चार जातियों को मिला बजट का सबसे ज्यादा लाभ, क्या बदल जाएंगे चुनावी समीकरण
जिन चार जातियों को देश के सबसे प्रमुख वर्गों में बांटा था, वही इस बजट की सबसे लाभार्थी साबित हुई हैं। ऐसे में क्या भाजपा के लिए आगामी छः राज्यों में चुनावी समीकरण बदल सकते हैं? राजनीतिक विशेषज्ञों की राय जानिए
नई दिल्ली (आरएनआई) पिछले लोकसभा चुनाव में जब भाजपा का प्रदर्शन 2014 और 2019 के मुकाबले कमजोर रह गया था, तब यही कहा गया था कि बेरोजगारी और अग्निपथ योजना से नाराज युवाओं ने सरकार का साथ नहीं दिया। इसी तरह किसानों की एमएसपी सहित कई मांगों की नाराजगी ने ग्रामीण इलाकों में भाजपा की पकड़ कमजोर कर दिया जिसका उसे चुनावी नुकसान पहुंचा।
बजट 2024-25 के प्रावधानों को देखते हुए लग रहा है कि सरकार ने लोकसभा चुनाव से सबक लेते हुए इन वर्गों को साधने पर पूरा ध्यान दिया है। गरीबों, युवाओं, महिलाओं और किसानों के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिन चार जातियों को देश के सबसे प्रमुख वर्गों में बांटा था, वही इस बजट की सबसे लाभार्थी साबित हुई हैं। ऐसे में क्या भाजपा के लिए आगामी छः राज्यों में चुनावी समीकरण बदल सकते हैं? राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि विपक्षी दलों को भी लग रहा है कि इस बजट से सत्तापक्ष को खासा लाभ मिल सकता है, लिहाजा जोरदार प्रदर्शन कर वे इस दौड़ में अपनी मजबूत दावेदारी बनाये रखना चाहती हैं।
केंद्र सरकार ने इस बार बजट का पूरा फोकस रोजगार निर्माण और मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने पर कर रखा है। युवाओं को पहली नौकरी देने वाली देश की शीर्ष 500 कंपनियों को सीएसआर फंड के जरिए इनका भुगतान करने की अनुमति देकर सरकार ने एक तीर से दो शिकार किये हैं। अब तक सरकार युवाओं और अन्य बेरोजगारों को स्वयं स्किल ट्रेनिंग देने की रणनीति पर काम कर रही थी। लेकिन पिछले पांच-सात वर्षों का अनुभव बताता है कि स्किल ट्रेनिंग सेंटर से प्रशिक्षित होने के बाद भी अधिकतर युवाओं को नौकरी नहीं मिल पाती थी। इसका सबसे बड़ा कारण यही पाया गया था कि स्किल ट्रेनिंग सेंटर की ट्रेनिंग भी युवाओं को इतना कार्यदक्ष नहीं बना पाती थी कि कम्पनियां उनका इस्तेमाल कर सकें। यानी जिस तरह यह पाया गया था कि देश के लगभग 50 फीसदी स्नातक युवा काम करने में सक्षम नहीं हैं, ठीक वही स्थिति स्किल ट्रेनिंग कार्यक्रमों की भी बन रही थी।
अब जब कंपनियों की वास्तविक जमीन पर युवाओं को काम करने का अनुभव मिलेगा तो उनकी दक्षता में कोई कमी नहीं रहेगी। चूंकि वे कंपनी के वरिष्ठ सहयोगियों के साथ वास्तविक परिस्थितियों में काम करते हुए सीखेंगे, उनकी दक्षता संदेह से परे होगी। कम से कम कम्पनियों के वरिष्ठ अधिकारी स्वयं यह आकलन करने की स्थिति में होंगे कि कोई युवा उनके लिए कितना अनुकूल है। ऐसे में उन्हें भी नए कर्मचारियों की तलाश में कोई श्रम नहीं करना पड़ेगा। अपने ही माहौल में प्रशिक्षित युवा उनके अधिक विश्वसनीय कर्मचारी साबित हो सकते हैं। उधर युवा भी बेहतर काम कर कंपनी में स्थायित्व के लिए बेहतर काम करने की ओर प्रेरित होंगे।
योजना का लाभ पाने के लिए उनका ईपीएफओ में दर्ज होने आवश्यक है, ऐसे में कंपनियां भी उन्हें अपने कार्ययोग्य दक्ष बनाने का प्रयास करेंगी। इस प्रकार यह स्थिति कंपनी, कर्मचारी के साथ-साथ सरकार के लिए भी बहुत उपयोगी साबित हो सकती है। चूंकि सरकार ने इस योजना के अंतर्गत एक करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा है, इससे युवाओं के बीच सरकार की लोकप्रियता बढ़ सकती है और उसे इसका बड़ा चुनावी लाभ मिल सकता है।
केंद्र सरकार ने किसानों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की नीति जारी रखी है, लेकिन उसने एमएसपी को कानूनी प्रावधान बनाकर उसका लाभ लेने की बजाय दीर्घकालिक ठोस उपायों को अपनाने पर जोर दिया है। सरकार ने खाद और कीटनाशकों पर सब्सिडी कम किया है, लेकिन सूर्यघर योजना से किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने की सोच दिखाई है। दलहन-तिलहन में आत्मिर्भरता बढ़ाने की कोशिश इन फसलों के लिए आयात बिल कम करेगी। साथ ही इसका किसानों को बड़ा लाभ मिलेगा।
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