जलवायु परिवर्तन को लेकर कार्रवाई ईंधन के किसी क्षेत्र, स्रोत तक सीमित न हो : भूपेन्द्र यादव
वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने मिस्र में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में कहा कि जलवायु परिवर्तन को लेकर कार्रवाई किसी भी क्षेत्र, ईंधन स्रोत और गैस स्रोत तक सीमित नहीं की जा सकती तथा सभी देशों को अपनी-अपनी राष्ट्रीय परिस्थिति के अनुसार कदम उठाने चाहिए।
नयी दिल्ली, 16 नवंबर 2022, (आरएनआई)। वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने मिस्र में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में कहा कि जलवायु परिवर्तन को लेकर कार्रवाई किसी भी क्षेत्र, ईंधन स्रोत और गैस स्रोत तक सीमित नहीं की जा सकती तथा सभी देशों को अपनी-अपनी राष्ट्रीय परिस्थिति के अनुसार कदम उठाने चाहिए।
भारत ने शनिवार को प्रस्ताव किया था कि वार्ता में जीवाश्म ईंधन कम करने का भी निर्णय किया जाए। यूरोपीय संघ ने इस आह्वान का मंगलवार को समर्थन किया ।
ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत और चीन के ‘बेसिक ग्रुप’ (बीएएसआईसी समूह) के मंत्रियों की मंगलवार को मिस्र के शर्म-अल-शेख में आयोजित जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र प्रारूप सम्मेलन की 27वीं पक्षकार संगोष्ठी (कॉप-27) में केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव ने यह बात कही।
यादव ने कहा, ‘‘कॉप-27 में, हमें अपने साथी विकसित देशों को एक बार फिर इस बात पर राजी करना चाहिये कि कार्रवाई महत्वपूर्ण होती है, वादे नहीं। हर कॉप बैठक में संकल्प पर संकल्प किये जाते हैं, जो जरूरी नहीं कि फायदेमंद हों।’’
उन्होंने कहा कि ऐसी कार्रवाई के जरिये ही विकास को मापना चाहिये, जो उत्सर्जन में सीधी कमी की तरफ ले जाये और विकसित देशों को चाहिए कि वह दुनिया को ऐसा करके दिखायें।
पर्यावरण एवं जलवायु परिर्वतन मंत्री ने कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन को लेकर कार्रवाई किसी भी क्षेत्र, किसी भी ईंधन स्रोत और किसी भी गैस स्रोत तक सीमित नहीं की जा सकती तथा पेरिस समझौते की मूल भावना के तहत, सभी देश अपनी-अपनी राष्ट्रीय परिस्थिति के अनुसार कार्रवाई करें।’’
यादव की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब अमेरिका, जापान और अन्य देशों ने दुनिया के पांचवें सबसे बड़े ग्रीनहाउस उत्सर्जन करने वाले देश इंडोनेशिया की मदद करने के लिये धन जुटाने का संकल्प व्यक्त किया है ताकि वह कोयले के उपयोग से दूर होकर नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र की तरफ बढ़ने के प्रयास तेज कर सके।
पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री यादव ने कहा कि इस संबंध में अपनी जिम्मेदारियों का पालन करने के लिहाज से जलवायु कार्रवाई के लिये भारत दो मुद्दों..मानवता और जलवायु न्याय पर अपनी स्थिति फिर से स्पष्ट करना चाहता है।
उन्होंने कहा कि भारत मानता है कि सभी देशों का वैश्विक कार्बन बजट में अपने-अपने हिस्से पर अधिकार है तथा सभी को अपनी-अपनी समग्र उत्सर्जन सीमा में ही रहना चाहिये।
यादव ने कहा कि अपने मौजूदा लक्ष्य को समय से काफी पहले शून्य उत्सर्जन तक पहुंचा देने वाले विकसित देशों को शेष कार्बन बजट तक विकासशील देशों को पहुंच देनी चाहिये।
उन्होंने कहा कि यह काम गहन ऋणात्मक उत्सर्जन तथा विकसित देशों के कार्बन ऋण को निधि में परिवर्तित करके किया जा सकता है।
केंद्रीय मंत्री ने इस दिशा में न्यायपूर्ण परिवर्तन पर जोर दिया और कहा कि भारत के लिये न्यायपूर्ण परिवर्तन का मतलब, धीरे-धीरे कम-कार्बन विकास रणनीति तक पहुंचना है ताकि खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा, विकास एवं रोजगार सुनिश्चित हो तथा इस प्रक्रिया में कोई भी पीछे न रह जाये।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारी नजर में विकसित देशों के साथ कोई भी साझेदारी इस नजरिये पर ही आधारित होनी चाहिये।’’
वहीं, यूरोपीय संघ के उपाध्यक्ष फ्रांस टिमेरमांस ने कहा कि समूह जीवाश्म ईधन का उपयोग कम करने के भारत के प्रस्ताव का समर्थन करेगा।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी समूह की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट का हवाला देते हुए भारतीय वार्ताकारों ने मिस्र की कॉप27 अध्यक्षीय पीठ से कहा था कि पेरिस समझौते के दीर्घकालिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिये सभी जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम करना होगा।
भारतीय पक्ष ने कहा था कि यह बात समझनी चाहिए कि सभी जीवाश्म ईधन ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में योगदान देते हैं।
नवीकरणनीय ऊर्जा क्षेत्र का काफी विस्तार होने के बावजूद विकसित देश भारत को लगातार कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता कम करने को कहते रहे हैं।
भारत का हालांकि कहना है कि वह बिजली उत्पादन के लिये अगले कुछ वर्षों तक कोयले के मुख्य स्रोत पर निर्भर रहेगा।
इस बारे में यादव ने कहा, ‘‘हमने सिर्फ लक्ष्यों पर ही ध्यान नहीं लगाया है। हम मानते हैं कि विभिन्न घटकों में लक्ष्य बदलते रहते हैं। इनमें प्रौद्योगिकी विकास, वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक रुझान और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की स्थिति शामिल है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘शून्य उत्सर्जन तक का लंबा सफर तय करने में अपरिहार्य जोखिम हैं, लेकिन फौरी कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित करने से हमें यह भरोसा हो गया है कि हम बदलती परिस्थितियों को देखते हुये आगे बढ़ने का रास्ता निकाल लेंगे।’’
पेरिस जलवायु संधि में वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने, जलवायु परिवर्तन के अनुकूल खुद को ढालने तथा उसके (जलवायु परिवर्तन के) प्रभावों से निपटने के बारे में सहमति बनी थी जिसमें कार्बन बजट की बात भी कही गई थी।
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