जयपुर के गोविन्दगढ़ में पूजा सिंह बनी 'मीरा', ठाकुरजी से रचाया विवाह
राजस्थान के मेवाड़ में सैकड़ों साल पूर्व मीरा ने भगवान कृष्ण की मूर्ति से प्रेम कर भक्ति भाव के चलते कृष्ण की मूर्ति से शादी कर अपना सम्पूर्ण जीवन उनकी भक्ति में समर्पित कर दिया था। अब गांव नरसिंहपुरा में पूजा सिंह ने ठाकुरजी की मूर्ति के साथ हिन्दू रीति-रिवाज से फेरे लेकर शादी की है। पूजा सिंह की इस अनोखी की शादी क्षेत्र में चर्चा की विषय बनी हुई है। लोगों का कहना है कि सैकड़ो साल बाद पूजा के रूप मीरा देवी का पुनर्जन्म हुआ है। पूजा की इस अनोखी शादी में उसकी मां ने अपनी बेटी का कन्यादान किया। यह अनोखी शादी गोविन्दगढ़ क्षेत्र के ग्राम नरसिंहपुरा में हुई है।
जानकारी के मुताबिक, 30 वर्षीय पूजा सिंह पॉलिटिकल साइंस से एमए हैं। पूजा सिंह ने तुलसी विवाह के बारे में सुन रखा था। एक बार उसने ननिहाल में देखा भी था। तब उसने सोचा कि जब ठाकुरजी तुलसाजी से विवाह कर सकते हैं तो वह क्यों नहीं ठाकुरजी से विवाह कर सकती। उसने इसके बारे में पंडित जी से पूछा तो उन्होंने भी कहा कि ऐसा हो सकता है। इसके बाद पूजा ने अपनी मां से बात की, शुरू में तो वे बोली कि ऐसा कैसे हो सकता है, लेकिन फिर मान गई। पूजा की इस शादी के विचार से उसके पिता प्रेम सिंह नाराज हो गए और साफ मना कर दिया। नाराजगी के कारण पापा इस शादी में भी नहीं आए। ठाकुरजी से विवाह का फैसला पूजा के खुद का था। बहुत से लोगों ने सपोर्ट किया और बहुत से लोगों ने मजाक भी बनाया, लेकिन पूजा ने उनकी परवाह नहीं की। पिछले दो साल से वह यह विवाह करना चाहती थी, लेकिन आखिरकार यह अब हुआ है।
पूजा का कहना है कि, परमेश्वर को ही अपना पति बना लिया है। लोग कहते थे कि सुहागन होना लड़की के लिए सौभाग्य की बात होती है। भगवान तो अमर होते हैं, इसलिए मैं भी अब हमेशा के लिए सुहागन हो गई हूं।' कॉलेज करने के बाद घर वाले शादी के लिए लड़का देखना शुरू किया था। पूजा ने अपने फैसले से घरवालों को अवगत कराया तो वे चकित हो गए। पूजा की शादी में पिता के नहीं आने पर मां ने ही विवाह की सारी रस्में निभाई। शादी की रस्मों के दौरान हल्दी लगाने से लेकर मेहंदी तक की रस्में धूमधाम से हुईं। सहेलियों ने पूजा को सजाया संवारा। उसने सहेलियों के साथ डांस भी किया। घर में रोजाना मंगलगीत गाए गए।
शादी में परंपरानुसार दुल्हा दूल्हन की मांग सिंदूर से भरता है, लेकिन इस शादी में यह परंपरा भी कुछ अलग तरीके से हुई। ठाकुरजी की ओर से खुद पूजासिंह ने अपनी मांग भरी। ठाकुरजी को सिंदूर से अधिक चंदन पसंद होता है, इसलिए पूजासिंह ने अपनी मांग भी सिंदूर की बजाय चंदन से भरी। पूजा सिंह और ठाकुरजी का यह विवाह सभी रीति रिवाजों से हुआ। बाकायदा गणेश पूजन से लेकर चाकभात, मेहंदी, महिला संगीत और फेरों की रस्में हुई। ठाकुरजी को दूल्हा बनाकर गांव के मंदिर से पूजा सिंह के घर लाया गया। मंत्रोच्चार हुआ और मंगल गीत गाए गए। पिता नहीं आए तो मां ने फेरों में बैठकर कन्यादान किया। इसके बाद विदाई हुई। परिवार की ओर से कन्यादान और जुहारी के 11000 रुपए दिए गए। ठाकुर जी को एक सिंहासन और पोशाक दी गई।
पूजा सिंह बताती हैं कि अब कोई मुझे यह ताना नहीं जयपुर के गोविन्दगढ़ में पूजा सिंह बनी 'मीरा', ठाकुरजी से रचाया विवाह
राजस्थान के मेवाड़ में सैकड़ों साल पूर्व मीरा ने भगवान कृष्ण की मूर्ति से प्रेम कर भक्ति भाव के चलते कृष्ण की मूर्ति से शादी कर अपना सम्पूर्ण जीवन उनकी भक्ति में समर्पित कर दिया था। अब गांव नरसिंहपुरा में पूजा सिंह ने ठाकुरजी की मूर्ति के साथ हिन्दू रीति-रिवाज से फेरे लेकर शादी की है। पूजा सिंह की इस अनोखी की शादी क्षेत्र में चर्चा की विषय बनी हुई है। लोगों का कहना है कि सैकड़ो साल बाद पूजा के रूप मीरा देवी का पुनर्जन्म हुआ है। पूजा की इस अनोखी शादी में उसकी मां ने अपनी बेटी का कन्यादान किया। यह अनोखी शादी गोविन्दगढ़ क्षेत्र के ग्राम नरसिंहपुरा में हुई है।
