जम्मू-कश्मीर में पहली बार ओबीसी आरक्षण
जम्मू-कश्मीर में, 2011 की जनगणना में अन्य पिछड़ा वर्ग की गणना नहीं हुई है, लेकिन अनुमान के मुताबिक यहां की कुल आबादी का 40 फीसदी से अधिक पिछड़ा वर्ग है। 1931 की जनगणना में इनकी आबादी 32 फीसदी बताई जाती है।
जम्मू, (आरएनआई) जम्मू-कश्मीर में पहली बार ओबीसी आरक्षण का रास्ता साफ हो गया है। मंडल कमीशन की रिपोर्ट देशभर के अधिकांश राज्यों में लागू हो गई लेकिन अनुच्छेद 370 की वजह से यहां 27 फीसदी आरक्षण का फार्मूला नहीं लागू हो सका। इसके चलते पिछड़े वर्ग के लोगों ने लगातार अपने हित के लिए संघर्ष किया।
अब मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर आरक्षण संशोधन विधेयक पारित कर पिछले सात दशक से अधिक समय से जख्म लिए घूम रहे पिछड़े वर्ग के लोगों के जख्म पर मरहम लगाया है। इस आरक्षण का प्रतिशत कितना होगा, फिलहाल स्पष्ट नहीं है।
जम्मू-कश्मीर में हालांकि, 2011 की जनगणना में अन्य पिछड़ा वर्ग की गणना नहीं हुई है, लेकिन अनुमान के मुताबिक यहां की कुल आबादी का 40 फीसदी से अधिक पिछड़ा वर्ग है। 1931 की जनगणना में इनकी आबादी 32 फीसदी बताई जाती है। प्रदेश में ओबीसी की जगह अन्य सामाजिक जातियां (ओएससी) हैं जो पूरे देश में कहीं भी नहीं है।
अन्य जातियों में 28 जातियां हैं। जीडी शर्मा आयोग ने इसमें और 12 जातियों को जोड़ दिया। यदि यह जातियां शामिल हो गईं तो यहां 40 जातियां ओबीसी के अंतर्गत हो जाएंगी। ओएससी को पहले यहां दो फीसदी आरक्षण था, जिसे बढ़ाकर चार प्रतिशत कर दिया गया है। जबकि देशभर में ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण है। हालत यह है कि जम्मू-कश्मीर के बाहर इन्हें किसी प्रदेश की नौकरियों में आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता है।
केवल केंद्र सरकार की नौकरियों में ये आरक्षण का लाभ ले सकते हैं। यहां तक की जम्मू कश्मीर में स्थानीय निकाय व पंचायती राज संस्थानों में भी उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं है। पिछड़े वर्ग से जुड़े लोगों का कहना है कि अपने प्रदेश में तो उन्हें यह सुविधा नहीं ही मिल रही है, अन्य राज्यों में भी उन्हें सुविधाओं से मरहूम रहना पड़ रहा है।
ओबीसी से जुड़े लोग फिर अधिकार तिरंगा यात्रा से अपनी आवाज बुलंद करेंगे। वे 27 फीसदी आरक्षण की मांग को लेकर 23 से 26 जनवरी तक कठुआ जिले के बसोहली व बिलावर में अधिकार तिरंगा यात्राएं निकालेंगे। इसके तहत वे रैलियां निकालकर केंद्र सरकार से अन्य राज्यों की तरह मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करते हुए ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने की मांग करेंगे। पहले भी इस प्रकार की यात्राएं जम्मू संभाग के कई स्थानों पर निकाली जा चुकी हैं।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में अब पांच सीटों पर मनोनयन होगा। इनमें दो सीटों पर महिलाओं का मनोनयन पहले की तरह होगा। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन संशोधन अधिनियम के बाद और तीन सदस्य मनोनीत होंगे। इनमें दो कश्मीरी पंडित तथा एक पीओजेके का नुमाइंदा होगा। कश्मीरी पंडितों में से एक महिला होगी।
अनुच्छेद 370 व 35ए हटने के बाद ओबीसी आरक्षण का जम्मू-कश्मीर में दरवाजा खुल गया है। पहले की सरकारें केंद्रीय कानून को यहां लागू नहीं होने देती थीं, जिससे एक बड़ा तबका आरक्षण के लाभ से वंचित रहा है। 1992 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट पूरे देश में लागू हुई, लेकिन जम्मू कश्मीर में तीन दशक बाद भी यह सपना है। कितना फीसदी आरक्षण मिलेगा यह तय नहीं, लेकिन उम्मीद है कि उप राज्यपाल प्रशासन सम्मानजनक आरक्षण का प्रावधान करेगा।
राशन कार्ड तो मिल गया है, लेकिन कितना राशन मिलता है यह देखना है। ओबीसी के साथ शुरू से ही दोहरा मापदंड अपनाया गया। जब पूरे देश में मंडल कमीशन लागू हो गया तब भी जम्मू कश्मीर के लोग 30 साल से अधिक समय से इससे वंचित हैं। हमें स्थानीय तथा पंचायत चुनावों तक में आरक्षण नहीं है। अन्य राज्यों की नौकरियों में भी हमारी युवा पीढ़ी भाग्य नहीं आजमा सकती हैं। हमारे बच्चों की स्कॉलरशिप तीन साल से बंद है। कई मुद्दे हैं जिन पर सरकार को ध्यान देना है।
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