चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कोर्ट ने बताया ये कारण
उच्चतम न्यायालय ने दो मार्च को एक दूरगामी फैसले में कहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति एक समिति की सिफारिश पर करेंगे जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधान न्यायाधीश शामिल होंगे। संविधान पीठ के फैसले में कहा गया था कि अदालत इस बात से हैरान है कि गोयल ने पिछले साल 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन कैसे कर दिया अगर उन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त करने के प्रस्ताव के बारे में जानकारी नहीं थी।
उच्चतम न्यायालय ने नौकरशाह अरूण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने है कि कहा कि शीर्ष अदालत की संविधान पीठ दो मार्च के अपने फैसले में इस मुद्दे पर गौर कर चुकी है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि न्यायमूर्ति (अब सेवानिवृत्त) केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने गोयल की नियुक्ति की फाइल का अवलोकन किया था लेकिन उसे रद्द करने से इनकार कर दिया था साथ ही उन्होंने इस मसले पर कुछ टिप्पणियां की थीं।
पीठ ने गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और इसे खारिज कर दिया। एनजीओ की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि गोयल की नियुक्ति मनमानी है क्योंकि उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। केंद्र की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एनजीओ को दोबारा मामला दर्ज करने की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि संविधान पीठ ने नियुक्ति की फाइल का अवलोकन किया है लेकिन उसे रद्द करने से इनकार कर दिया है।
उच्चतम न्यायालय ने दो मार्च को एक दूरगामी फैसले में कहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति एक समिति की सिफारिश पर करेंगे जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधान न्यायाधीश शामिल होंगे। संविधान पीठ के फैसले में कहा गया था कि अदालत इस बात से हैरान है कि गोयल ने पिछले साल 18 नवंबर को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन कैसे कर दिया अगर उन्हें चुनाव आयुक्त नियुक्त करने के प्रस्ताव के बारे में जानकारी नहीं थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि 15 मई, 2022 से राजीव कुमार की मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति के बाद चुनाव आयुक्त का पद खाली हुआ था।शीर्ष अदालत ने कहा था कि चुनाव आयुक्त के पद पर नियुक्ति स्पष्ट रूप से इस आधार पर की गई थी कि नियुक्ति में कोई बाधा नहीं है क्योंकि कोई विशिष्ट कानून नहीं है। इससे पहले न्यायालय ने गोयल को चुनाव आयुक्त नियुक्त करने की जल्दबाजी पर सवाल उठाते हुए कहा था कि उनकी फाइल 24 घंटे में विभागों के भीतर 'बिजली की गति' से गुजरी। केंद्र ने इन टिप्पणियों का जोरदार विरोध किया था और अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने दलील दी थी कि उनकी नियुक्ति से संबंधित पूरे मुद्दे को पूरी तरह से देखने की जरूरत है। शीर्ष अदालत ने पूछा था कि केंद्रीय कानून मंत्री ने चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री को भेजे गए चार नामों के पैनल को कैसे सूचीबद्ध किया, जबकि उनमें से कोई भी छह साल का निर्धारित कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया होगा।
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