जानकारी के मुताबिक, 30 वर्षीय पूजा सिंह पॉलिटिकल साइंस से एमए हैं। पूजा सिंह ने तुलसी विवाह के बारे में सुन रखा था। एक बार उसने ननिहाल में देखा भी था। तब उसने सोचा कि जब ठाकुरजी तुलसाजी से विवाह कर सकते हैं तो वह क्यों नहीं ठाकुरजी से विवाह कर सकती। उसने इसके बारे में पंडित जी से पूछा तो उन्होंने भी कहा कि ऐसा हो सकता है। इसके बाद पूजा ने अपनी मां से बात की, शुरू में तो वे बोली कि ऐसा कैसे हो सकता है, लेकिन फिर मान गई। पूजा की इस शादी के विचार से उसके पिता प्रेम सिंह नाराज हो गए और साफ मना कर दिया। नाराजगी के कारण पापा इस शादी में भी नहीं आए। ठाकुरजी से विवाह का फैसला पूजा के खुद का था। बहुत से लोगों ने सपोर्ट किया और बहुत से लोगों ने मजाक भी बनाया, लेकिन पूजा ने उनकी परवाह नहीं की। पिछले दो साल से वह यह विवाह करना चाहती थी, लेकिन आखिरकार यह अब हुआ है।
पूजा का कहना है कि, परमेश्वर को ही अपना पति बना लिया है। लोग कहते थे कि सुहागन होना लड़की के लिए सौभाग्य की बात होती है। भगवान तो अमर होते हैं, इसलिए मैं भी अब हमेशा के लिए सुहागन हो गई हूं।' कॉलेज करने के बाद घर वाले शादी के लिए लड़का देखना शुरू किया था। पूजा ने अपने फैसले से घरवालों को अवगत कराया तो वे चकित हो गए। पूजा की शादी में पिता के नहीं आने पर मां ने ही विवाह की सारी रस्में निभाई। शादी की रस्मों के दौरान हल्दी लगाने से लेकर मेहंदी तक की रस्में धूमधाम से हुईं। सहेलियों ने पूजा को सजाया संवारा। उसने सहेलियों के साथ डांस भी किया। घर में रोजाना मंगलगीत गाए गए।
शादी में परंपरानुसार दुल्हा दूल्हन की मांग सिंदूर से भरता है, लेकिन इस शादी में यह परंपरा भी कुछ अलग तरीके से हुई। ठाकुरजी की ओर से खुद पूजासिंह ने अपनी मांग भरी। ठाकुरजी को सिंदूर से अधिक चंदन पसंद होता है, इसलिए पूजासिंह ने अपनी मांग भी सिंदूर की बजाय चंदन से भरी। पूजा सिंह और ठाकुरजी का यह विवाह सभी रीति रिवाजों से हुआ। बाकायदा गणेश पूजन से लेकर चाकभात, मेहंदी, महिला संगीत और फेरों की रस्में हुई। ठाकुरजी को दूल्हा बनाकर गांव के मंदिर से पूजा सिंह के घर लाया गया। मंत्रोच्चार हुआ और मंगल गीत गाए गए। पिता नहीं आए तो मां ने फेरों में बैठकर कन्यादान किया। इसके बाद विदाई हुई। परिवार की ओर से कन्यादान और जुहारी के 11000 रुपए दिए गए। ठाकुर जी को एक सिंहासन और पोशाक दी गई।
पूजा सिंह बताती हैं कि अब कोई मुझे यह ताना नहीं मार सकता कि इतनी बड़ी होकर भी कुंवारी बैठी है। मैंने भगवान को ही पति बना लिया है। शादी के बाद ठाकुरजी तो वापस मंदिर में विराजमान हो गए हैं जबकि पूजा अपने घर पर रहती है। अपने कमरे में पूजा ने एक छोटा सा मंदिर बनाया है, जिसमें ठाकुरजी हैं। वह उनके सामने अब जमीन पर ही सोती है। रोजाना सवेरे सात बजे मंदिर में विराजमान ठाकुरजी के लिए वह भोग बनाकर ले जाती हैं। जिसे मंदिर के पुजारी भगवान को अर्पित करते हैं। इसी तरह वह शाम को भी मंदिर जाती हैं। सकता कि इतनी बड़ी होकर भी कुंवारी बैठी है। मैंने भगवान को ही पति बना लिया है। शादी के बाद ठाकुरजी तो वापस मंदिर में विराजमान हो गए हैं जबकि पूजा अपने घर पर रहती है। अपने कमरे में पूजा ने एक छोटा सा मंदिर बनाया है, जिसमें ठाकुरजी हैं। वह उनके सामने अब जमीन पर ही सोती है। रोजाना सवेरे सात बजे मंदिर में विराजमान ठाकुरजी के लिए वह भोग बनाकर ले जाती हैं। जिसे मंदिर के पुजारी भगवान को अर्पित करते हैं। इसी तरह वह शाम को भी मंदिर जाती हैं।
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