है कि नीति आयोग की तर्ज पर एक स्थायी निकाय बने ताकि समय- समय पर सभी जलवायु परिवर्त से जुड़ी समस्याओं का समाधान किया जा सके।
न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने कहा कि विशेषज्ञों के बीच जलवायु परिवर्तन को लेकर व्यापक कानून की रूपरेखा को लेकर भी तीखी बहस चल रही है जिसे भारत को अपनाना चाहिए।
जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया का जलचक्र भी प्रभावित हो रहा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि दुनियाभर में जल संकट कितना गंभीर हो चुका है इसका अंदाजा संयुक्त राष्ट्र की ओर जारी आंकड़ों से भी लगाया जा सकता है। इसके मुताबिक दुनिया में चार करोड़ से ज्यादा लोग ऐसे हैं, जिन्हें साल में कम से कम एक महीने पानी की कमी से जूझना पड़ता है।
2025 तक दुनिया की आधी आबादी उन क्षेत्रों में रह रही होगी जहां पानी की कमी है। इतना ही नहीं 2030 तक करीब 70 करोड़ लोग पानी की भारी कमी के चलते अपने घरों को छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगे। पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च से जुड़े वैज्ञानिकों ने अध्ययन में जानकारी दी है कि अगले 26 वर्षों में जलापूर्ति पर पड़ने वाले दबाव की वजह से पानी पर करीब 30 फीसदी अतिरिक्त समय देना होगा। सबसे ज्यादा बोझ महिलाओं और बच्चियों पर पड़ेगा।
अध्ययन से जुड़े पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट के प्रमुख शोधकर्ता रॉबर्ट कैर का कहना है कि जलवायु में आ रहा बदलाव, बारिश के पैटर्न को प्रभावित कर रहा है। नतीजन पानी की उपलब्धता भी प्रभवित हो रही है। 2050 तक उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में महिलाएं को पानी भरने में लगने वाला यह समय 30 फीसदी बढ़ सकता है।
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