'घरेलू हिंसा अधिनियम दुरुपयोग वाले कानूनों में', सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498ए के गलत इस्तेमाल पर जताई चिंता
जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने भरण-पोषण से संबंधित एक वैवाहिक विवाद की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। जस्टिस गवई ने कहा, ऐसे मामलों में, स्वतंत्रता प्राप्त करना सबसे अच्छी बात है। अपनी टिप्पणी को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने एक मामले का जिक्र किया।
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नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (विवाहित महिलाओं के साथ क्रूरता) और घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधान सबसे अधिक दुरुपयोग किए जाने वाले कानूनों में से हैं।
जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने भरण-पोषण से संबंधित एक वैवाहिक विवाद की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। जस्टिस गवई ने कहा, ऐसे मामलों में, स्वतंत्रता प्राप्त करना सबसे अच्छी बात है। अपनी टिप्पणी को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने एक मामले का जिक्र किया। उन्होंने कहा, नागपुर में मैंने एक ऐसा मामला देखा था, जिसमें लड़का शादी के बाद अमेरिका चला गया और एक दिन भी पत्नी के साथ नहीं रहा। इसके बावजूद उसे 50 लाख रुपये देने पड़े। जस्टिस गवई ने कहा, इसके बाद मैं खुले तौर पर कह सकता हूं कि घरेलू हिंसा और धारा 498ए सबसे अधिक दुरुपयोग किए जाने वाले प्रावधानों में से हैं। आईपीसी की जगह अब भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2023 को लागू किया गया है और आईपीसी की धारा 498ए के अनुरूप प्रावधान को बीएनएस की धारा 85 में शामिल किया गया है।
आईपीसी की धारा 498ए लंबे समय से बहस का विषय रही है। आलोचक यह कहते हैं कि महिलाएं अक्सर अपने पतियों और ससुराल वालों को गलत तरीके से आपराधिक मामलों में उलझाने के लिए इस प्रावधान का दुरुपयोग करती हैं। अदालतों ने भी कई मौकों पर इसे लेकर आलोचना की है। पिछले महीने बॉम्बे हाईकोर्ट ने धारा 498ए के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए कहा था, दादा-दादी और बिस्तर पर पड़े लोगों को भी ऐसे मामलों में फंसाया जा रहा है।
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