जलवायु परिवर्तन: बारिश की कमी के कारण बढ़ा वायु प्रदूषण, कम बर्फबारी का भी असर
मौसम विशेषज्ञों के अनुसार जब बारिश होती है, तो बादल और बारिश मिलकर वायुमंडल से प्रदूषक तत्वों को साफ करते हैं। बारिश उन कणों को वापस धरती पर भेजती है और बादल उन्हें सोख लेते हैं। कुछ खतरनाक प्रदूषक जैसे कार्बन मोनोऑक्साइड, सीसा, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, ओजोन, विभिन्न धातुओं से मिश्रित कण और और सल्फर डाइऑक्साइड हवा को विषाक्त और खतरनाक बनाते हैं।
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नई दिल्ली (आरएनआई) देश के ज्यादातर क्षेत्रों में सितंबर के बाद अब तक बारिश न होने के कारण वह प्राकृतिक तंत्र नष्ट हो गया है, जो आमतौर पर प्रदूषकों को फैलाकर दूर ले जाने और वायु गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करता है। बारिश की कमी ने दिल्ली सहित देश के कई शहरों में प्रदूषण संकट को और बढ़ा दिया है।
मौसम विशेषज्ञों के अनुसार जब बारिश होती है, तो बादल और बारिश मिलकर वायुमंडल से प्रदूषक तत्वों को साफ करते हैं। बारिश उन कणों को वापस धरती पर भेजती है और बादल उन्हें सोख लेते हैं। कुछ खतरनाक प्रदूषक जैसे कार्बन मोनोऑक्साइड, सीसा, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, ओजोन, विभिन्न धातुओं से मिश्रित कण और और सल्फर डाइऑक्साइड हवा को विषाक्त और खतरनाक बनाते हैं। सर्दी का मौसम ऐसा होता है जब तापमान गिरता है लेकिन प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। चूंकि बारिश की बूंदें आकाश में गिरती हैं इसलिए यह धूल, पराग, सल्फर डाइऑक्साइड और अन्य कणों को पकड़कर हवा को शुद्ध करने में मदद करती है। इस प्रक्रिया को भी वेट डिपोजिशन के रूप में जाना जाता है। बारिश किसी भी सतह से प्रदूषकों को धो देती है। इसलिए हवा को शुद्ध करने में बारिश की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है।
प्राकृतिक पैटर्न के मुताबिक अगर बारिश कम होगी तो बर्फबारी भी कम ही होगी। इसका व्यापक असर हिमालय से जुड़े देशों पर पड़ेगा क्योंकि यह पर्वतमाला एशिया की जल मीनार और मौसम नियामक का काम करती है। बर्फबारी भी हवा को शुद्ध करने में बारिश की तरह ही भूमिका निभाती है। यह विभिन्न प्रदूषकों को पकड़ती है और भूमि पर लाती है। बर्फबारी ओजोन निर्माण को कम करती है और हवा की सेहत सुधार में मदद करती है।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार सर्दियों के मौसम में हिमालयी राज्यों में होने वाली वर्षा धीरे-धीरे पूरे पश्चिमोत्तर भारत में पहुंचती है। लेकिन इस दौरान हिमाचल प्रदेश में सामान्य से 98% कम और जम्मू-कश्मीर में सामान्य से 68% कम बारिश दर्ज की गई। हिमालच में पिछले 123 वर्षों में तीसरा सबसे सूखा अक्तूबर महीना गुजरा, जिसमें 97% कम बारिश हुई। नवीनतम पूर्वानुमान के अनुसार दिसंबर 2024 के शेष दिनों के दौरान उत्तरी और उत्तर पश्चिमी भारत के अधिकांश हिस्सों के साथ पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में औसत से कम बारिश होने की उम्मीद है।
नासा गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के अनुसार एशिया में कम हवा की गति और स्थिर मौसम भी प्रदूषण को सतह के पास जमा होने दे रहा है और खराब वायु गुणवत्ता का कारण बन रहा है। वायुमंडलीय परिस्थितियां जैसे हवा का दबाव, तापमान और आर्द्रता वायु की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं। आमतौर पर जमीन के पास गर्म हवा ऊपर उठती है और प्रदूषण को दूर ले जाती है, लेकिन सर्दियों के दौरान गर्म हवा की परत एक ढक्कन की तरह काम करती है जिससे ठंडी हवा सतह पर बनी रहती है।
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