चीनी वीजा भ्रष्टाचार मामले में कार्ति चिदम्बरम की बढ़ीं मुश्किलें
सीबीआई ने 2011 के चीनी वीजा भ्रष्टाचार मामले में कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम और अन्य के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया है। आरोपपत्र में उनपर घूसखोरी, धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के आरोप लगाए गए हैं। मामला उस समय का है जब उनके पिता पी. चिदंबरम केंद्रीय मंत्री थे।
नई दिल्ली (आरएनआई) केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम और अन्य के खिलाफ एक आरोपपत्र दायर किया है। यह मामला 2011 में उस समय का है, जब उनके पिता पी. चिदंबरम केंद्रीय मंत्री थे। आरोप है कि चिदंबरम ने एक पावर कंपनी के लिए चीनी नागरिकों को वीजा की सुविधा प्रदान करने के लिए कथित तौर पर रिश्वत ली थी। अधिकारियों ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि विशेष अदालत में दायर सीबीआई के आरोपपत्र में शिवगंगा से लोकसभा सांसद कार्ति चिदंबरम, उनके सहयोगी एस. भास्करारमन, वेदांता की सहायक कंपनी तलवंडी साबो पावर लिमिटेड (टीएसपीएल) और मुंबई स्थिल बेल टूल्स के नाम शामिल हैं। इन कंपनियों के जरिए कथित तौर पर पैसे का लेन-देन किया गया। एजेंसी ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और फर्जीवाड़ा के आरोप लगाए हैं। आरोपपत्र में शामिल अन्य आरोपियों वायरल मेहता, अनुप अग्रवाल, मंसूर सिद्दीकी और चेतन श्रीवास्तव के नाम शामिल हैं।
सीबीआई ने 2022 में दर्ज अपनी प्राथमिकी के दो साल बाद यह आरोपपत्र दायर किया है। इसमें आरोप लगाया है कि पंजाब स्थित टीएसपीएल एक 1980 मेगावाट का थर्मल पावर प्लांट स्थापित कर रहा था और इसका काम एक चीनी कंपनी शादोंग इलेक्ट्रिक पावर कंस्ट्रक्शन कॉर्प (एसईपीसीओ) को आउटसोर्स किया गया गया था। यह परियोजना समय पर पूरी नहीं हो पा रही थी और कंपनी को जुर्माने का सामना करना पड़ सकता था। एजेंसी ने कहा, देर के लिए दंडात्मक कार्रवाई से बचने के लिए कंपनी (टीएसपीएल) अधिक से अधिक चीनी नागरिकों और पेशेवरों को साइट पर लाने की कोशिश कर रही थी और इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा तय सीमा से अधिक परियोजना वीजा की जरूरत थी।
प्राथमिकी में सीबीआई ने यह भी जिक्र किया है कि टीएसपीएल के एक कार्यकारी ने कार्ति चितंबरम से उनके करीबी सहयोगी भास्करारमन के जरिए संपर्क किया था। उन्होंने अधिक से अधिक परियोजना वीजा की अनुमित हासिल करने के लिए एक गोपनीय रास्ता अपनाया। जिससे 263 परियोजना वीजा को दोबारा इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई। यह परियोजना वीजा 2010 में विशेष रूप से पावर और स्टील क्षेत्र के लिए जारी किए गए थे। लेकिन इस वीजा को दोबारा जारी करने का कोई प्रावधान नहीं था। सीबीआई ने आरोप लगाया कि टीएसपीएल के एक कार्यकारी ने 30 जुलाई 2011 को गृह मंत्रालय को एक पत्र लिखकर परियोजना वीजा के दोबारा उपयोग की अनुमति मांगी, जिसे एक महीने के भीतर ही मंजूरी दी गई। इसमें आरोप लगाया गया है कि 17 अगस्त 2011 को कार्यकारी ने भास्करारमन के निर्देश पर इस पत्र की एक प्रति ई-मेल के जरिए कार्ति को भेजी। भास्करानन ने तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम के साथ चर्चा के बाद मंजूरी के लिए अवैध तरीके से पचास लाख रुपये की रिश्वत मांगी।
प्राथमिकी में यह भी कहा गया है कि टीएसपीएल से कार्ति चिदंबरम और भास्करारमन को रिश्वत की राशि मुंबई स्थित बेल टूल्स लिमिटेड के जरिए भेजी गई। जिसके बाद वीजा से जुड़े कार्यों के लिए परामर्श और खर्चों के तहत दो चालानों के जरिए भुगतान को छिपाया गया था। सीबीआई ने यह भी कहा कि मुंबई स्थित निजी कंपनी का वीजा से जुड़े किसी भी काम से कोई संबंध नहीं था। यह पूरी तरह से औद्योगिकी चाकुओं के व्यवसाय में थी। एजेंसी की रिपोर्ट में यह भी आरोप लगाया गया है कि चिदंबरम वेदांता समूह के बोर्ड में रहे हैं और उनके बेटे कार्ति ने मुंबई स्थित स्टरलाइट ऑप्टिकल टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (वेदांता समूह की एक कंपनी) से वित्तीय लाभ हासिल किया था। इसने नवंबर 2003 में कार्ति चितंबरम की चेन्नई स्थित कंपनी मेलट्रैक इंडिया लिमिटेड को 1.5 करोड़ रुपये का ऋण दिया था और उस पर ब्याज अगस्त में माफ कर दिया गया था, जब 2004 पी. चिदंबरम ने वित्त मंत्री के रूप में शपथ ली।
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