चैतन्य महाप्रभु श्रीकृष्ण का प्रेम संकीर्तन अवतार: चंचलापति दास
’फूलों की होली, छप्पन भोग, हरिनाम संकीर्तन एवं महाभिषेक रहा आकर्षण का केन्द्र, चंद्रोदय मंदिर में महाभिषेक के दर्शन के लिए उमड़ा जन सैलाब।

वृन्दावन (आरएनआई) ब्रजमंडल की विश्व प्रसिद्ध होली महोत्सव के मध्य फाल्गुन मास की पूर्णिमा (गौर पूर्णिमा) को गौडी़या वैष्णव सम्प्रदाय के प्रवर्तक, श्रीधाम वृन्दावन के प्राकट्यकर्ता चैतन्य महाप्रभु के अवतरण दिवस के रूप में मनाया गया। भक्ति वेदांत स्वामी मार्ग स्थित वृन्दावन चंद्रोदय मंदिर में गौरांग महाप्रभु की 539वीं जयंती पर मंदिर प्रांगण में फूल बंगला, छप्पन भोग, पालकी उत्सव, महाभिषेक, हरिनाम संकीर्तन एवं फूलों की होली का भव्य आयोजन किया गया।
भक्तों को सम्बोधित करते हुए चंद्रोदय मंदिर के अध्यक्ष श्री चंचलापति दास ने श्रीमद् भागवत के श्लोक कृष्णवर्णं त्विष्कृष्णं सङ्गोपाङ्गास्त्रपार्षदम्। यज्ञैः सङ्कीर्तनप्रायैर्यजन्ति हि सुमेधसः॥ 32 ॥
का भाव समझाते हुए कहा कि श्री चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य का वर्णन श्रीमद् भागवत के (11.5.32) में वर्णित है। जो वहिरंग में गौर और अंतरंग में कृष्ण है। जो श्री राधा भाव में प्रविष्ठ हैं, श्री शचीनंदन श्रीगौर सुंदर को कलियुग में बुद्धिमान पुरूष संकीर्तन प्रधान यज्ञ के द्वारा प्रसन्न करते हैं। कलियुग में भगवत प्राप्ति हेतु संकीर्तन ही मूल विधि बतायी गयी है। श्री चैतन्य महाप्रभु निरंतर श्रीकृष्ण के अनुसंधान में रहते हैं। जिनके अंग नित्यानंद और अद्वैत महाप्रभु हैं। जिनके अश्रित श्रीवास जैसे शुद्ध भक्त हैं। जिनका अस्त्र हरिनाम संकीर्तन है। जिनके अंगों की कांन्ति पीत अर्थात गौर वर्ण है। वहीं कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में अवतरित हुए।
चंद्रोदय मंदिर के नवीन प्रागंण में आयोजित गौर पूर्णीमा महामहोत्सव के दौरान भक्ति से भाव विभोर होकर भक्त अपने आराध्य को निरंतर निहारते रहे। इस कार्यक्रम में मथुरा, आगरा, लखनऊ, दिल्ली, गुरूग्राम, जयपुर, हरियाणा एवं ग्वालियर और मुरैना सहित अन्य जिलों भक्त परिकर उपस्थित हुए।
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