जलवायु परिवर्तन: तापमान में दो डिग्री वृद्धि तो बढ़ेंगे कीट, गेहूं की 46% और धान की 19 फीसदी पैदावार घटेगी
अगर तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो गेहूं, धान और मक्का की पैदावार में कीटों के कारण भारी गिरावट आ सकती है। एक अध्ययन में चेताया गया है कि जलवायु परिवर्तन से कीटों की संख्या बढ़ेगी, जिससे खाद्य संकट और अर्थव्यवस्था पर असर की आशंका है।

नई दिल्ली (आरएनआई) तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से फसलों पर कीटों और घुन का प्रकोप बहुत तेजी से बढ़ सकता है, जिससे गेहूं की पैदावार में लगभग 46, धान में 19 और मक्का में 31 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। यह खुलासा यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर, यूनिवर्सिटी ऑफ हेबेई और चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज के वैज्ञानिकों की ओर से किए ताजा अध्ययन में किया गया है। शोध के निष्कर्ष नेचर रिव्यू एंड इनवायर्नमेंट में प्रकाशित किए गए हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण कीटों और घुनों का पारिस्थितिक व्यवहार भी बदल रहा है। पहले जो ठंडे इलाके उनके लिए प्रतिकूल माने जाते थे, अब वहीं तापमान के बढ़ने से उनके लिए उपयुक्त निवास स्थल बन रहे हैं। भूमध्य रेखा से सटे गर्म क्षेत्रों से ये कीट ऊंचाई वाले और ठंडे इलाकों की ओर पलायन कर रहे हैं, जहां पहले उनका प्रसार नहीं था। शोध में कहा, देशी आक्रामक प्रजातियां अब बंदरगाहों और कंटेनरों के माध्यम से दुनिया के उन हिस्सों में पहुंच रही हैं जहां पहले उनका कोई अस्तित्व नहीं था।
कीटों का प्रभाव विशेष रूप से उत्तरी अमेरिका, यूरोप और चीन के उन हिस्सों में अधिक देखने को मिलेगा, जहां गेहूं, धान और मक्का जैसी फसलें बड़े पैमाने पर उगाई जाती हैं। इन क्षेत्रों में तापमान बढ़ने से अब सर्दियों के दौरान भी कीट जीवित रह पा रहे हैं, जिससे उनका जीवनचक्र लंबा होता जा रहा है और वे बार-बार प्रजनन करने में सक्षम हो रहे हैं।
तेजी से बढ़ती कीट आबादी के कारण केवल फसलें ही नहीं, बल्कि समाज के कमजोर वर्ग भी प्रभावित हो सकते हैं। कम पैदावार से बाजार में आपूर्ति घटेगी, जिससे कीमतें बढ़ेंगी और गरीब व कृषक समुदायों को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ सकता है।
शोध का निष्कर्ष स्पष्ट चेतावनी देता है कि यदि समय रहते इस संकट पर ध्यान नहीं दिया गया, तो गेहूं, धान, मक्का और सोयाबीन जैसी महत्वपूर्ण फसलों को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है। इसके लिए वैज्ञानिकों ने बेहतर निगरानी प्रणाली, कीटों के प्रसार का पूर्वानुमान लगाने वाले मॉडल और जलवायु के अनुकूल कृषि प्रबंधन रणनीतियों को अपनाने की सिफारिश की गई है।
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