चार बार लगातार PM बनीं, 45 मिनट में 15 साल का राज खत्म; दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी संकट से निपटीं
बांग्लादेश की लगातार चार बार प्रधानमंत्री बनने वाली शेख हसीना का 15 साल का राज महज 15 मिनट में ही खत्म हो गया। उन्हें दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी संकट से निपटने के लिए जाना जाता है।
नई दिल्ली (आरएनआई) बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की बेटी और लौह महिला कही जाने वाली शेख हसीना का 15 साल का शासन खत्म हो गया। लगातार चार बार प्रधानमंत्री रहीं हसीना का यह पांचवां कार्यकाल था। बिगड़े हालातों के बीच हसीना को सेना ने देश छोड़ने के लिए 45 मिनट का समय दिया था। इस तरह हसीना के शासन का अंत हो गया।
शेख हसीना के विरोधियों ने एक निरंकुश नेता के तौर पर उनकी आलोचना भी खूब की लेकिन इन सबके बावजूद वह दुनिया में सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वाली महिला प्रमुखों में से एक रहीं। शेख हसीना पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बनीं और 2009 से लगातार देश का नेतृत्व कर रही हैं। इस साल जनवरी में लगातार चौथी बार चुनी गईं।
सितंबर 1947 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पैदा हुईं हसीना 1960 के दशक में ढाका विश्वविद्यालय में पढ़ते वक्त ही राजनीति में सक्रिय हो गई थीं।
हसीना ने बाहर उनके राजनीतिक संपर्क सूत्र के तौर पर काम किया। 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी मिलने के बाद, उनके पिता मुजीबुर रहमान देश के राष्ट्रपति और फिर प्रधानमंत्री बने।
अगस्त 1975 में, रहमान, उनकी पत्नी और उनके तीन बेटों की सैन्य अधिकारियों ने घर में घुसकर हत्या कर दी। हसीना अपनी छोटी बहन शेख रिहाना के साथ विदेश में होने के कारण बच गईं।
भारत में छह साल निर्वासन में बिताने वाली हसीना को उनके पिता की बनाई पार्टी अवामी लीग का नेता चुना गया। 1981 में, हसीना स्वदेश लौटीं और सैन्य शासित देश में लोकतंत्र को लेकर मुखर हो गईं। कई मौकों पर उन्हें नजरबंद भी रखा गया।
1991 के आम चुनावों में शेख हसीना के नेतृत्व वाली आवामी लीग बहुमत हासिल करने में विफल रही। उनकी प्रतिद्वंद्वी बांग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) की खालिदा जिया प्रधानमंत्री बनीं। पांच साल बाद, 1996 के आम चुनावों में हसीना प्रधानमंत्री चुनी गईं। हालांकि 2001 के चुनावों में हसीना को सत्ता से बाहर कर दिया गया, लेकिन 2008 के चुनावों में भारी जीत के साथ 2009 में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इससे पहले 2004 में उनकी रैली में एक ग्रेनेड विस्फोट कर उनकी हत्या की भी कोशिश की गई थी।
2009 में सत्ता में आने के बाद, हसीना ने 1971 के युद्ध अपराधों के मामलों की सुनवाई के लिए एक न्यायाधिकरण की स्थापना की। विपक्ष के कुछ हाई-प्रोफाइल सदस्यों को दोषी पाए गए, जिससे हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए। इस्लामिस्ट पार्टी और बीएनपी की प्रमुख सहयोगी जमात-ए-इस्लामी को 2013 में चुनावों में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया। बीएनपी प्रमुख खालिदा जिया को भ्रष्टाचार के आरोप में 17 साल जेल की सजा भी सुनाई गई।
हसीना ने पिछले 15 वर्षों में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक का नेतृत्व किया और बांग्लादेश में लोगों के जीवन स्तर में सुधार किया। एक मीडिया संस्थान ने कई साल पहले उन्हें ‘आयरन लेडी’ (लौह महिला) नाम दिया और तब से पश्चिमी मीडिया उन्हें इसी नाम से बुलाता है। उनके समर्थक हसीना को विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाने और देश में स्थिरता प्रदान करने का श्रेय देते हैं।
भारत-चीन के प्रतिद्वंदी हितों के बीच कुशलतापूर्वक बातचीत का श्रेय भी हसीना को दिया जाता है। बांग्लादेश वस्तुतः दोनों एशियाई दिग्गजों के बीच फंसा हुआ है। चुनावों से पहले उन्हें दोनों बड़े पड़ोसियों और रूस का समर्थन मिला।
हसीना को दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी संकट से निपटने का भी श्रेय मिला। 2017 में म्यांमार से भागकर आए दस लाख से अधिक रोहिंग्याओं ने बांग्लादेश में शरण ली है।
1971 युद्ध के पूर्व सैनिकों के परिजनों को नौकरी में कोटे से बिगड़ी सियासत
2024 में पीएम चुने जाने के छह महीने बाद, 1971 में स्वतंत्रता सेनानियों के रिश्तेदारों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 फीसदी कोटा देने को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। हिंसा में 300 से अधिक प्रदर्शनकारी मारे गए। जिसके कारण उन्हें नाटकीय ढंग से पद छोड़ना पड़ा।
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