ग्रेट निकोबार द्वीप प्रोजेक्ट की समीक्षा की मांग, जयराम रमेश बोले- पर्यावरण को होगा भारी नुकसान
कांग्रेस नेता ने 10 अगस्त को लिखे अपने पत्र में कहा, 'सबसे पहले, इस परियोजना के लिए 13,075 हेक्टेयर वन भूमि के इस्तेमाल को बदलना होगा जो द्वीप के कुल क्षेत्रफल का 15% है। यह इलाका राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर एक अद्वितीय वर्षावन पारिस्थितिकी तंत्र है।
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नई दिल्ली (आरएनआई) कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ग्रेट निकोबार द्वीप में आधारभूत ढांचे की परियोजना को पर्यावरण के लिए 'गंभीर खतरा' बताते हुए इसकी समीक्षा की मांग की है। जयराम रमेश ने पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव से परियोजना को दी गई सभी मंजूरियों को निलंबित करने का आग्रह किया और संसदीय समितियों से इसकी गहन और निष्पक्ष समीक्षा कराने की मांग की है। जयराम रमेश ने इस संबंध में पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र भी लिखा है।
कांग्रेस नेता ने पत्र में लिखा कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को अपना धर्म निभाते हुए ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना को मंजूरी नहीं देनी चाहिए। खासकर तब जब यह परियोजना मानवीय, सामाजिक और पारिस्थितिकी रूप से विनाशकारी हो। जयराम रमेश ने लिखा कि 'आपको राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान हमारी हाल की बातचीत याद होगी। ग्रेट निकोबार द्वीप में केंद्र सरकार की प्रस्तावित 72,000 करोड़ रुपये की 'मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना' ग्रेट निकोबार द्वीप के आदिवासी समुदायों और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गंभीर खतरा है।' उन्होंने दावा किया कि इस परियोजना के 'विनाशकारी पारिस्थितिक और मानवीय परिणाम' हो सकते हैं और उचित प्रक्रिया का उल्लंघन करके और आदिवासी समुदायों की रक्षा करने वाले कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों को दरकिनार करके इस परियोजना को आगे बढ़ाया गया है।
कांग्रेस नेता ने 10 अगस्त को लिखे अपने पत्र में कहा, 'सबसे पहले, इस परियोजना के लिए 13,075 हेक्टेयर वन भूमि के इस्तेमाल को बदलना होगा जो द्वीप के कुल क्षेत्रफल का 15% है। यह इलाका राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर एक अद्वितीय वर्षावन पारिस्थितिकी तंत्र है।' उन्होंने लिखा कि 'परियोजना स्थल के कुछ हिस्से कथित तौर पर CRZ 1A (कछुओं के रहने वाले क्षेत्र, मैंग्रोव, कोरल रीफ वाले क्षेत्र) के अंतर्गत आते हैं, इस क्षेत्र में बंदरगाह निर्माण प्रतिबंधित है।
हाल ही में, एनजीटी द्वारा गठित एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति (HPC) ने निष्कर्ष निकाला है कि बंदरगाह CRZ-1A में नहीं आता है, बल्कि CRZ-1B में आता है, जहाँ बंदरगाह निर्माण की अनुमति है। जयराम रमेश ने दावा किया कि इस परियोजना के कारण शोम्पेन नामक स्वदेशी समुदाय का नरसंहार हो सकता है, जिसे विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। द्वीपों की जनजातीय परिषद से पर्याप्त परामर्श नहीं किया गया, जैसा कि कानूनी रूप से आवश्यक है। ग्रेट निकोबार द्वीप की जनजातीय परिषद ने वास्तव में परियोजना पर आपत्ति व्यक्त की है, जिसमें दावा किया गया है कि अधिकारियों ने पहले उन्हें भ्रामक जानकारी के आधार पर 'अनापत्ति' पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए जल्दबाजी की थी।
उन्होंने आगे कहा कि जिस तट पर बंदरगाह और परियोजना का निर्माण प्रस्तावित है, वह भूकंप संभावित क्षेत्र है और दिसंबर 2004 की सुनामी के दौरान इसमें लगभग 15 फीट की स्थायी गिरावट देखी गई थी। उन्होंने कहा कि यहां इतनी बड़ी परियोजना स्थापित करना जानबूझकर निवेश, बुनियादी ढांचे, लोगों और पारिस्थितिकी को खतरे में डालना है। यादव को लिखे अपने पत्र में रमेश ने कहा, 'उचित प्रक्रियाओं के इन अनगिनत उल्लंघनों को देखते हुए, इस अदूरदर्शी परियोजना को दी गई सभी मंजूरियों को निलंबित किया जाना चाहिए। प्रस्तावित परियोजना की गहन और निष्पक्ष समीक्षा की जानी चाहिए, जिसमें संबंधित संसदीय समितियां भी शामिल हैं।
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